50 साल बाद बठिंडा-मानसा बन जाएगा रेगिस्तान

punjabkesari.in Monday, Mar 19, 2018 - 08:03 AM (IST)

बठिंडा (आजाद): 22 मार्च को विश्व जल दिवस के रूप में मनाया जाता है ताकि जल संकट से लोगों को जागरूक किया जा सके। इसी को ध्यान में रखते पंजाब केसरी मंडे स्पैशल में जल संकट को विस्तार से रेखांकित करने की कोशिश की गई है ताकि पाठक जल के भयावह संकट से अवगत हो सकें। जल के प्रति लोगों को जागरूक करने के लिए कई स्लोगन भी लिखे गए हैं जैसे जल है तो कल है, जल ही जीवन है, जो जहां जल के महत्व को दर्शाते हैं, वहीं भविष्य के प्रति संकट को आगाह भी करते हैं कि आने वाले समय में जल की भारी किल्लत होने वाली है। विद्वानों का कहना है कि अगला विश्व युद्ध जल पर कब्जा करने के लिए भी हो सकता है।PunjabKesari
हालांकि यह भी एक तथ्य है कि पृथ्वी पर तीन तिहाई जल है व एक तिहाई जमीन है। उसके बावजूद भी जल संकट से जूझना कई सवालों को जन्म देता है। पिछले 50 सालों से बड़े-बड़े उद्योगों में नदियों व भू-जल का पानी बिना किसी नियम कायदों को ध्यान में रखे उपयोग किया जा रहा है। पंजाब एक कृषि प्रधान राज्य होने के नाते 85 प्रतिशत जमीन पर खेतीबाड़ी की जाती है, यहां पर मुख्यरूप से मक्का, बाजरा, गेहूं व गन्ने की खेती होती थी लेकिन हरित क्रांति के बाद से यहां खेती में बहुत बदलाव किया गया, मक्का व बाजरा के स्थान पर धान-गेहंू व कपास की खेती की जाती है। धान व गेहंू के बहुतायत में खेती करने के कारण एकाएक भूमिगत पानी का प्रयोग बढ़ गया क्योंकि इन दोनों के लिए पानी की काफी मात्रा में आवश्यकता होती है। इसकी पूर्ति करने के लिए खेतों में तेजी से ट्यूबवैल लगाए जाने लगे।

ट्यूबवैल का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि हर 500 मीटर पर एक बोरिंग मिलेंगे। एक अनुमान के मुताबिक पूरे पंजाब में 10 लाख से अधिक ट्यूबवैल अभी लगातार जमीन का पानी खींच रहे हैं। पिछले पांच सालों में ट्यूबवैल की गिनती में तेजी से बढ़ौतरी देखने को मिल रही है। हरित क्रांति के शुरूआती 5 सालों में मात्र 5 लाख ट्यूबवैल थे। इसके बाद से ग्राऊंडवाटर में लगातार कमी होने लगी। खेती में तकनीक के अधिक प्रयोग से किसानों ने साल में सिर्फ गेहंू-धान और कपास की फसल उगानी शुरू कर दी। इन दोनों फसलों में सबसे ज्यादा पानी की खपत होती है। फसल में पानी के अधिक प्रयोग से जमीन के अंदर पानी नहींं जाने के कारण भू-जल के स्तर लगातार कम होने लगे। बठिंडा व मानस में एरिया रेतीला होने के कारण यहां खेती के लिए पानी की ज्यादा आवश्यकता होती है, जिस के कारण मानसा में बहुत ही तेजी से भू-जल का स्तर नीचे की ओर जा रहा है। 

पानी सेविंग का कोई प्रबंध नहींं
पहले पंजाब में पानी को संग्रहीत कर के रखा जाता था। हर एक-दो मील पर तालाब व पोखर हुआ करते थे जिसमें बरसात का पानी इकट्ठा रहता था व खेती किसानी के अलावा और जरूरी काम भी इसी पानी से किया जाता था। धीरे-धीरे करके तालाब व पोखर सूख जाने के कारण तथा लोगों के बोरवैल पर निर्भरता से पानी का स्तर धीरे-धीरे नीचे चला गया क्योंकि बरसात के पानी संरक्षित नहीं करने से नदियों में चले जाते हैं। पहले गांव में छप्पड़ हुआ करते थे जिससे पानी का प्रयोग किया जाता है। इन छप्पड़ों में बरसात का पानी इकट्ठा होता था जिसमें कई जरूरत के काम होते थे जैसे मवेशियों को नहलाना, कपड़े धोना तथा इन छप्पड़ के  पानी के जमाव से धरती के जल स्तर का लैवल बरकरार रहता था लेकिन धीरे-धीरे छप्पड़ को भर कर खेत बना दिए गए। 

मालवा का पानी पीने योग्य नहींं 
मालवा के लोग मूलभूत जरूरतों को पूरा करने के लिए भू-जल पर ही निर्भर हैं लेकिन अंतर्राष्ट्रीय संस्था ग्रीनपीस द्वारा विभिन्न रिसर्च प्रयोगशालाओं में किए गए एक अध्ययन के मुताबिक सिंथेटिक नाइट्रोजन उर्वरकों के भारी उपयोग के कारण पंजाब के कम से कम 3 जिलों का भूजल नाईट्रेट से प्रभावित हो चुका है। यह अध्ययन लुधियाना, मुक्तसर और बङ्क्षठडा जिलों में औसतन 160 फुट गहरे भूजल पर किया गया। अध्ययन में पाया गया कि 20 प्रतिशत से अधिक बोरवैल के पानी में नाईट्रेट की मात्रा 50 प्रतिशत की सुरक्षित मात्रा से काफी अधिक है। नाईट्रेट का यह प्रदूषण सीधे सीधे नाईट्रोजन उर्वरकों के उपयोग की अधिकता की ओर इशारा करता है। अन्य रिपोर्टों के अनुसार खेतों में जितना अधिक यूरिया का इस्तेमाल किया जाएगा, भूजल में नाईट्रेट की मात्रा उसी अनुपात में बढ़ती जाएगी। ऐसे में मालवा का पानी पीने योग्य नहीं रहा। 

पांच नदियों की धरती पर पानी का करोड़ों में हो सकता है कारोबार 
पांच नदियों की धरती को पंजाब के नाम से जानते हैं लेकिन पांच नदियों के इस राज्य में पीने के लिए स्वच्छ पानी नहींं है। आज पानी पूरी तरह दूषित हो चुका है। लोग दूषित पानी पीने के कारण कई गंभीर बीमारियों के चपेट में आ चुके हैं। लोग स्वच्छ पानी पैसे देकर खरीद रहे हैं। पानी बेचने वाली कंपनियों की भरमार हो गई है। 


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