डाक्टरों की गवाहियां हत्यारोपी पति के लिए बनीं वरदान

punjabkesari.in Tuesday, Sep 18, 2018 - 11:24 AM (IST)

अमृतसर (महेन्द्र): शादी के 11वें वर्ष जिस महिला की मौत को हत्या बता कर उसी के ही पति को हत्यारोपी बना दिया गया था।  बचाव पक्ष के कौंसिल द्वारा पेश किए गए तथ्यों के आधार पर इसे हत्या नहीं बल्कि एक प्राकृतिक मौत ही होने का दावा किया गया था। यही कारण है कि मामले की सुनवाई के दौरान डाक्टरों की महत्वपूर्ण गवाहियों एवं उनकी रिपोर्ट्स कथित हत्यारोपी पति के लिए कहीं न कहीं इस कदर वरदान साबित हुई कि स्थानीय अतिरिक्त जिला एवं सैशन जज अवतार सिंह की अदालत ने सभी पहलुओं पर गौर करने के पश्चात कथित हत्यारोपी पति को आखिर सोमवार को बरी कर दिया है।

स्थानीय ए-ब्लॉक, रणजीत एवेन्यू निवासी हरदीप कौर पत्नी अमर सिंह जोकि घटना के समय शारदा दिल्ली में रह रही थी, उसने 10 सितम्बर 2010 को स्थानीय पुलिस से शिकायत कर अपने बयान दर्ज करवाए थे कि उसकी भांजी परमिन्द्र कौर की शादी वर्ष 1999 में जिला तरनतारन के गांव वडिंग निवासी कुलदीप सिंह पुत्र कर्म सिंह के साथ हुई थी। उनकी कोई भी औलाद लड़का व लड़की नहीं थी। दोनों स्थानीय रणजीत एवेन्यू के सी-ब्लॉक में किराए पर रह रहे थे। उसका कहना था कि वह अक्सर अपनी भांजी से मिलने आया करती थी। इस दौरान वह अक्सर उसे बताया करती थी कि उनकी कोई औलाद न होने के कारण उसे ससुराल में बहुत परेशान किया जाता है।

उसके पति तो अपनी दूसरी शादी करने की भी बात करते रहते हैं। उसका कहना था कि सुबह 4 बजे ही उसे कुलदीप सिंह ने बताया था कि परमिन्द्र कौर को स्थानीय हरतेज अस्पताल में दाखिल करवाया गया था, जहां डाक्टरों ने उसे मृतक घोषित कर दिया था। शिकायकर्ता हरदीप कौर का कहना था कि परमिन्द्र कौर के गले पर गला दबाने के निशान दिखाई दे रहे थे। उसका कहना था कि कुलदीप सिंह ने ही अपनी पत्नी की गला दबा कर उसकी हत्या की है। इस शिकायत पर पुलिस ने मृतका के पति कुलदीप सिंह को हत्यारोपी के तौर पर नामजद कर उसके खिलाफ 10 सितम्बर 2010 को भादंसं की धारा 302 के तहत मुकदमां नंबर 407/2010 दर्ज किया था। 

हत्या का मामला बताने के पीछे छिपा था प्रॉपर्टी का भी मामला
मामले की सुनवाई के दौरान बचाव पक्ष के कौंसिल ने पहले तो शिकायकर्ता द्वारा लगाए गए आरोपों को गलत बताते हुए दावा किया कि मृतका अपने वैवाहिक जीन के सारे 11 वर्ष अपने पति के साथ ही रहती रही है, जिसके द्वारा अपने वैवाहिक जीवन में अपने पति व ससुराल के खिलाफ कहीं भी कोई शिकायत तक नहीं की गई थी। इस लिए परेशान करने के लगाए गए आरोपों को पूरी तरह से निराधार बताते हुए बचाव पक्ष के कौंसिल ने प्रमाण सहित बताया कि मृतका की कोई औलाद न होने के कारण उसके नाम पर जो भी कोई प्रॉपर्टी (जायदाद) थी, उसके पति व ससुराल से बचाने के लिए उसकी सगी बहनों ने अपने नाम पर ट्रांसफर करवा ली हुई थी।

इसी के चक्कर में प्राकृतिक मौत को हत्या का मामला बताते हुए मृतका के निर्दोष पति को ही गलत तरीके से हत्यारोपी के तौर पर नामजद करवा दिया गया था। इस संबंध में डिफैंस कौंसिल ने बताया कि मृतका की मैडीकल रिपोर्ट के आधार पर डाक्टरों ने अपनी गवाहियों में जहां इसे हत्या की बजाए प्राकृतिक मौत ही बताया था, वहीं एक निजी डाक्टर ने यहां तक भी अपनी गवाही दे दी थी कि परमिन्द्र कौर की वे बीमारी का इलाज करते रहे हैं। उसकी मौत से पहले भी उसकी तबीयत खराब ही थी। 

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