प्रत्येक वर्ष बदलता जा रहा है लोहड़ी मनाने का त्यौहार, नहीं दिख रहे पुराने रीति-रिवाज

punjabkesari.in Sunday, Jan 13, 2019 - 10:11 AM (IST)

गुरदासपुर (हरमनप्रीत): हर साल पौष महीने की अंतिम रात को मनाए जाते लोहड़ी के त्यौहार की पृष्ठभूमि से कई ऐतिहासिक और अन्य घटनाएं जुड़ी हुई हैं, मगर लोग इस त्यौहार की पृष्ठभूमि से अनजान होते जा रहे है। खास तौर पर नौजवान पीढ़ी न सिर्फ त्यौहारों की महत्ता को भूलती जा रही है, बल्कि इसे मनाने के आए दिन नए तरीके अपनाए जाने लगे हैं। 

पिछले कुछ वर्षों से स्थिति यह बन चुकी है कि आधुनिक दौर में अब अपने परिवार समेत लोहड़ी का त्यौहार मनाने का रुझान कम होता जा रहा है। कुछ दशक पहले न सिर्फ परिवारों के सदस्य एकत्रित होकर लोहड़ी मनाते थे, बल्कि आसपास के लोग भी एक-दूसरे के साथ मिलकर लोहड़ी का जश्न मनाते थे। नौजवानों और बच्चों के लिए लोहड़़ी का त्यौहार सिर्फ जश्न मनाने तक ही सीमित होकर रह गया है। इस त्यौहार से जुड़े रीति-रिवाजों से दूर होते जा रहे नौजवान लोहड़ी वाले दिन सिर्फ ऊंची आवाज में डी.जे. चला कर पतंगबाजी करने तक सीमित हो गए हैं, जबकि कुछ बड़ी आयु के व्यक्ति व नौजवान लोहड़ी वाले दिन मीट-शराब बनाकर पार्टिंयां करने में व्यस्त हो जाते हैं।

लड़कियों की लोहड़ी
भीषण सर्दी के दिन आते ही लोहड़ी के त्यौहार की खुशियां मनाने के मामले में तसल्ली की बात यह है कि पुराने समय में लोग सिर्फ लड़कों के जन्म व शादी की खुशी में ही घरों में लोहड़ी के जश्न बड़े स्तर पर मनाते थे, मगर अब अनेक परिवार ऐसे भी देखने को मिलते हैं, जो अपने घरों में लड़कियों के जन्म होने और लड़कियों के विवाह की खुशी में लोहड़ी मनाते व बांटते हैं।

लोहड़ी से जुड़े लोक गीत लुप्त होने के कगार पर
लोहड़ी से जुड़े कई लोक गीत और कहानियों से भी नौजवान पीढ़ी दूर हो चुकी है। अब कोई ही बच्चा होगा, जिसको लोहड़ी से जुड़ी कोई कहानी, गीत का पता होगा। बहु-संख्या में बच्चों को मोबाइल फोन ने इस कदर उलझा दिया है कि वे अपने पृष्ठभूमि व सभ्याचार को भूलते जा रहे हैं। यह भी देखने को मिलता था कि नवजन्मे बच्चों के गर्दन में मूंगफली और ऐसे अन्य सामान के हार बनाकर डाले जाते थे, मगर अब वह रिवाज व शौक भी खत्म होता दिखाई दे रहा है।

लोहड़ी मांगने का रुझान भी गायब  
कुछ साल पहले तो गांवों, कस्बों और शहरों में लोहड़ी से एक दिन पहले ही छोटे बच्चों से लेकर नौजवानों की टोलिया घरों में लोहड़ी मांगती दिखाई देती थीं। यहां तक कि प्रत्येक जाति, धर्म और वर्ग के लोग इस त्यौहार पर किसी भी तरह की शर्म किए बिना अपने सगे-संबंधियों व गांव वासियों से लोहड़ी मांगते थे, मगर अब लोहड़ी मांगने का रुझान गायब हो चुका है और लोहड़ी मांगने का रुझान एक रीत की बजाए कुछ गरीब परिवारों के बच्चों की जरूरत तक सीमित हो चुका है।

जंक फूड ने लिया विभिन्न पकवानों का स्थान
लोहड़ी वाले दिन लोग गुड़, रेवडिय़ां, चिवड़े, गन्ने के रस की खीर जैसी कई खाने-पीने वाली वस्तुएं अपने घरों में लाकर शाम के समय लोहड़ी को जलाते हुए इकट्ठे बैठकर वस्तुएं खाते थे, लेकिन अब खाने-पीने का शौक भी बदलता जा रहे है और लोहड़ी वाले दिन न सिर्फ मीट-शराब वाली दुकानों पर भारी भीड़ रहती है, बल्कि भारी संख्या लोगों द्वारा जंक फूड को प्राथमिकता जाने से इन दुकानों पर भी भारी भीड़ रहती है। 

 

swetha