जलियांवाला बाग की ‘मिट्टी’ लेने पहुंची शहीद स्वाभिमान यात्रा

punjabkesari.in Saturday, Jun 16, 2018 - 01:01 PM (IST)

अमृतसर: ‘राष्ट्रपुत्र को दो सम्मान, मांग रहा हिन्दुस्तान’ इस नारे के साथ 23 मार्च 2018 को शहीद भगत सिंह के शहीदी दिवस पर इंडिया गेट नई दिल्ली से निकली ‘शहीद स्वाभिमान यात्रा’ 26 राज्यों से 85 दिनों में 18,500 किलोमीटर का सफर तय करके आज गुरु नगरी पहुंची।

शनिवार को जलियांवाला बाग में शहीदों की सबसे बड़ी स्थली से मिट्टी लेकर यह यात्रा दिल्ली वापस लौटेगी। इस यात्रा की अगुवाई संस्था के संस्थापक सुरेन्द्र सिंह बिधूड़ी कर रहे हैं। इस यात्रा को बीते 23 मार्च के दिन थल सेना अध्यक्ष जनरल विपिन रावत के आशीर्वाद लेकर मेजर जनरल अशोक नरूला ने हरी झंडी दिखाई थी। यह यात्रा भगत सिंह को शहीद करार देने के लिए निकाली गई है। 90 दिन में 29 राज्यों में 25 हजार किलोमीटर यह यात्रा तय करेगी।‘पंजाब केसरी’ से बातचीत करते हुए सुरेन्द्र सिंह बिधूड़ी कहते हैं कि देश को आजादी दिलाने के लिए 13 अप्रैल 1919 को जलियांवाला बाग के शहीदों ने ताल ठोकी थी, शहीद-ए-आजम भगत सिंह ने जलियांवाला बाग हत्याकांड के बाद देश की आजादी की लहर थाम ली थी।

यह यात्रा उस शहीद-ए-आजम को शहीद करार दिए जाने व राष्ट्रपुत्र का सम्मान करने के लिए निकाली गई है। दिल्ली में 200 फुट भव्य भगत सिंह की प्रतिमा की स्थापना करना उनका उद्देश्य है। भगत सिंह के साथ-साथ देश के सभी शहीदों को लेकर वो संग्रहालय बनाना चाहते हैं जहां एक छत के नीचे देश-दुनिया को वतन के शहीदों के बारे में जान सकें। शहीदों के परिवारों को मूलभूत सुविधाएं मिले, शहीदों की जीवनी बच्चों को पढ़ाई जाए। शहीदों की जयंती पर खेल-कूद का आयोजन स्कूलों में हो। 

सरकारें भगत सिंह को ‘शहीद’ नहीं मानतीं
देश की आजादी के लिए हंसते हुए फंदे पर झूलना आजादी के सिरफिरों के लिए भले ही खेल हो, लेकिन 23 मार्च 1931 के बाद शहीद भगत सिंह, सुखदेव व राजगुरु को लेकर राजनैतिक गलियारों में शहादत पर ‘खेल’ होता रहा। आज तक भगत सिंह सहित उनके 2 अन्य साथियों को केन्द्र सरकार ने शहीद का दर्जा नहीं दिया है। यह अलग बात है कि पंजाब सरकार ने 2013 में अमृतसर के भिखीविंड निवासीसरबजीत सिंह को शहीद का दर्जा दे दिया था। सुरेन्द्र सिंह बिधूड़ी कहते हैं कि अवाम को आवाज बुलंद करनी होगी, वर्ना देश के शहीदों को ‘सियासत’ बांट देगी। भगत सिंह को शहीद का दर्जा मिले साथ ही उसे ‘राष्ट्रपुत्र’ का सम्मान भी दिया जाए। 

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