गडवासू के वैज्ञानिकों ने गाय की कोख में तैयार किया भ्रूण, रचा इतिहास

punjabkesari.in Friday, Apr 28, 2017 - 01:05 PM (IST)

लुधियाना (सलूजा): मनुष्य जाति में तो किराए की कोख लेकर बच्चे के  जन्म का तजुर्बा सफल रहने के साथ ही विवादों के घेरे में भी रहा है लेकिन गुरु अंगद देव वैटर्नरी व एनिमल साइंसिस यूनिवर्सिटी (गडवासू) के वैज्ञानिकों ने इस तजुर्बे को पशु जाति पर सफलतापूर्वक करके इतिहास रच दिया है। वैज्ञानिकों ने यह तजुर्बा साहीवाल नस्ल की गाय पर किया है। इससे 2 बछड़े व एक बछड़ी ने जन्म लिया है। 

भ्रूण तबादला विधि को अपनाया
वैटर्नरी साइंस कॉलेज के डीन डा. प्रकाश सिंह बराड़ ने बताया कि भ्रूण तबादला विधि के माध्यम से एक उत्तम क्वालिटी की देसी साहीवाल नस्ल की गाय की कोख में एक बढिय़ा नस्ल के सांड के  वीरज का भ्रूण तैयार किया गया और इसमें से 8 तंदरुस्त भ्रूण लेकर होलैस्टन फरीजन दोगली नस्ल की 4 गायों की कोख में रखे गए। इनमें से 2 गायों ने 2 तंदरुस्त बछड़े व एक गाय ने तंदरुस्त बछड़ी को जन्म दिया। 

गायों की नस्ल सुधार प्रोग्राम को मिलेगा बल
यूनिवर्सिटी के डायरैक्टर पशुधन फार्म डा. बलजिंद्र कुमार बांसल ने बताया कि दोगली नस्ल की गाय जब सोजिश व लंगड़पने समेत कई बीमारियों से पीड़ित हो जाती है तो वह दूध देना बंद कर देती है। इस वजह से किसान/पशुपालक उसको खुला छोड़ देते हैं लेकिन अब इस सफल तजुर्बे के बाद अब आवारा गायों पर भी तजुर्बे बढ़ेंगे और इससे गायों की नस्ल सुधार प्रोग्राम को भी बल मिलेगा।

सरकार का गोकुल मिशन प्रोजैक्ट
डायरैक्टर प्रसार शिक्षा डा. हरीश कुमार वर्मा ने बताया कि इस तकनीक से देसी नस्ल की गायों की संख्या भारत सरकार के राष्ट्रीय गोकुल मिशन प्रोजैक्ट तहत बढ़ाई जा सकती है। इससे यकीनन तौर पर आवारा गायों का सही इस्तेमाल हो सकेगा। 

बढिय़ा नस्ल के सांड की तैयार होगी नई नस्ल  
यह भी दावा किया गया है कि विकसित तकनीक से बढिय़ा नस्ल के सांडों की नई नस्ल को भी तैयार किया जा सकेगा। जोकि नस्ल बेहतरी में बहुत बड़ा योगदान पा सकेगी। वैज्ञानिकों ने कहा कि इस खोज को आगे बढ़ाने के प्रयास करने से और भी अच्छे नतीजे मिल सकते हैं। 

किसानों व पशु पालकों को करेंगे जागरूक
उपकुलपति डा. अमरजीत सिंह नंदा ने बताया कि भ्रूण तबादले की इस विधि संबंधी किसानों व पशु पालकों को बकायदा ट्रेनिंग देंगे ताकि वह दूध देना छोड़ चुके पशुओं को सड़कों पर छोडऩे की जगह नस्ल सुधार हेतु प्रयोग में ला सकें।


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