पहलवानों की ‘याद’ में दम तोड़ रहे हैं अखाड़े

punjabkesari.in Tuesday, Jun 12, 2018 - 12:46 AM (IST)

अमृतसर (स.ह., नवदीप) : वार्ड नंबर 50 के पार्षद गुरदीप सिंह का केवल गोलियों से सीना छलनी नहीं हुआ बल्कि अखाड़े को ऐसे घाव मिले हैं जो शायद कभी न भर सकें। जिस गुरदीप पहलवान को रेसलिंग स्टेडियम के प्रधान की ताजपोशी की तैयारियां चल रही थी, उसी पहलवान के साथ अखाड़े में गैंगस्टरों ने खून की होली खेली।

उत्तर भारत के प्रसिद्ध पहलवान सुरजीत सिंह पहलवान की ‘विरासत’ संभालने वाले गुरदीप सिंह ने अपने खून से अखाड़े को सींचा। 15 अगस्त आजादी दिवस पर गुरदीप पहलवान को रेसलिंग स्टेडियम के प्रधान की ताजपोशी के साथ-साथ अंतरर्राष्ट्रीय कुश्ती दंगल के आयोजन के पहले ही गुरदीप पहलवान ने आखिरी सांस इसी अखाड़े पर ली। ‘पंजाब केसरी’ ने गोल बाग स्टेडियम में 1982 में उत्तर भारत के पहला मैट अखाड़ा बनवाने वाले पूर्व शिक्षा मंत्री व डिप्टी स्पीकर एवं इतिहासकार प्रो. दरबारी लाल व अन्यों से जाना गुरु नगरी के अखाड़ों का इतिहास जाना। 

दारा सिंह जहां लड़ते थे ‘मल्लयुद्ध’ वहां बना श्री गुरु रविदास मंदिर 
दुनिया भर में पहले अखाड़े और बाद में टी.वी. चैनल व फिल्मों में बड़ा नाम कमाने वाले रुस्तमें जमां दारा सिंह हाल गेट के समीप जहां ‘मल्लयुद्द’ किया करते थे वहां अब श्री गुरु रविदास जी का मंदिर है। प्रो. लाल बताते हैं कि इस मंदिर वाले स्थल पर उत्तर भारत से लेकर अखंड भारत के पहलवानों के बीच मल्लयुद्ध व कुश्तियां हुआ करती थी। 

‘अमीर’ खेलों ने छीना कुश्ती का ‘सुहाग’
‘अमीर’ खेलों ने कुश्ती व कबड्डी का ‘सुहाग ’ छीन लिया। किसी जमाने में भारत के पास 2 यही खेल हुआ करते थे और मनोरंजन के साधन भी। समय के साथ-साथ बैडमिंटन, फुटबाल, हाकी, क्रिकेट जैसे खेलों के चलते अखाड़े सूने होने लगे। अंग्रेजों के जमाने में भी अखाड़े खूब रोशन हुआ करते थे, धीरे-धीरे सरकारों ने भी इस खेलों से मुंह फेरने लगे तो टी.वी. चैनलों से लेकर फिल्मों ने मनोरंजन के इस ‘खेल’ को ‘फ्लाप’ कर दिया, सोशल मीडिया भी जिम्मेदार है। बच्चों का बचपन अब सोशल मीडिया के साथ बीत रहा है और अखाड़े सूने हो रहे हैं। 

बच्चे दारा सिंह नहीं, सचिन, धोनी व धवन बनना चाहते हैं
स्कूलों से अखाड़े और किताबों से पहलवानों की कहानियां लुप्त हो गई हैं। यही वजह है कि आज का युवा दारा सिंह के बजाए सचिन तेंदुलकर, ए.एस धौनी, शिखर धवन आदि क्रिकेटरों की तरह तो बनना चाहते हैं लेकिन अखाड़े में आना नहीं चाहते। प्रसिद्ध सोहन पहलवान कहते हैं कि गुरु नगरी के पहलवानों की तूती दुनिया भर में हुआ करती थी। अमृतसर के पास दारा सिंह कैदी भी था, उसके हाथों एक पहलवान मारा गया था तब से उसकी तूती दारा सिंह कैदी के तौर पर बोलने लगी थी। गामा पहलवान व दारा सिंह के नाम से दुनिया के पहलवानों की घिग्गी बंध जाया करता थी, लेकिन आज का युवा अखाड़े से दूर हो रहा है। यह अखाड़े व पहलवानों के लिए शुभ संकेत नहीं है।  
 

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