कलयुगी दौर: समाज में न बेटियां सुरक्षित और न ही बेटे

punjabkesari.in Monday, Sep 11, 2017 - 04:52 PM (IST)

भटिंडा (पायल): कोई समय था जब अभिभावक बेटियों की सुरक्षा को लेकर ही चिंतित रहते थे, परन्तु आज देश में ऐसा कलयुगी दौर चल रहा है जिसमें न तो बेटियां सुरक्षित हैं और न ही बेटें। जहां आए दिन मासूम बच्चियों के साथ दुष्कर्म की घटनाएं प्रकाश में आ रही हैं, वहीं बच्चों (लड़कों) को भी यौन शोषण का शिकार बनाया जा रहा है। हवस के पुजारी अबोध बच्चों को अपना शिकार बना रहे हैं, जिससे अभिभावक चिंता की स्थिति में हैं। गत दिवस गुरुग्राम में एक बस कंडक्टर ने दूसरी कक्षा के बच्चे के यौन उत्पीडऩ का प्रयास किया और नाकाम होने पर उसका गला रेत कर निर्मम हत्या कर दी। आज भी दिल्ली में स्कूल के चपड़ासी द्वारा 5 वर्षीय बच्ची से दुष्कर्म का मामला सामने आया है। पिछले कुछ समय से ऐसी घटनाएं निरंतर प्रकाश में आ रही हैं, जिसने समाज के माथे पर शर्मनाक कलंक लगा दिया है। 

अबोध बच्चों पर बरप रहा कहर
हवस की आग बुझाने हेतु दरिंदे अबोध बच्चों (जिनमें छोटी उम्र की लड़कियां व लड़के शामिल हैं) पर कहर बरपा रहे हैं। युवतियों को शिकार बनाने दौरान शोर मचाने के चलते कई दरिंदे पुलिस के हत्थे चढ़े, जिसके चलते अब पुलिस से बचने व आसानी से शिकार फंसाने हेतु मासूम बच्चियों को निशाना बनाया जा रहा है। बच्चियों को घुमाने, टॉफी-चॉकलेट दिलाने का लालच देकर आरोपी बड़ी आसानी से उन्हें गुमराह करके ले जाते हैं। हाल ही में बच्चियों पर शारीरिक प्रताडऩा के मामलों में आश्चर्यजनक बढ़ौतरी देखने को मिली है। कई मामलों में तो बच्चियां बुरी तरह जख्मी होने पर दम तक तोड़ चुकी हैं, जबकि आरोपी अभी भी लचीली कानूनी प्रक्रिया की आड़ लेकर सरेआम घूम रहे हैं। यह स्थिति सिर्फ बच्चियों के मामले में नहीं, बल्कि बच्चों के मामले में भी देखने को मिल रही है। विकृत सोच के लोग मासूम लड़कों को भी अपना निशाना बना रहे हैं।

दरिंदों को तो बिना समय गंवाए कड़ी से कड़ी सजा देनी चाहिए : बुद्धिजीवी
निरंतर बढ़ रहे बलात्कार के घिनौने अपराधों के चलते समाज का बुद्धिजीवी वर्ग भी बेहद आहत है और उनका मानना है कि यदि तुरंत सजा मिले तो ही अपराध थम सकते हैं। आज हालात निरंतर बिगड़ते जा रहे हैं। लड़कियों का रात्रि क्या दिन के समय भी घरों से निकलना दूभर हो चुका है। माननीय अदालतों व सरकार को उक्त मामले में तुरंत उचित कदम उठाने चाहिएं। पहले समय में युवतियों को ज्यादा शिकार बनाया जाता था, परन्तु जब से युवतियां आत्मनिर्भर बनी और अपनी सुरक्षा स्वयं करने लगीं तो दरिंदों ने मासूम बच्चियों को शिकार बनाना शुरू कर दिया है। ऐसे दरिंदों को तो बिना समय गंवाए कड़ी से कड़ी सजा देनी चाहिए। निरंतर घट रही शर्मनाक घटनाओं को देखकर ऐसा प्रतीत होता है कि हमारे समाज में इंसानी खाल में भेडि़ए घूम रहे हो। ऐसे भेडिय़ों को तुरंत फांसी पर लटकाया जाना चाहिए। 


अभिभावक बच्चों की सुरक्षा को लेकर चिंतित
मासूम बच्चों की सुरक्षा को लेकर अभिभावक बेहद चिंतित हैं। उन्हें अपनी बेटियों को अकेले घर से बाहर भेजते समय सदैव डर बना रहता है। गृहिणी सोनिया बांसल बताती हैं कि उनकी 5 वर्षीय बेटी है जिसे स्कूल छोडऩे-लाने, ट्यूशन ले जाने, पार्क में घुमाने वह स्वयं साथ जाती हैं। रोज सुनने को मिल रहे शर्मनाक मामलों से उनकी रूह कौंध जाती है। ऐसे में किसी पर भी भरोसा करना अब मुमकिन नहीं लगता है। 8 वर्षीय बच्चे के पिता राज कुमार खुराना बताते हैं कि हालात इतने बदतर हो गए हैं, फिर भी कानून व सरकारें उचित कदम उठाना जरूरी नहीं समझतीं। यदि बच्चों के साथ यूं ही अपराध बढ़ते रहे तो आने वाले दिनों में लोग बच्चों को जन्म देने से भी कतराने लगेंगे। 


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