हमें बाल दिवस से क्या लेना, बस पेट भरने को रोटी चाहिए

punjabkesari.in Tuesday, Nov 14, 2017 - 11:02 AM (IST)

संगरूर/बरनाला (विवेक सिंधवानी,गोयल): बाबू जी, हमें नहीं पता यह बाल दिवस क्या होता है। हमें सिर्फ यह पता है कि शहर की गंदगी में से अपने परिवार की आजीविका ढूंढनी है और पेट भरना है या किसी होटल,चाय की दुकान, ढाबे या किसी घर में जूठे बर्तन मांजने हैं। यह दास्तान है बरनाला शहर में भारी संख्या में मौजूद बाल मजदूरों की। आज अगर देश के प्रथम प्रधानमंत्री पं. जवाहर लाल नेहरू हमारे बीच होते तो मासूम बच्चों के शोषण की दास्तान देखकर उनकी आंखें नम हो जातीं। शहर में भारी तादाद में बच्चे सुबह व रात को गलियों व बाजारो में गंदगी में से कागज, प्लास्टिक, लोहा, कांच की बोतलें आदि सामान कंधे पर उठाते हुए देखे जा सकते हैं।

केंद्र व प्रदेश सरकारें समय-समय पर बाल मजदूरी रोकने के लिए बड़े-बड़े दावे करती हैं लेकिन जमीनी हकीकत कुछ और ही है। प्रशासन व श्रम विभाग भी दावे करने में पीछे नहीं है। बेशक आज 14 नवम्बर को बाल दिवस पर बच्चों को देश का भविष्य व कर्णाधार कहकर सम्मानित किया जाएगा लेकिन गरीबी की मार झेल रहे बच्चों की तरफ शायद ही किसी की नजर पड़े।  

14 वर्ष है रोजगार पाने की न्यूनतम आयु 
इस स्थिति में सुधार के लिए सरकार ने 1986 में चाइल्ड लेबर एक्ट बनाया जिसके तहत बाल मजदूरी को अपराध माना गया तथा रोजगार पाने की न्यूनतम आयु 14 वर्ष कर दी गई। इसी के साथ सरकार नैशनल चाइल्ड लेबर प्रोजैक्ट के रूप में बाल मजदूरी को जड़ से खत्म करने के लिए कदम बढ़ा चुकी है। इसके लिए अधिकारियों को आदेश दिए गए हैं कि वे अपने-अपने जिलों में बाल मजदूरी को रोकने के लिए उचित कदम उठाएं।

जाना चाहते हैं स्कूल लेकिन पैसे नहीं 
बाल मजदूरी करते बच्चों का कहना है कि उनके मां-बाप के पास इतने पैसे नहीं हैं कि वे स्कूल के लिए उनका खर्च उठा सकें। उनका स्कूल में जाने का मन करता है आॢथक तंगी व मजबूरी के चलते वे शिक्षा से वंचित रह जाते हैं। प्राइवेट फैक्टरियों में काम करने वाले प्रवासी मजदूरों ने बताया कि अति निर्धन होने के कारण उनके लिए न तो स्कूल की सुविधा है तथा न ही स्वास्थ्य की।


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