शहर में गुपचुप तरीके से चल रहा लिंग जांच का कारोबार

punjabkesari.in Thursday, May 10, 2018 - 10:49 AM (IST)

बठिंडा(आजाद): लड़का हो या लड़की वैसे तो इन दोनों में कोई फर्क नहीं होता है, लेकिन हमारा पुरुष प्रधान समाज लड़कों को ज्यादा तरजीह देता है। यही वजह है कि आज भी लड़कियों को जन्म लेने से पहले ही कोख में मार दिया जाता है। शहर के अल्ट्रासाऊंड केंद्र अनगिनत अजन्मी लड़कियों को जान से मारने में अहम रोल अदा करते हैं क्योंकि केंद्र के संचालक चंद रुपयों के लालच में आ कर लड़की न चाहने वाले दंपति का गुपचुप तरीके से लिंग परीक्षण करते हैं।

अगर जांच में पता चल जाता है कि जन्म लेने वाला बच्चा लड़की है तो जांच के एवज में मोटी रकम वसूलते हैं और उसका गर्भपात करने से भी गुरेज नहीं करते। इस अपराध में जाने-अनजाने स्वास्थ्य विभाग के अधिकारी भी शामिल होते हैं। अगर स्वास्थ्य विभाग के अधिकारी चौकन्ना और सक्रिय रहें तो भ्रूणहत्या पर अंकुश लगाना कोई बड़ी बात नहीं है। स्वास्थ्य विभाग के उदासीन रवैये की वजह से ही शहर व गांव में अल्ट्रासाऊंड केंद्रों की गतिविधियों पर शिकंजा कसना अब भी चुनौती बना हुआ है। अल्ट्रासाऊंड केंद्रों की मॉनीटरिंग नहीं करने का नतीजा है कि सैंटरों पर अब खुलेआम लिंग परीक्षण का खेल खेला जा रहा है। केंद्र अपनी मनमानी करने पर तुले हुए हैं। ऐसे में सरकार की भ्रूण ङ्क्षलग परीक्षण की जांच पर लगाम कसने की मुहिम को गहरा झटका लग रहा है। फिलहाल अल्ट्रासाऊंड संचालकों द्वारा ङ्क्षलग परीक्षण की आड़ में खुलेआम गर्भपात का रैकेट बिना रोकटोक के बदस्तूर जारी है । 

अल्ट्रासाऊंड संचालकों के हौसले बुलंदं 
शहर में कितने अल्ट्रासाऊंड केंद्र संचालित हो रहे हैं, इसकी जानकारी स्वास्थ्य विभाग के पास नहीं है। लेकिन एक अनुमान के मुताबिक जिले में 100 से अधिक अल्ट्रासाऊंड केंद्र संचालित हो रहे हैं। पंजीकृत अल्ट्रासाऊंड केंद्र का डाटा उपलब्ध न होने का नतीजा है कि स्वास्थ्य विभाग इन सैंटरों पर छापामारी नहीं कर पा रहा। गौरतलब है कि इस गोरखधंधे में कई जिम्मेदार अधिकारियों के जुड़े होने के वजह से ही इन अल्ट्रासाऊंड संचालकों के हौसले बुलंद हैं।

 

2 वर्ष से नहीं हुई कोई कार्रवाई
स्वास्थ्य विभाग की सुस्ती का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि पिछले 2 सालों में कोई भी अल्ट्रासाऊंड केंद्रों की लाइसैंस की जांच नहीं हो पाई है और न ही छापामारी कर लिंग परीक्षण करने वालों को पकड़ा गया है। 

औसत से अधिक गर्भपात
सूत्रों की मानें तो पिछले साल गर्भवती महिलाओं में 500 से भी अधिक महिलाओं का गर्भपात हुआ है। जबकि औसत के अनुसार 100 में 5 महिलाओं का ही गर्भपात होना चाहिए, वह भी हाईरिस्क प्रैग्नैंसी वाली महिलाओं की। इन महिलाओं में अधिकांश ने ङ्क्षलग परीक्षण के बाद ही गर्भपात कराया है। इस गोरखधंधे के नैटवर्क में सरकारी अस्पताल की कई महिला डॉक्टर और स्टाफ भी शामिल होते हैं जो इन सैंटरों पर आने वाली गर्भवती को गर्भपात कराने में अहम किरदार अदा करते हैं। सरकारी कर्मचारियों का संबंध उन अल्ट्रासाऊंड केंद्रों से होता है, जहां  लिंग परीक्षण होते हैं। 

 

 


 


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