रेल हादसे के ‘जख्मों’ के लिए बंद हो गई सरकारी ‘दवा’

punjabkesari.in Tuesday, Nov 27, 2018 - 01:46 PM (IST)

 अमृतसर(सफर, नवदीप): विगत 19 अक्तूबर के दिन रावण दहन दौरान जौड़ा फाटक पर हुए हादसे में सैंकड़ों घरों की खुशियां खाक हो गईं। ग्राऊंड रिपोर्ट यह है कि रेल हादसे ने जहां मजदूरों से रोजी-रोटी छीन ली वहीं सरकार का दिया राशन भी खत्म हो गया है। इलाज के दरवाजे बंद हो गए हैं। ऐसे में रेल हादसों के जख्मों के लिए सरकारी दवा भी बंद कर दी गई है। इलाज के लिए जख्मी मोहताज हो रहे हैं। प्राइवेट व सरकारी डाक्टर इलाज के लिए फीस और दवा के लिए पैसों की डिमांड कर रहे हैं। रेल हादसे में घायल परिवारों पर आर्थिक संकट गहरा गया है। 50-50 हजार के चैक जो मिले थे, वे इलाज में ही कम पड़ रहे हैं। घायलों को सरकार की मदद की दरकार है। 

बाबू जी! सरकारी डाक्टर बोलते हैं सरकार ने पीछे से दवा बंद कर दी है

बाबू जी! सरकारी डाक्टर बोलते हैं सरकार ने पीछे से दवा बंद कर दी है। ऐसे में घायल इलाज के लिए मोहताज हो रहे हैं वहीं कर्ज लेकर अपने जिगर के टुकड़ों का इलाज करवा रहे हैं। मेरे दोनों बच्चे संतोष व अमित घायल हो गए थे। एक का प्राइवेट तो दूसरे का इलाज सरकारी अस्पताल में (जी.एन.डी.एच.) चला। कुछ दिन पहले छुट्टी दे दी गई। अब दोनों का इलाज उन्हीं पैसों से करवा रहा हूं जो सरकार ने चैक दिए हैं। सरकार ने वायदा किया था, सारा इलाज फ्री होगा लेकिन डाक्टर तो फीस भी नहीं छोड़ते। राम बहादुर कहने लगा कि वह भी घायल हुआ था लेकिन 1 पैसा भी इलाज के लिए नहीं मिला। संतोष की लिवर फट गया है जबकि अमित की हड्डी टूटी है, उसके पैर की हड्डी में भी फैक्चर है। संतोष की दवा 535 व अमित की दवा 600 रुपए की आती है जो एक सप्ताह ही चलती है। फ्री इलाज का ड्रामा क्यों किया गया। उसने आज से रेहड़ी लगा ली है, बच्चों का इलाज करवाकर रहूंगा, सरकार साथ दे या न दे। 

सरकार ने उनके साथ धोखा किया 

फूलचंद्र भी रेल हादसे में घायल हुआ था, कहता है कि सरकार ने उनके साथ धोखा किया है। डाक्टर बोलते हैं कि दवा के पैसे लगेंगे, सरकार ने ‘फूल’ बनाया। 818 रुपए की दवा खरीदकर लाया हूं। सरकार कहती थी कि गोद लिया है घरों को, कौन से घर में दोबारा राशन बांटने आए सरकार के नुमाइंदे, बताएं तो जरा। जब रेल हादसा हुआ तब तो हर रोज मंत्री आते रहे, आज कोई बात पूछने वाला नहीं है। आखिर यह सब सियासत तो ही है वर्ना जो बात जुबां से निकाली जाए उसे पूरा करना ही मर्दों वाली बात होती है। लेकिन यहां तो सब कुछ लीपापोती के चलते चैक बांटे गए। घर-घर राशन पहुंचाया गया। 

घर से उठ चुकी हैं 3 लाशें

राधा व प्रीति दोनों सगी बहनें हैं। राधा का परिवार सुल्तानपुर रहता है। राधा ने अपने बेटे का मुंडन करवाने के लिए श्री वैष्णो माता जाना था। उसके साथ प्रीति के परिवार ने भी जाना था। रेल हादसे में इस घर से 3 लाशें उठीं। दोनों बहनों ने जहां अपना सुहाग खो दिया।  वहीं 1 ने बेटे को भी खो दिया। सास शिवमति भी घायल हो गई। घायलों का इलाज 3 अस्पतालों में चला। तीनों की दवा 2 प्राइवेट अस्पताल व 1 सरकारी से कुल मिलाकर 2700 की आई है। प्रीति व राधा कहती हैं कि न रावण जलता न उनकी खुशियां छिनतीं। दीपक व उसका बेटा अंश दोनों रेल हादसे में जख्मी हुए थे। दीपक का इलाज प्राइवेट अस्पताल तो अंश का सरकारी अस्पताल में चला। दोनों को छुट्टी मिल गई है लेकिन दवा जारी है। सरकारी व प्राइवेट अस्पताल वालों ने फ्री दवा देना बंद कर दिया है। 900 रुपए की दवा दीपक बाहर से खरीद कर लाया। दीपक ने कहा कि सरकारें किस तरह से धोखा करती हैं, यह इस आपदा से जान लिया है।

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