‘धंधा है पर गंदा है’: सड़कों पर भटक रहा मासूम बचपन मुजरिम या नशेड़ी क्यों नहीं बनेगा ?

punjabkesari.in Monday, May 28, 2018 - 12:11 PM (IST)

बठिंडा (बलविंद्र): ‘भीख मांगना एक धंधा बन चुका है, यह धंधा पर गंदा है’। शायद भारत ही एक ऐसा देश है, जहां मासूम बचपन सड़कों पर भटक रहा है। फिर इसे कैसे यकीनी बनाया जाए कि यह बचपन बड़ा होकर मुजरिम या नशेड़ी नहीं बनेगा? भले ही सरकार व प्रशासन ही इस बारे पूरी तरह जिम्मेदार हैं, परन्तु कोई भी अपनी जिम्मेदारी समझने के लिए तैयार नहीं। समय की जरूरत है कि इस मामले को बाल मजदूरी से भी पहले उठाया जाए। 

कोई फायदा नहीं मुद्दे उठाने का, सरकार हो चुकी है बहरी : सोनू महेश्वरी
नौजवान वैल्फेयर सोसायटी बठिंडा के अध्यक्ष सोनू महेश्वरी का कहना है कि ऐसे मुद्दे उठाने का कोई फायदा नहीं, क्योंकि सरकार बहरी हो चुकी है। उन्होंने कहा कि बच्चों का भीख मांगना ही गलत नहीं, बल्कि बच्चों को तरस के आधार पर भीख देना भी गलत है, क्योंकि जब कोई जवान भीख मांगता है तो उसे जवाब मिलता है ‘हट्टा-कट्टा है कोई काम क्यों नहीं करता’। क्यों भाई अब आप उसे भीख क्यों नहीं दे सकते, आपने ही तो बचपन में भीख देकर उसको नकारा बनाया है। अब उसको काम करने की आदत ही नहीं है। इसके अलावा सरकार या प्रशासन ने भी इस बारे कोई कदम नहीं उठाया। उन्होंने अनेक बार बैठक में यह मुद्दा उठाया है कि बाल मजदूरी से पहले बच्चों को भीख मांगने से रोका जाए, ताकि वे बड़े होकर मुजरिम या नशेड़ी न बन जाएं। 

क्या कहते हैं प्रशासनिक अधिकारी
प्रशासनिक अधिकारियों का कहना है कि बच्चों से भीख मंगवाना जुर्म है, जिसको रोकने के लिए पुलिस और सिविल प्रशासन हमेशा प्रयास करता रहता है। गरीब बच्चों की पढ़ाई के लिए सरकार ही नहीं, बल्कि समाज सेवी संस्थाएं भी यत्न करती रहती हैं। इस मामले को ओर भी गंभीरता से लिया जाएगा। 

यह क्या हो रहा है
आम तौर पर देखा जाता है कि ट्रैफिक सिग्नल, रेलवे स्टेशन, बस स्टैंड, बाजार या अन्य जनतक जगहों पर मासूम बचपन भीख मांगता दिखाई देता है। कोई शक नहीं कि भीख मांगना उन्होंने मां के पेट से नहीं सीखा और न ही उनके माता-पिता यह चाहते हैं, पर भीख मांगना भी उनके लिए धंधा बन चुका है, क्योंकि वह इसके लिए बकायदा समय पर घर से निकलते हैं और समय पर वापस लौटते हैं। विभिन्न समयों पर विभिन्न जगहों पर ड्यूटी की तरह ड्यूटी दी जाती है। जो भी कमाई होती है, उसको बकायदा तरीके से खर्च किया जाता है। यह धंधा गरीब पेरैंट्स की मजबूरी बन चुका है। आज के मजबूर बच्चे कल को मुजरिम ही बनेंगे, क्योंकि ये बड़े होकर पढ़े-लिखे न होने की सूरत में कोई अच्छा काम नहीं कर सकेंगे, जबकि भीख मांगना तब इनके लिए शर्मनाक होगा, इसलिए बड़ी गिनती में बच्चे बड़े होकर मुजरिम या नशेड़ी जरूर बन जाएंगे। छोटे बच्चों को तरस के आधार पर भीख देने का मतलब है, इसे उत्साहित करना, इसलिए एक शहर से बच्चा अगवा कर दूसरे शहरों में भेजा जाता है। इसे भीख मांगने के धंधे में धकेल दिया जाता है, लेकिन आम तौर पर पुलिस गरीब माता-पिता के बच्चे कहकर कोई छानबीन भी नहीं करती। अगर छानबीन हो तो इस संभावना से इंकार नहीं किया जा सकता कि कुछ बच्चे अगवा कर ही लाए गए मिलेंगे। बचपन में भीख मांगने वाले बड़े होकर मुजरिम और नशेड़ी बनते हैं। नौजवान खुद यह बात मानते हैं कि उनको कोई काम न मिलने के कारण ही वह जुर्म की दुनिया में दाखिल हो गए, जहां वापस से लौटना असंभव है। 

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