करोड़ों के वाहनों को पुलिस ने बना दिया कबाड़ !

punjabkesari.in Monday, Jul 17, 2017 - 12:59 PM (IST)

अमृतसर (संजीव): जिला पुलिस ने आपराधिक मामलों में बरामद किए करोड़ों रुपए के वाहनों को आज कबाड़ कर दिया है, जो न तो राज्य के हित में है और न ही उन वाहन चालकों के जिन्होंने अपनी गाढ़ी कमाई खर्च कर इन्हें कभी बड़े चाव से खरीदा था। पुलिस की इस लापरवाही की गाथा को हर थाने व चौकियों में सड़ रहे वाहन चीख-चीख कर सुना रहे है। आलम यह है कि अगर पुलिस अब इन वाहन मालिकों को बुलाकर उन्हें इन्हें ले जाने को  कहे तो  वह इनकी हालत देख कर लेने से ही इंकार कर देंगे।

वाहनों की हालत देख पुरानी कहावत चरितार्थ होती है जिस में कहा गया है कि ‘आने दी गुड्डी ते टका सिर मुनाई’ इन वाहनों को फिर से सड़क पर लाने के लिए कीमत से अधिक अब मुरम्मत पर खर्च होने का अंदेशा बना हुआ है। माननीय अदालत द्वारा भी निर्देश दिए जा चुके हैं कि अगर बरामद किए गए वाहन कंडम हो रहे हैं तो संबंधित थाने उनकी नीलामी करवा कर इकट्ठा होने वाला पैसा सरकारी खजाने में जमा करवा सकते हैं।

अगर नीलामी के उपरांत वाहन मालिक अपना क्लेमदायर करते हैं तो उन्हें खजाने में जमा करवाई गई राशि दी जा सकती है, मगर लोगों के हित में होने वाली इस कागजी कार्रवाई के लिए पुलिस अधिकारियों में जहां इच्छाशक्ति की जरूरत है वहीं इनके साथ-साथ वाहन मालिकों के हो रहे नुक्सान को लेकर पुलिस के दिल में दर्द का भी अहसास जरूरी है, मगर वाहनों की हालत को देख इनमें से एक भी चीज अधिकारियों में दिखाई नहीं देती। ‘पंजाब केसरी’ की टीम ने जब थानों व चौकियों में कंडम हो रहे वाहनों संबंधी खोजबीन की तो बहुत से चौंकाने वाले पहलू सामने आए जबकि दूसरी ओर पैट्रोल्ंिाग पार्टियों को मिलने वाले तेल की जब जानकारी जुटाई गई तो पी.सी.आर. कर्मचारियों की पीड़ा दिखाई दी। 

सैंकड़ों लावारिस वाहन सड़ रहे हैं थानों व चौकियों में 
पुलिस द्वारा बरामद किए जाने वाले सैंकड़ों लावारिस वाहन आज थानों व चौकियों में सड़ रहे है। पिछले कई वर्षों से थानों में पड़े ये वाहन कई अधिकारियों के तबादले तो देख चुके हैं मगर आज तक किसी ने भी इनकी सुध लेने का प्रयास नहीं किया। ‘हां’ इतना जरूर है कि अगर कोई व्यक्ति अपने चोरी हुए वाहन को थानों व चौकियों में पड़े कबाड़ में से पहचान लेता है और उसके पूरे सबूत भी दे देता है तो मानो वाहन मालिक की तो लाटरी निकल आती है। मगर दूसरी ओर पुलिस कर्मचारी इसे एक बड़ी सुर्खी बनाने का प्रयास करने लगते हैं और इस बात का भी ढोल पीटा जाता है कि बड़ी कठिनाई के उपरांत पुलिस ने वाहन बरामद कर उसे मालिक को सौंपा। कागजों में चोरी का केस सुलझा कर वाहवाही भी लूटी जाती है।

फर्जी नंबरों के कारण नहीं ढूंढ पाती वाहन मालिकों को पुलिस 
आए दिन गिरफ्तार हो रहे वाहन चोर गिरोहों के कब्जे से चोरी के वाहन भी बरामद किए जा रहे हैं मगर उन पर फर्जी नंबर लगे होने के कारण ये वाहन असली मालिकों तक नहीं पहुंच पाते। जिला पुलिस का अपना भी एक सैल है जहां हर थाने व चौकियों से बरामद किए गए चोरी के वाहनों की सूची जाती है, मगर विडंबना यह है कि पुलिस दर्ज मामलों में उसी फर्जी नंबर को लिखती है और वही नंबर उस सैल को चला जाता है। सैल जब उस नंबर की जांच करता है तो फर्जी पाए जाने पर वह कागजों में ही दब कर रह जाता है। अगर पुलिस चोरी के वाहनों के साथ-साथ उनके इंजन व चैसी नंबर लिख कर पर्चा काटे तो उसके आधार पर बरामद होने वाले वाहनों को चेज किया जा सकता है और उसी से वाहन के असल मालिक की भी पहचान हो सकती है। 

थानों में कबाड़ हो रहे बहुत से वाहनों के मालिक ले चुके हैं क्लेम 
वाहन चोरी के 3 माह बीत जाने के उपरांत पुलिस द्वारा अनटे्रसेबल प्रमाण पत्र जारी कर दिया जाता है जिसके उपरांत वाहन का मालिक बीमा कंपनी से क्लेम हासिल कर लेता है। अगर क्लेम हासिल करने के उपरांत पुलिस वाहन की बरामदगी कर भी लेती है तो उस वाहन का मालिक थाने में आकर अपना स्वामित्व ही जाहिर नहीं करता और वाहन थाने में पड़ा रहता है। न तो पुलिस ऐसे वाहनों की कागजी कार्रवाई कर उसे बीमा कंपनियों के हवाले करने की जहमत उठाती है और न ही बीमा कंपनियां शहर के थानों व चौकियों में आकर क्लेम दिए गए वाहनों की बरामदगी संबंधी कोई पूछताछ ही करती हैं। इसी तरह ये वाहन थानों में पड़े-पड़े कबाड़ हो रहे हैं। 


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