गुरु नगरी में फल-फूल रहा है मटके का कारोबार,गरीब वर्ग के साथ महिलाएं भी इसकी चपेट में

punjabkesari.in Tuesday, Jun 27, 2017 - 11:50 AM (IST)

अमृतसर (बॉबी): महानगर अमृतसर में दड़े-सट्टे व मटके का व्यापार बड़ी तेजी से फल-फूल रहा है। गरीब वर्ग के साथ-साथ स्कूलों के बच्चे व महिलाएं भी इसकी चपेट में आ गई हैं। लालच इनको दड़े-सट्टे की दलदल में फंसाता चला जा रहा है। अगर इन व्यापारियों को जल्द नकेल न डाली गई तो वह दिन दूर नहीं जब हमारा आने वाला भविष्य तबाह होकर रह जाएगा। इन सटोरियों की जड़ें दिल्ली, बल्लभगढ़, दुबई तक फैली हुई हैं।

स्कूल के बच्चे हैं इनकी निशाने पर
स्कूल-कॉलेज में पढऩे वाले बच्चे जो घर से पढऩे के लिए निकलते हैं, घर से मिलने वाले जेबखर्च से वे पहले दड़ा-सट्टा लगाते हैं, फिर वे स्कूल व कॉलेज की ओर जाते हैं। पैसों का जो नुक्सान होता है, उसे तो बच्चों के माता-पिता झेल ही रहे हैं, मगर जो उनके भविष्य का नुक्सान होता है, उसकी भरपाई नहीं हो सकती। इसका मुख्य कारण यह है कि दड़ा-सट्टा लगाने वाले विद्याॢथयों का पढ़ाई में मन नहीं लगता और वे सट्टे का परिणाम जानने के लिए बहाना बनाकर स्कूल से जल्दी चले जाते हैं। उनकी पढ़ाई का जो नुक्सान हो रहा है, उसकी भरपाई नहीं हो सकती। 

रिक्शा व ऑटो चालक भी हैं इसके शिकार
कड़कती गर्मी में अपनी खून-पसीने की कमाई का आधे से ज्यादा हिस्सा ये दड़े-सट्टे में गंवा कर चले जाते हैं, जिससे उनके परिवार वालों को इसका खमियाजा भुगतना पड़ता है। इनके परिवार के सदस्य रात को घर में इंतजार करते हैं कि घर आएंगे और रोजमर्रा की खाने-पीने की वस्तुएं लाएंगे, मगर ये लोग तो सट्टे वालों के पास से अपनी जेबें खाली करवाकर वापस चले आते हैं और जब सट्टे का नंबर नहीं निकलता तो बची हुई राशि से देसी शराब का सेवन कर अपना गम भुलाने की कोशिश करते हैं, मगर अगले दिन भी वही सिलसिला जारी रहता है कि शायद आज हमारा नम्बर आ जाएगा। यही क्रम चलता रहता है।

...फिर वहां से शुरू होता है हवस का नंगा नाच 
पैसे न देने पर सटोरियों के पैसे इकट्ठा करने वाले लोग उन औरतों को अपनी हवस का शिकार बनाते हैं और लालच देकर उन्हें वेश्यावृत्ति के धंधे में धकेल दिया जाता है। इस तरह की महिलाएं शर्म के कारण किसी को कुछ नहीं कह पातीं और उनका परिवार तबाह होकर रह जाता है।

कहां है दड़े-सट्टे का मेन हब
दड़े-सट्टे की मेन हब बल्लभगढ़ में है। पूरे भारत से पैसा इकट्ठा कर बल्लभगढ़ भेजा जाता है, क्योंकि सट्टे का परिणाम भी वहीं से निकलता है जिसकी तारें दिल्ली, मुंबई, दुबई से जुड़ी हुई हैं। यह खेल आज का नहीं वर्षो पुराना है, मगर सरकारों का इस ओर ध्यान हीं नहीं है।

छोटा-मोटा धंधा करने वाले भी इसका शिकार
अपने परिवार का पालन-पोषण करने वाले व्यक्ति जो छोटा-मोटा धंधा करते हैं, वे भी सट्टा लगाने से गुरेज नहीं करते और कमाई के साथ-साथ अपनी जमा-पूंजी सट्टे में बर्बाद कर देते हैं। उनको यह नहीं मालूम कि उन्होंने 99 में से एक नंबर चुना है, जबकि 98 नंबर सटोरियों के हैं, मगर लालच ने आंखें बंद की हुई हैं। ये लोग अपना तो जीवन बर्बाद कर ही रहे हैं, अपने परिवार वालों को भी नारकीय जीवन जीने पर मजबूर कर रहे हैं। 


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