सरकार ने पराली जलाने से रोकने की बजाय ईंट-भट्ठे 4 महीने बंद रखने का दिया आदेश

punjabkesari.in Friday, Sep 14, 2018 - 10:39 AM (IST)

अमृतसर (नीरज): पंजाब सरकार व प्रदूषण कंट्रोल बोर्ड की लाख कोशिशों के बावजूद गेहूं व धान की पराली जलने से रुकने का नाम नहीं ले रही है, क्योंकि कोई भी सत्ताधारी पार्टी अपने बड़े वोट बैंक किसानों को नाराज नहीं करना चाहती है। लेकिन किसानों के आगे बेबस सरकार ने ईंट-भट्ठा व्यापारियों पर अपना नादिरशाही आदेश जरूर सुना दिया है, जिसके तहत 4 महीने के लिए ईंट-भट्ठे बंद रखने के आदेश जारी किए गए हैं। प्रदूषण कंट्रोल बोर्ड की तरफ से जारी एक आदेश के अनुसार 1 अक्तूबर 2018 से लेकर 31 जनवरी 2019 तक पंजाब के सभी ईंट-भट्ठे बंद रखने के आदेश जारी कर दिए गए हैं, जिससे ईंट-भट्ठा व्यापारियों को करोड़ों रुपए का नुक्सान होने वाला है। हैरानी की बात यह भी है कि सरकार ने इस आदेश के पीछे हवाला दिया है कि जिस अवधि में ईंट-भट्ठे बंद रखने के लिए कहा गया है उस समय अवधि में धान की पराली बड़े पैमाने पर जलाई जाती है। इसलिए भट्ठे बंद किए जाएं। इस संदर्भ में 15 सितम्बर 2018 को पंजाब के सभी ईंट-भटठा मालिक एक बैठक भी करने जा रहे हैं जिसमें सरकार के इस आदेश के बारे में अगली रणनीति तैयार की जाएगी। व्यापारियों में इस बात का रोष है कि किसानों को पराली जलाने से रोकने की बजाय सीधा ईंट-भट्ठों को बंद करने का आदेश सरकार ने कैसे दे दिया।

एक टन पराली जलने से निकलती है 60 किलो कार्बन मोनोऑक्साइड प्रदूषण कंट्रोल विभाग के आंकड़ों के अनुसार पराली जलाने से खेतों में जैविक मादा खत्म हो जाता है और मिट्टी के मित्र जीव खत्म हो जाते हैं। इसके अलावा नाइट्रोजन, फासफोर्स व पोटाशियम खत्म होता है। एक टन पराली जलाने से 60 किलो कार्बन मोनोआक्साइड, 1400 किलो कार्बन डाइआक्साइड व 3 किलो बारीक कण, गंधर व सल्फर पैदा होती है जो मानव जीवन के लिए खतरनाक है। यदि इसी पराली को किसान खेतों में जला दें तो खेतों का उपजाऊपन बढ़ता है, खेतों में नमी बनी रहती है, नाइट्रोजन व अन्य जरूरी तत्व बढ़ते हैं। इसके अलावा खाद व कीड़ेमार दवाओं की जरूरत कम पड़ती है और फसल का झाड़ ज्यादा होता है।

अमृतसर में कुछ गांवों के किसान नहीं जलाते पराली
प्रदूषण कंट्रोल विभाग व जिला प्रशासन के समक्ष कुछ ऐसे किसान भी आए हैं जिन्होंने अपने खेतों की पराली को आग नहीं लगाई, जिसमें नबीपुर, भोऐवाल व नारोवाल के किसान शामिल हैं। यहां के किसान पराली नहीं जलाते हैं। किसानों ने बताया कि उनकी खेती खर्च कम आता है और फसल का झाड़ भी कई क्विंटल  बढ़ता जा रहा है।2,700 में से 300 ईंट भट्ठे ही अत्याधुनिक तकनीक से संचालित प्रदूषण कंट्रोल बोर्ड की तरफ से ईंट-भट्ठों में नई तकनीक लगाना जरूरी कर दिया गया है। पंजाब में 2,700 भट्ठों में से सिर्फ 300 भट्ठे ही नई तकनीक के साथ काम कर रहे हैं। नई तकनीक से काला धुआं बिल्कुल खत्म हो जाता है और वातावरण प्रदूषित नहीं होता है। विभाग की तरफ से कई कारखानों को सील किया जा चुका है जो प्रदूषण फैलाते थे।

सी.एन.जी. ऑटो के प्रस्ताव पर अभी तक नहीं मिली मंजूरी
हवा में प्रदूषण की बात करें तो सिर्फ गेहूं व धान के सीजन में पराली जलाने से निकलने वाले धुएं से ही हवा प्रदूषित नहीं होती है, बल्कि ऑटो, कंडम वाहनों, डीजल वाहनों के कारण भी हवा में भारी मात्रा में प्रदूषण फैलता है। पंजाब में लुधियाना, जालंधर व अमृतसर में तो हाईकोर्ट की तरफ से डीजल ऑटो को बंद किया जा चुका है। इस संबंध में पंजाब प्रदूषण कंट्रोल विभाग की तरफ से ऑटो चालकों को सस्ते लोन देकर सी.एन.जी. ऑटो देने संबंधी सरकार को प्रस्ताव भेजा जा चुका है, लेकिन इसको सरकार ने अभी तक मंजूरी नहीं दी है, उल्टा ईंट-भट्ठों पर जरूरत से ज्यादा सख्ती जरूर दिखा दी है। 

धान के सीजन में हर वर्ष जलाई जाती है 2 करोड़ टन पराली
धान की पराली की बात करें तो जहां पिछले कई वर्षों से पंजाब सरकार पराली से निकलने वाले धुएं को कंट्रोल करने का प्रयास कर रही है तो वहीं पंजाब में हर वर्ष धान के सीजन में 2 करोड़ टन पराली जलाई जाती है, जिससे वातावरण को जबरदस्त नुक्सान हो रहा है। पंजाब प्रदेश प्रदूषण कंट्रोल बोर्ड के लिए इस पराली से निकलने वाले धुएं को रोकना एक बहुत बड़ी चुनौती बन चुकी है। हर वर्ष जिला प्रशासन जिसमें खेतीबाड़ी विभाग, प्रदूषण कंट्रोल विभाग व एस.डी.एमज की तरफ से किसानों को जागरूक करने के लिए अभियान चलाया जाता है, जिसमें गांव-गांव जाकर किसानों को जागरूक किया जाता है कि वह पराली न जलाएं। यहां तक कि माननीय सुप्रीम कोर्ट की तरफ से भी व एन.जी.टी. की तरफ से भी पंजाब व हरियाणा सरकार को आदेश दिए गए हैं कि वह पराली को जलने से रोकें, लेकिन इसका सकारात्मक परिणाम आज तक नहीं निकल सका है। पंजाब की बात करें तो खेती प्रधान राज्य होने के नाते पंजाब में हर वर्ष 60 लाख एकड़ रकबे पर धान की बीजाई की जाती है जिसमें से 2 करोड़ टन पराली निकलती है।

सभी ईंट-भट्ठा व्यापारी सरकार के साथ हैं और प्रदूषण कम करने के लिए हर संभव प्रयास भी कर रहे हैं, लेकिन सरकार को एकदम से 4 महीने के लिए भट्ठे बंद करने का आदेश नहीं देना चाहिए था। एक भट्ठे पर आधुनिक तकनीक लगाने के लिए कम से कम 50 लाख से 60 लाख रुपये का खर्च आता है इस तकनीक को हैंडल करने के लिए स्किल्ड लेबर की भी जरूरत है जो नहीं मिल रही है। राज्य में 15 प्रतिशत भट्ठे नई तकनीक अपना चुके हैं और अन्य ईंट-भट्ठे भी नई तकनीक की तरफ जा रहे हैं, लेकिन इसके लिए कम से कम 2 से 3 वर्ष का समय चाहिए जो सरकार ने भट्ठा मालिकों को नहीं दिया है।
- मुकेश नन्दा, जिला प्रधान, अमृतसर ब्रिक क्लिन एसोसिएशन            

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