पाक जेल में कछ यूं बीते कृपाल सिंह के दर्दनाक दिन, पल-पल बन गया था नासूर
punjabkesari.in Wednesday, Apr 20, 2016 - 01:22 PM (IST)
अमृतसर (दीपक): कृपाल सिंह की लाश के साथ आई उसकी निजी चीजों में एक माला, भारत से परिजनों की गई चिट्ठियां, अपने परिजनों के फोटो, लाल कपड़े में लिपटी एक पंखी, किताब और कपड़े भी शामिल हैं।
> वर्ष 1991 में कृपाल सिंह भारत की सेवा करने के लिए दुश्मन के किले में सेंध लगाकर जासूसी करने के लिए पाकिस्तान की सीमा पार तो कर गया, पर कुछ दिनों बाद जब कृपाल सिंह लाहौर की एक बस में सफर कर रहा था तो उसके पीछे बैठे खुफिया एजैंसियों के कुछ अधिकारियों ने उसकी हरकतों पर नजर रखते हुए उसे पकड़ लिया। पूछताछ के बाद साबित हुआ कि कृपाल सिंह भारतीय है।
> वर्ष 1992 में आतंकवाद विरोधी विशेष अदालत में उस पर बम कांड करने का मुकद्दमा चला तो वर्ष 1992 में कृपाल सिंह ने अपना पहला पत्र भारत में अपने परिजनों को लिखा।
> लाहौर जेल में अधिकतर समय बिताते हुए कृपाल सिंह ने काफी मेहनत की। जेल में और अपने इकट्ठे किए पैसों से जेल में खाने-पीने की दुकान भी खोली।
> वर्ष 2005 में अदालत ने कृपाल सिंह को सभी केसों से बरी कर दिया था, पर कृपाल सिंह का सम्पर्क अपनी बहन, भतीजों से लगातार बना रहा।
> मार्च 2008 में मानवाधिकार संगठन विभाग के पूर्व मंत्री, सदस्य यू.एन.ओ. जेल में कृपाल सिंह से पहले मिले और असलियत की जानकारी हासिल की।
> अप्रैल 2008 की असांट बर्नी भारत आए, कृपाल सिंह के परिजनों से मिलकर उसकी रिहाई का हलफनामा भरवाया। कोशिश तो बर्नी ने की पर कृपाल सिंह वापस भारत नहीं आ सका।
> 2008 तक परिजनों को खत आते रहे पर 2013 को सर्बजीत सिंह की मौत के बाद आज तक कृपाल सिंह का कोई भी पत्र परिजनों तक नहीं आया। फिर परिजनों से 7 वर्षों तक सम्पर्क टूट रहा।
> दिसम्बर 2015 को कृपाल सिंह ने अपने दोस्त संधू को भारत में पत्र लिखा कि मेरी तुरंत रिहाई की कोशिश की जाए।
> कृपाल सिंह का अंतिम खत जनवरी 2016 को उसके भतीजे अश्विनी कुमार को आया तो तंदरुस्त होने की बात लिखी, पर परिवार के लिए आखिरी खत उसकी यादों का सबूत है।

