मोदी सरकार के इलैक्ट्रिक वाहनों पर फोकस से भारतीय फोर्जिंग इंडस्ट्री में खौफ

punjabkesari.in Sunday, Dec 17, 2017 - 09:37 AM (IST)

लुधियाना (बहल): भारतीय फोर्जिंग इंडस्ट्री निर्माण क्षेत्र के मुख्य अंशधारकों में विशेष स्थान रखती है। पिछले 3 सालों का ग्राफ निकालें तो इस वर्ष अप्रैल से अक्तूबर की छमाही में आटोमोबाइल सैक्टर की ग्रोथ बूस्ट हुई है। वर्ष-2017 में इस अवधि के दौरान गत वर्ष के मुकाबले यात्री वाहनों में 6.36 प्रतिशत, कमर्शियल वाहनों में 6.86 प्रतिशत, एल.सी.वी. में 6.34 प्रतिशत, टू-व्हीलर्स में 8.81 प्रतिशत, थ्री-व्हीलर्स में 2.4 प्रतिशत और ट्रैक्टरों की बिक्री में 14.13 प्रतिशत की ग्रोथ दर्ज हुई है।

वहीं इसी अवधि के दौरान फोर्जिंग इंडस्ट्री ने भी नए आयाम स्थापित किए हैं लेकिन पिछले कुछ महीनों में स्टील के रेटों में करीब 15 फीसदी की वृद्धि ने इस क्षेत्र के लिए दिक्कतें पैदा कर दी हैं। एसोसिएशन ऑफ इंडियन फोर्जिंग इंडस्ट्री जहां स्टील के रेटों में वृद्धि से आंशिक रूप से परेशान है, वहीं मोदी सरकार द्वारा इलैक्ट्रिक वाहनों पर विशेष फोकस करने से उनकी परेशानी और बढ़ गई है। नॉर्थ संघ के चेयरमैन अविनाश गुप्ता का कहना है कि वर्तमान में भारत में प्रतिवर्ष 22,000 इलैक्ट्रिक वाहन बिकते हैं। इनमें से मात्र 2,000 चौपहिया वाहनों की बिक्री होती है, जो भारत में बिकने वाले कुल चौपहिया वाहनों का केवल 1 प्रतिशत है।

ई.वी. की शुरूआत से भारतीय फोर्जिंग इंडस्ट्री का भविष्य खतरे में पडऩे जा रहा है, क्योंकि 60 प्रतिशत फोर्जिंग इकाइयां आटो कलपुर्जों का निर्माण करती हैं। ऐसा होने से हजारों लोग बेरोजगार हो जाएंगे और कई फोर्जिंग इकाइयां बंद हो जाएंगी। सरकार को इस उद्योग को बचाने के लिए विशेष उपाय करने चाहिएं।  

फोर्जिंग इंडस्ट्री के समक्ष चुनौतियां व चिंताएं  
एसोसिएशन ऑफ इंडियन फोर्जिंग इंडस्ट्री के प्रधान रणवीर सिंह का कहना है कि संघ के सर्वेक्षण के मुताबिक वर्ष 2016-17 में 378 चालू फोर्जिंग यूनिटों का सालाना कारोबार 31,189 करोड़ रुपए रहा है। यह क्षेत्र 1 लाख से अधिक लोगों को रोजगार देता है। वर्ष 2014-15 के मुकाबले उद्योगों की स्थापित क्षमता 37.6 लाख मीट्रिक टन से बढ़कर 38.5 लाख मीट्रिक टन पहुंच गई है।

वहीं फोर्जिंग का सम्पूर्ण उत्पादन 22.5 लाख टन से बढ़कर 23.9 लाख टन हो गया है। उत्तर भारत में लुधियाना, गाजियाबाद, फरीदाबाद और गुरुग्राम में करीब 378 फोर्जिंग यूनिट हैं। सरकार ने 1 जुलाई 2017 से जी.एस.टी. प्रणाली लागू कर दी है, जिसमें कर सुधार होना संभव है लेकिन भारत के असंगठित क्षेत्र को संगठित करने, निर्यात में वृद्धि, अधिकांश क्षेत्रों में उत्पादन लागत कम करना और डबल टैक्स सिस्टम को घटाना जरूरी है। जी.एस.टी. में इन सुधारों के न होने की सूरत में दूरगामी परिणाम इंडस्ट्री के हित में नहीं होंगे।

वहीं दूसरी ओर फोर्जिंग इंडस्ट्री की स्टील की मांग भारत में स्टील निर्माताओं द्वारा पूरी नहीं की जा रही है। स्टील की डिमांड पूरी न होने में प्रमुख कारकों में काफी अधिक उधार, कोल इंडिया लिमिटेड द्वारा मांग के मुकाबले कम कोयला उत्पादन और निर्माण क्षेत्र हेतु ऊर्जा की जरूरतों को पूरा नहीं कर पाना शामिल है।  

विदेशों के मुकाबले टैक्नोलॉजी अपग्रेडेशन न होना परेशानी 
अविनाश गुप्ता ने कहा कि यूरोपियन देशों जापान और अमेरिका के समकक्ष तथा चीन, कोरिया और ताइवान की कंपनियों के मुकाबले फोर्जिंग इंडस्ट्री में टैक्नोलॉजी की कमी और आटोमेशन का अभाव निर्यात को प्रभावित कर रहा है। सरकार द्वारा इस क्षेत्र को टी.यू.एफ. स्कीम देकर बढ़ावा देना जरूरी है। इंडस्ट्री को जी.एस.टी. और निर्यातकों को सी.जी.एस.टी. का करोड़ों रुपया रिफंड तुरंत रिलीज किया जाना चाहिए। 


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