बच्चों के सिर चढ़ बोल रहा PUBG  का जादू

punjabkesari.in Tuesday, Feb 12, 2019 - 10:27 AM (IST)

गुरदासपुर (हरमनप्रीत): स्मार्ट फोन पर विभिन्न आयु के लोगों द्वारा खेली जाने वाली कई खतरनाक गेम यहां पहले ही लोगों की जान लेने के अलावा बच्चों को मानसिक तौर पर कमजोर कर चुकी है। वहीं अब फिर से कुछ नए मोबाइल खेलों ने बच्चों समेत नौजवानों को भी अपनी चपेट में ले लिया है।भले ही ऐसी खेलों से भारत समेत दुनिया के विभिन्न हिस्सों में कई बड़ी घटनाएं हो चुकी हैं, मगर इसके बावजूद अभी भी मानव, स्वभाव, सेहत और जान के लिए खतरा बनाने वाली कई मोबाइल खेलें न तो बैन हो सकीं और न ही लोग इसके इस्तेमाल करने से गुरेज कर रहे हैं। विशेष कर आज-कल जब बच्चों की परीक्षा सिर पर है तो कई बच्चों के सिर पर पब-जी गेम का भूत चढ़कर बोल रहा है।

जानलेवा सिद्ध हो चुकी है ब्लू व्हेल जैसी गेम
पिछले करीब डेढ़ वर्ष पहले भारत समेत देश के विभिन्न हिस्सों में ब्लू व्हेल नाम की मोबाइल गेम ने नौजवानों को अपने जाल में ऐसा फंसाया था कि कई नौजवान इस गेम के टास्क पूरे करने के लिए अपनी जान गंवा बैठे, जबकि कई नौजवान मौत के मुंह में जाने से बाल-बाल बचे, मगर जब तक आम लोगों में इस गेम से बचने संबंधी जागरूकता पैदा होनी थी, तब तक बहुत देर हो चुकी थी।
इसी तरह पोकेमो-गो नाम की गेम ने भी लोगों को इतनी बुरी तरह से प्रभावित करना शुरू कर दिया है कि आखिर इसे बैन करने के लिए लोगों को अदालतों में भी जाना पड़ा। उक्त के अतिरिक्त अन्य भी अनेक ऐसी खेलें हैं, जो लोगों को अंदर ही अंदर खोखला कर रही हैं।

शिक्षा और परिवारों से दूर हो रहे बच्चे 
ये खेलें सबसे अधिक बच्चों के लिए घातक सिद्ध हो रही हैं, क्योंकि स्मार्ट फोनों के कारण पहले ही बच्चों ने आऊटडोर खेलों को त्याग कर इंडोर खेलों और मोबाइल वाली खेलों को ही अपना साथी बनाया हुआ है।
डाक्टरों के अनुसार ऐसी गेम बच्चों के शारीरिक और मानसिक विकास को प्रभावित करने के अलावा उनके स्वभाव को चिड़चिड़ा बनाती है। विशेष: बच्चे पढ़ाई और परिवारों से दूर हो रहे हैं।

100 मिलियन से अधिक बार डाऊनलोड हुई पब-जी
पिछले कुछ महीनों से पब-जी नाम की मोबाइल गेम ने इतने पांव पसार लिए हैं कि अब तक 100 मिलियन से अधिक लोग इसे डाऊनलोड कर चुके हैं। बच्चों और नौजवानों समेत विभिन्न आयु के लोग इस गेम पर इतने आदी हो चुके हैं कि वे अपने कई जरूरी काम छोड़कर इसके टास्क को पूरा करने में जुटे रहते हैं। कई बच्चों की हालत तो यहां तक बिगड़ती दिखाई देती है कि उनके लिए पढ़ाई करनी तो दूर की बात है, वह रोटी-पानी को भूल जाते हैं।

swetha