बिहार वाली गलती पंजाब में भी कर गई भाजपा

punjabkesari.in Sunday, Mar 12, 2017 - 01:34 AM (IST)

जालंधर(पाहवा): पंजाब विधानसभा चुनावों के नतीजों ने प्रदेश से लेकर केंद्र तक भाजपा की वही हालत की है जो बिहार चुनावों के बाद पार्टी की हुई थी। बिहार चुनावों में पार्टी ने जो गलती की वही गलती पार्टी पंजाब चुनावों में भी कर बैठी। यह बड़ी गलती थी राज्य की जातिगत समीकरणों की जानकारी न रखना। 

कमजोर नीति के कारण बंट गया दलित वोट बैंक
जिस सोच को ध्यान में रख कर विजय सांपला को पंजाब भाजपा का अध्यक्ष बनाया गया था, वह उस पर खरे नहीं उतर सके। दलित वर्ग को लुभाने व उसके दम पर पंजाब में दोबारा सत्ता हासिल करने की उनकी कोशिश इसी कारण असफल रही क्योंकि पंजाब में दलित वर्ग में ही फूट पड़ गई। 

पंजाब में सांपला के राजनीतिक विरोधी भगत चूनी लाल तथा सोम प्रकाश के साथ सीधे विरोध वाली स्थिति पैदा हो गई। यहां तक कि सांपला पर इन दोनों राजनीतिक विरोधियों की टिकट कटवाने की कोशिश के भी आरोप लगे। एकजुट होने की बजाय दलित वर्ग अलग-अलग भागों में बंट गया जो पंजाब में भाजपा की हार का बड़ा कारण बना। 

कैप्टन जैसे नेतृत्व की रही कमी
दलित वर्ग के नेता को प्रदेश अध्यक्ष के पद पर बिठाने पर भाजपा की रणनीति ने अन्य 18 सीटों पर भी बुरा असर डाला जिस कारण भाजपा की दशा बेहद खराब हो गई। राज्य के जातिगत समीकरण न समझ पाने के पीछे यही कहा जा सकता है कि पार्टी के लोग पार्टी हित की बात करने की बजाय निजी स्वार्थों को अधिक अहमियत देते हैं।

कांग्रेस के अध्यक्ष पद पर कैप्टन अमरेंद्र सिंह जैसे तेज-तर्रार नेता के बदले में भाजपा को कोई ऐसा चेहरा नहीं मिला जो मुकाबला करने की हिम्मत रखता। कई मामलों में पार्टी के जाट सिख नेता सुखमिन्द्र सिंह ग्रेवाल का नाम तो आया लेकिन पार्टी के अंदर की खींचतान के बीच वह नाम दब कर रह गया। अगर पार्टी हित को ध्यान में रख कर आपसी लड़ाई भूल कर प्रदेश में काम किया जाता तो शायद पंजाब में भाजपा की इतनी दुर्गति न होती। 

जातिगत समीकरणों को न समझना बना हार का मुख्य कारण
बिहार में जातिगत समीकरणों को दरकिनार कर पार्टी ने चुनाव लड़ा जिसका नतीजा यह हुआ कि पार्टी विधानसभा चुनावों में बुरी तरह से हारी। पार्टी के वरिष्ठ नेता व केंद्रीय वित्त मंत्री अरुण जेतली ने तो बाद में यह बात खुद स्वीकार की थी कि बिहार के जातिगत समीकरणों को समझने के लिए भाजपा विफल रही है। इस हार से भाजपा ने कोई सबक नहीं लिया तथा वही बड़ी गलती पंजाब में दोहरा दी। 

दलित अध्यक्ष बनाकर की बड़ी भूल 
पंजाब में भाजपा के पास 23 विधानसभा सीटें हैं जिन पर वह चुनाव लड़ती है जबकि शेष सीटों पर सहयोगी दल शिरोमणि अकाली दल मैदान में उतरता है। पंजाब में इन 23 सीटों में से केवल 5 सीटें ऐसी हैं जो रिजर्व कोटे से हैं तथा इन पर भाजपा की तरफ से दलित चेहरों को मैदान में उतारा जाता है। पार्टी ने 23 में से इन 5 सीटों को ध्यान में रखते हुए पंजाब प्रदेश अध्यक्ष के पद पर ब्राह्मण वर्ग के नेता कमल शर्मा को हटा कर दलित वर्ग के नेता विजय सांपला को तैनात कर दिया। 


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