गुरु नगरी में आखिर कैसे रूकेगी बाल भिक्षा

punjabkesari.in Thursday, Jan 18, 2018 - 09:48 AM (IST)

अमृतसर(नीरज): एक तरफ जिला प्रशासन व सामाजिक सुरक्षा एवं महिला व बाल विकास विभाग पंजाब सहित पूरे अमृतसर जिले में बाल मजदूरी व बाल भिक्षा रोकने के लिए छापेमारी कर रहा है और दो दिनों से जारी छापेमारी के दौरान 15 बच्चों को रिलीज भी करवाया जा चुका है तो दूसरी तरफ विडंबना यह है कि गुरु नगरी में जे.जे. एक्ट 2015 तहत रजिस्टर्ड एक भी चिल्ड्रन होम नहीं है, जिसके चलते भीख मांगने वाले बच्चों को पकड़े जाने पर टॉस्क फोर्स के पास इनको छोडऩे के अलावा और कोई विकल्प नहीं होता है। 

जब भी प्रशासन की तरफ से बनाई गई ज्वाइंट टीम की तरफ से भीख मांगने वाले बच्चों या फिर बाल मजदूरी करने वाले बच्चों को पकड़ा जाता है तो वे इन बच्चों को किसी तयशुदा स्थान पर ले जाने के द छोड़ देते हैं, जिससे हालात यह हो जाते हैं कि भीख मांगते पकड़े गए बच्चे कुछ दिनों तक अंडरग्राऊंड रहने के बाद फिर से भीख मांगने के काम में शामिल हो जाते हैं। भिखारी बच्चों की संख्या कम होने की बजाय बढ़ती जा रहती है। ऐसे बच्चे ज्यादा दबाव के समय किसी अन्य जिले में जाकर भीख मांगना शुरू कर देते हैं, जिसके चलते प्रशासन के सारे प्रयास विफल हो जाते हैं। 

जानकारी के अनुसार आज भी सामाजिक सुरक्षा एवं महिला व बाल विकास विभाग पंजाब के प्रमुख सचिव काहन सिंह पन्नू व डी.सी. अमृतसर कमलदीप सिंह संघा के आदेशानुसार ए.डी.सी.पी. क्राइम, लेबर विभाग, शिक्षा विभाग व बाल सुरक्षा कमेटी की तरफ से 7 बच्चों को बाल मजदूरी व भीख मांगने के काम से मुक्त करवाया गया, लेकिन इनको रखने के लिए कोई व्यवस्था न होने के चलते बच्चों को छोडऩा पड़ा।

प्राइवेट चिल्ड्रन होम्ज को जे.जे. एक्ट तहत प्रशासन करेगा रजिस्टर्ड 

जिले की बात करें तो सरकार की तरफ से कोई चिल्ड्रन होम न होने के चलते कुछ समाजसेवी संस्थाओं की तरफ से दानी सज्जनों के सहयोग से प्राइवेट चिल्ड्रन होम्ज चलाए जा रहे हैं लेकिन ये होम्ज जे.जे. एक्ट 2015 तहत रजिस्टर्ड नहीं हैं। पिंघलवाड़ा में चिल्ड्रन होम है, लेकिन यहां पर मंदबुद्धि बच्चों को ही रखा जा सकता है। इन हालातों में बंगलादेशी एवं उत्तर प्रदेश व बिहार जैसे राज्यों से यहां पर आने वाले बच्चों को प्रशासन किसी सुरक्षित पनाहगार में नहीं रख सकता है।

यही कारण है कि अब जिला प्रशासन की तरफ से अमृतसर के 5 प्राइवेट चिल्ड्रन होम्ज को जे.जे. एक्ट तहत रजिस्टर्ड करने की तैयारी की जा रही है, ताकि भीख मांगने वाले बच्चों को पकड़े जाने पर इन होम्ज में रखा जा सके। यहां पर खाने पीने की व्यवस्था के अलावा मैडिकल की भी फ्री सुविधा मिलती है। जिला बाल सुरक्षा विभाग की तरफ से इन चिल्ड्रन होम्ज की फाइलों को सरकार के पास भेजा जा चुका है और जल्द ही इनको रजिस्टर्ड भी कर लिया जाएगा, हालांकि इन होम्ज में पहले ही काफी बच्चे रहते हैं, लेकिन फिर भी इन होम्ज के रजिस्टर्ड हो जाने से प्रशासन 200 से 400 बच्चों को इन होम्ज में रख पाएगा।

रैडक्रास के रैन बसेरा में नहीं रखे जा सकते हैं बच्चे
जिला प्रशासन की तरफ से भिखारी पुनर्वास अभियान के तहत रैन बसेरा का गठन किया गया, जिसमें उन भिखारियों को रखा जाता है, जो भीख मांगते हुए पकड़े जाते हैं और रैडक्रास व पुलिस की टीमों की तरफ से इनको पकड़ा जाता है, लेकिन यहां भी समस्या यह है कि इस रैन बसेरा में छोटे बच्चों को नहीं रखा जा सकता है, क्योंकि यहां पर सिर्फ बड़ी उम्र के भिखारी ही रह सकते हैं और वैसे भी भीख मांगते पकड़े गए छोटे बच्चे रैन बसेरा में सुरक्षित नहीं रह सकते हैं, क्योंकि रैन बसेरा में लाए जाने वाले ज्यादातर भिखारी किसी न किसी नशे की लत के शिकार होते हैं और यहां बच्चों को सुरक्षित नहीं रखा जा सकता है। मौजूदा हालात में प्रशासन के लिए जरूरी हो गया है कि वह जे.जे. एक्ट तहत रजिस्टर्ड चिल्ड्रन होम्ज की सुविधा उपलब्ध करवाए।

क्या है जे.जे. एक्ट 2015
बड़े व खतरनाक अपराधों में संलिप्त 16 से 18 वर्ष के बच्चों पर अपराधियों की तरह केस चलाने के लिए केन्द्र सरकार की तरफ से जे.जे. एक्ट 2015 का गठन किया गया। निर्भया मामले के बाद इस प्रकार का कठोर कानून बनाने की जरूरत सरकार को महसूस हुई, क्योंकि राष्ट्रीय अपराध रिकार्ड ब्यूरो के सर्वे अनुसार वर्ष 2013 में 28 हजार किशोरों ने अपराध किए, जिसमें से 3887 ने कथित रूप से जघन्य अपराध किए। प्रशासन की तरफ से भी भीख मांगते हुए या फिर किसी आपराधिक गतिविधियों में शामिल बच्चों पर जे.जे. एक्ट तहत कार्रवाई की जाती है।

अब तक कहां-कहां हुई छापेमारी
डी.सी. कमलदीप सिंह संघा की तरफ से बनाई गई ज्वाइंट टीम की तरफ से अभी तक दो दिनों के दौरान भगतांवाला कूड़ा डंप, फोर.एस. चौक, नावल्टी चौक, क्रिस्टल चौक, कंपनी बाग, जिला कचहरी कांप्लैक्स, रणजीत एवेन्यू, रेलवे स्टेशन व रत्न सिंह चौक में छापेमारी की गई और भीख मांगने वाले बच्चों को मुक्त करवाया गया।

लेबर विभाग भी मजबूर
बाल सुरक्षा विभाग के अलावा लेबर विभाग की तरफ से भी बाल मजदूरी रोकने के लिए सैकड़ों प्रतिष्ठानों पर छापेमारी की जा चुकी है, लेकिन लेबर विभाग भी इस मामले में काफी मजबूर दिखाई देता है, क्योंकि ज्यादातर छोटे बच्चे अपने परिवार की आर्थिक मजबूरी के चलते मजदूरी करने के लिए मजबूर होते हैं। 

लेबर विभाग की तरफ से 1119 प्रतिष्ठानों पर चैकिंग की गई, लेकिन चालान नाममात्र ही काटे गए, उसका कारण यही रहता है कि विभाग की टीम जब किसी बच्चे को मजदूरी करते हुए पकड़ती है तो उसके माता-पिता तर्क देते हैं कि हम दो वक्त की रोटी कैसे खाएं, सरकार की तरफ से बच्चों के पालन पोषण करने के लिए पुख्ता प्रबंध नहीं हैं। 

मिड-डे मील का बुरा हाल है, ऐसे में गरीब अभिभावक अपनी गरीबी का तर्क देकर बच्चों को लेबर विभाग की टीम से छुड़वा लेते हैं हालांकि यह भी सत्य है कि गरीबी से मजबूर बच्चों का कुछ रईस भी नाजायज फायदा उठाते हैं और उनसे खतरनाक कामों जैसे पटाखे बनाना जैसे काम में लगा देते हैं।


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