रमणीक पहाडियों में बसा ‘नूरपुर’ का ऐतिहासिक किला अपने अंदर समेटे है स्वर्णिम इतिहास

punjabkesari.in Monday, Dec 10, 2018 - 12:50 PM (IST)

पठानकोट (शारदा): नगर से करीब 26 किलोमीटर दूरी पर देवभूमि की रमणीक पहाडियों में बसा नूरपुर का ऐतिहासिक किला पठानकोट क्षेत्र का स्वर्णिम इतिहास खुद में समेटे हुए है। कालांतर में पठानकोट व नूरपुर के आपस में गहरे संबंध थे तथा यह शहर राजनीतिक व ऐतिहासिक गतिविधियों का केंद्र रहा है। मौजूदा समय में बेशक यह ऐतिहासिक किला निरंतर उपेक्षा के चलते खंडहर बनने की ओर अग्रसर है परन्तु आज भी देसी-विदेशी सैलानियों के लिए आकर्षण का केन्द्र बना हुआ है।

इसके इतिहास पर नजर दौड़ाएं तो इस शहर का पुराना नाम धामड़ी था। यह समूचा एक ही राज घराने से संबंधित इलाका था। नूरपुर व पठानकोट में पेठन राजपूत का राज था, जिन्हें पठानिया भी कहा जाता था। इन दोनों ही क्षेत्रों का इतिहास बहुत पुराना है। प्राचीन ग्रंथों में भी इन शहरों का जिक्र मिलता है। नूरपुर राज्य के निकट सिकंदर की लड़ाई भारतीय शासकों के साथ हुई थी। इसमें भारी तादाद में भारतीय राजाओं के सैनिक मारे गए थे। 1595 में पेठन (पठानिया) राज्य के राजा वासू ने धामड़ी (नूरपुर) बदल दी। इसके बाद भी पठानिया वंश ने काफी देर तक शासन किया। 

पठानकोट जब नूरपुर की राजधानी थी तो उस समय शिमला पहाड़ी का किला पठानकोट में मौजूद था। इस किले के खंडहर काफी मात्रा में आज भी मौजूद हैं। बाद में पठानिया वंशजों ने नूरपुर को अपनी राजधानी बना दिया। 16वीं शताब्दी में पठानिया राजाओं ने धामड़ी (नूरपुर) में अपना ऐतिहासिक किला (जो अब भी खंडहर के रूप में मौजूद है) बनाया। इस किले को पहाड़ी पत्थरों को तराश कर पहाड़ पर ही बनाया गया था।

ऐतिहासिक तथ्यों पर शोध करने वाले लेखकर हरेश कुमार सैनी ने इस किले के तथ्यों को खंगालते हुए बताया कि मुगल सम्राट जहांगीर की पत्नी जब नूरपुर में पहली बार आई तो इस धामड़ी शहर का नाम बदल कर नूरपुर रख दिया था। नूरजहां को नूरपुर का किला व इसकी आबोहवा इतनी पसंद आई कि वह नूरपुर रहना चाहती थी तथा किले का और निर्माण करना चाहती थी परन्तु स्थानीय राज्य इसके पक्ष में नहीं थे कि यह स्थान मुगल गतिविधियों का केन्द्र बने। 

भारतीय राजवंश मुगलों की नूरपुर में उपस्थिति को गुलामी समझते थे इसलिए उन्होंने ऐसी मनोवैज्ञानिक रणनीति बनाई कि बिना लड़ाई लड़े ही मुगल नूरपुर से चले गए तथा उनके साथ ही नूरजहां भी यहां से रुखसत हो गई। मुगलों को यहां से भगाने के लिए मनोवैज्ञानिक युद्ध का सहारा लिया गया, जबकि नूरजहां यहां से जाना नहीं चाहती थी, इसलिए राजपूत राजाओं ने किले अंदर कार्य करने वाले सभी मजदूरों जो कि गिलड़ (गले की) बीमारी से ग्रस्त थे, को लगा दिया। उस समय यह बीमारी आम थी। 

जब नूरजहां ने किले में बीमार मजदूरों को कार्य करते व उनके लटकते हुए गलों को इस स्थिति में देखा तो इसका कारण पूछा। इस पर मनोवैज्ञानिक दबाव बनाते हुए राजपूत राजाओं ने तर्क दिया कि इस क्षेत्र की आबोहवा ही ऐसी है कि यह बीमारी आम लग जाती है। राजपूत राजाओं ने तर्क दिया कि अगर वह (नूरजहां) व उनके अधिकारी अधिक समय तक वहां रहे तो उन्हें इस बीमारी का शिकार देर-सवेर होना पड़ सकता है। यह सुनकर नूरजहां व उनके अधिकारी भय के मारे घबरा गए। 

चूंकि नूरजहां को अपनी सुंदरता पर मान था इसलिए इस बीमारी का शिकार होने का भय उसे सताने लगा। इसी भय से ङ्क्षचतित होकर नूरजहां व उनके अधिकारियों का काफिला वहां से चला गया। लेखक हरेश के अनुसार इस मनोवैज्ञानिक युद्ध के चलते नूरपुर क्षेत्र व किला बिना युद्ध व खूनखराबे के राजपूत राजाओं के पास ही रह गया। 1849 में यह किला अंग्रेजों के अधीन आ गया। 

अंग्रेजी हुकमरान इस किले का बहुत सारा साजोसामान उठाकर अन्य स्थानों पर अपने प्रयोग हेतु ले गए। आज यह किला पूरी तरह खंडहर में तबदील होने की ओर अग्रसर है। इसका रख रखाव पुरात्व विभाग के अधीन है। नूरपुर (धामड़ी) का यह किला हिन्दोस्तान, पंजाब व पठानकोट तथा नूरपुर राज्य के स्वर्णिम इतिहास का स्रोत है।

किले के अंदर थे कई खुफिया दरवाजे
किले के मुख्य द्वार पर भारतीय कला का बेजोड़ नमूना मौजूद है। किले के अंदर कई स्थानों पर विभिन्न प्रकार के पत्थरों पर चित्र उकेरे गए हैं जो आज भी अपनी ओर लोगों को आकॢषत करते हैं। यह चित्र उस समय की हस्त कला का शानदार नमूना है जो दर्शाती है कि 16वीं सदी में भारतीय हस्त कला स्वर्णिम दौर में थी। किले के अंदर हवा-पानी का समुचित प्रबंध भी देखने को मिलता है। 

नूरपुर का किला ऊंची पहाड़ी पर बनाया गया था, जोकि सुरक्षा की दृष्टि से बेहद सुरक्षित एवं उपयुक्त था। किले के अंदर सुरक्षा कर्मियों के पहरा देने का भी खास प्रबंध था तथा किले से चहुं ओर दुश्मनों की गतिविधियों पर नजर आसानी से रखी जा सकती थी। किले में पानी के प्रयोग हेतु सुंदर तालाब तथा कुंआ आज भी देखने को मिलता है। किले के अंदर से सुरक्षित निकलने के कई खुफिया दरवाजे थे। किले की दीवारों के करीब आज भी नूरपुर थाना, कचहरी व अन्य कार्यालय मौजूद हैं जो इस किले की महत्ता उजागर करते हैं। किले अंदर कुछ बिल्डिंग मुगल काल में बनाई गई थीं और कुछ सिक्ख राज्य समय अस्तित्व में आई थी।

swetha