पहले सेना में दी सेवाएं, अब सी.एच.सी. सुजानपुर में मरीजों के इलाज में जुटे मेजर डा. विजय

punjabkesari.in Monday, Sep 02, 2019 - 11:14 AM (IST)

सुजानपुर(ज्योति):अक्सर देखने व सुनने में आया है कि सरकारी अस्पतालों के डाक्टर अक्सर अपनी ड्यूटी समय से पहले ही ड्यूटी से फुर्र होकर पैसा कमाने हेतु अपने क्लीनिक या फिर अपने निजी अस्पतालों में निकल जाते हैं।

वहीं दूसरी ओर कुछ माह पूर्व ही सेना से रिटायर होकर कम्युनिटी हैल्थ सैंटर (सी.एच.सी.) सुजानपुर में आए मेजर डा. विजय बुद्धवार अपनी ड्यूटी ही नहीं बल्कि ड्यूटी के बाद भी अतिरिक्त समय व छुट्टी के दिन भी अपने परिजनों को समय न देकर अस्पताल में आकर अपनी ड्यूटी कर दीन-दुखियों की सेवा कर रहे हैं। शायद ऐसे ही डाक्टरों के कारण डाक्टर को भगवान का दूसरा रूप भी कहा जाता है। मेजर डाक्टर विजय बुद्धवार ने पंजाब केसरी से विशेष भेंट वार्ता दौरान बताया कि उनकी पत्नी भी मेजर डाक्टर शैली वर्मा आंखों की माहिर डाक्टर हैं जोकि सेना से सेवा मुक्त होकर सिविल अस्पताल पठानकोट में अपनी सेवाएं दे रही हैं और उनका एक 6 वर्ष का बच्चा साकेत बुद्धवार है, जोकि पहली कक्षा का विद्यार्थी है। हमारे ड्यूटी जाने पर अक्सर उसकी देख-रेख दादा-दादी द्वारा की जाती है। 

उल्लेखनीय है कि डाक्टर विजय बुद्धवार ने 17 दिसम्बर 2018 को कम्युनिटी हैल्थ सैंटर सुजानपुर में बतौर मैडीसिन स्पैशलिस्ट डाक्टर का चार्ज संभाला था। तब से कम्युनिटी हैल्थ सैंटर में ओ.पी.डी. दिन-प्रतिदिन बढ़ रही है। ऐसा महसूस हो रहा है जैसे की स्थानीय लोगों को पिछले लम्बे समय से एक ऐसे डाक्टर का इंतजार था, जोकि अब पूरा हो गया है। वहीं कम्युनिटी हैल्थ सैंटर को वर्ष 2000 में शहीद दविन्द्र सिंह कम्युनिटी हैल्थ सैंटर का नाम तो दे दिया गया था, परंतु वहां पर शहीद दविन्द्र सिंह के नाम की कोई भी यादगार को स्थापित नहीं की गई थी और डा.बुद्धवार के प्रयासों के चलते शहीद की यादगार स्थापित की गई और जिसका अनावरण 19 अगस्त को जिलाधीश पठानकोट द्वारा किया गया। यहां अन्य डाक्टरों ने डाक्टर विजय बुद्धवार की भांति अपनी ड्यूटी देनी शुरू कर दें और सरकार उन्हें उपचार हेतु पर्याप्त साधन उपलब्ध करवा दे तो सरकारों को आयुष्मान जैसी योजनाएं शुरू कर मरीजों को निजी अस्पतालों में भेजने की जरूरत न पड़े। ऐसे में जहां सरकारों को ऐसे डाक्टरों का सहयोग कर उन्हें प्रोत्साहन करना चाहिए, जिससे अन्य डाक्टरों का मनोबल भी उंचा होगा। 

स्कूल से पैदा हुआ सेना में भर्ती होकर देश सेवा का जज्बा 
डा. विजय ने बताया कि उन्होंने अपनी 10वीं तक की शिक्षा जिला पठानकोट के महाराणा प्रताप आदर्श विद्यालय से प्राप्त की व 11वीं, 12वीं की शिक्षा पठानकोट के ए.वी. कालेज व एम.बी.बी.एस. सरकारी मैडीकल कालेज अमृतसर से की थी। जिस दौरान वह सेना में भर्ती हुए इसके पश्चात एम.डी. मैडीसिन आई.एन.एच.एस. अश्विनी मुम्बई से की जोकि भारतीय नौसेना का सबसे बड़ा अस्पताल है।  उन्होंने बताया कि वह अपने स्कूल के नाम से बहुत प्रभावित थे, यदि हमारे स्कूल का नाम इतनी महान शख्सियत के नाम पर रखा गया है कि मुझे भी उनके आदर्शों पर चलकर देश के लिए कुछ करके दिखाना है, जिसके चलते सेना में भर्ती होकर देश सेवा का जज्बा स्कूल से ही पैदा हो गया था। 

सेना से मिली समय की पंक्चूएलिटी (पाबंद) व अनुशासन 
मेजर बुद्धवार ने बताया कि उन्हें समय की पंक्चूएलिटी (पाबंदी) व अनुशासन सेना से मिला है डाक्टर बुद्धवार ने बताया कि सेना में भर्ती होने पर उन्हें देश भक्ति के साथ-साथ समय का पाबंद होना व अनुशासन भी सिखाया गया, सेना में प्रत्येक काम अनुशासन में रहकर समय पर ही करना पड़ता है। ऐसा न करने पर अधिकारियों द्वारा सजा भी दी जाती थी। जिसके चलते वह समय के पाबंद और अनुशासनात्मक हो गए। उन्होंने बताया कि वह कम्युनिटी हैल्थ सैंटर में तैनात होने से पहले सेना की मैडीकल कोर में डाक्टर थे। उन्होंने सेना में अपने 5 वर्ष के कार्यकाल दौरान 20 माह सियाचीन ग्लेशियर के अस्पताल में बिताए और 10 माह ग्लेशियर की अलग-अलग पोस्टों पर तैनात रहकर जवानों का उपचार करते थे। जबकि बाक ी के 30 माह मामून छावनी में बिताए। सेना से रिटायर होने के बाद आज भी समय के पंक्चुएल व अनुशासन में रहते अपनी ड्यूटी कर रहे हैं। 

परिवार से मिला जरूरतमंदों की सेवा करने व अधिक से अधिक  शिक्षा का ज्ञान बांटने का जज्बा  
मेजर बुद्धवार ने बताया कि उनमें जरूरतमंद व दीन दुखियों की सेवा का जज्बा अपने परिवार को देखते हुए ही पैदा हुआ है क्योंकि उनके दादा कृष्ण लाल बुद्धवार जिला अमृतसर के गांव जैंतीपुर के नंबरदार थे व दादी अज्ञावंती बुद्धवार घरेलु महिला थीं। दादा अक्सर लोगों की सेवा में जुटे रहते थे। उसके पश्चात पिता विनोद बुद्धवार मलिकपुर में स्थित सरकारी सीनियर सैकेंडरी स्कूल में डी.पी. के अध्यापक थे और वह प्रतिदिन समय पर स्कूल जाते थे। पिता की हमेशा से यही सोच रही है कि बच्चों को नि:शुल्क में अधिक से अधिक  शिक्षा का ज्ञान बांटा जाए ताकि वह अपने जीवन में भविष्य को उज्ज्वल बना सके। वह भी उनकी नक्शे कदमों पर चलते हुए सेना से रिटायर्ड होकर सिविल में कम्युनिटी हैल्थ सैंटर में डाक्टर के रूप में नि:स्वार्थ सेवा भावना के साथ दीन-दुखियों की सेवा में जुटे हैं। यही नहीं उनकी 3 बहनें भी हैं जो सरकारी अध्यापक हैं और वे भी पिता के नक्शे कदम पर चलते हुए बच्चों को अधिक से अधिक  शिक्षा का ज्ञान बांट रही हैं ताकि सभी बच्चे अपने भविष्य को उज्ज्वल बना सकें। 

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