चाइना की रोशनी में गुम हुए मिट्टी के दीए

punjabkesari.in Wednesday, Oct 23, 2019 - 04:55 PM (IST)

बटाला(साहिल): दीवाली पर बाजार में रंग-बिरंगी लाइटें आकर्षण का केन्द्र बनी हुई हैं, पर अभी भी कई प्रजापतों ने अपनी पुश्तैनी परंपरा निभाते हुए दीवाली के अवसर पर मिट्टी के दीए व अन्य सामान बना कर बेचना बंद नहीं किया है और आज भी गांव के साथ-साथ शहरों में भी कुम्हार मिट्टी का सामान तैयार कर रहे हैं, पर अब यह धंधा मुनाफे वाला नहीं रहा। 

इस संबंध में क्षेत्र का दौरा किया तो इस धंधे से संबंधित विजय कुमार ने बताया कि आज से लगभग डेढ़ दशक पहले कम रेट पर भी सामान बेच कर वे अच्छा मुनाफा कमा लेते थे, पर अब चाहे सामान के भाव बढ़ गए हैं, पर उनके मुनाफा कम हो गया है। उसने बताया कि अब हाथ वाले चक्क के स्थान पर बिजली की मोटर वाला चक्क अधिक प्रयोग किया जाता है जिससे बिजली का भी काफी खर्च होता है।

उन्होंने यह भी बताया कि मिट्टी के बर्तन, दीए व अन्य सामान बनाने के लिए खास किस्म की चिकनी मिट्टी प्रयोग की जाती है, जो किसी समय आसानी से मुफ्त या नाममात्र खर्च पर मिल जाती थी। अब यह मिट्टी काफी महंगी मिलती है।

सरकारों ने नहीं थामा प्रजापतों का हाथ
कई प्रजापतों ने अपनी कमजोर आर्थिक स्थिति और इसे भूलते जाने के संबंध में समय-समय की सरकारों को कोसते हुए कहा कि उनका कभी सरकारों ने हाथ नहीं थामा जिस कारण आने वाली पीढ़ियां इस काम से अपना मुंह मोड़ रही हैं। उन्होंने अपील की कि उनकी ओर सरकारें ध्यान दें। 

घटती जा रही कारीगरों की संख्या
चाहे किसी समय दीवाली में लोग ज्यादा मिट्टी के दीयों को प्राथमिकता देते थे, पर आज जब चाइना ने बाजार में अपने पैर पसार लिए हैं तो मिट्टी के बर्तनों का काम काफी कम हो गया है जिसके कारण मिट्टी के बर्तन बनाने वाले कारीगरों की संख्या दिन-प्रतिदिन घटती जा रही है।

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Sunita sarangal