चरवाहे भेड़-बकरियों के चारे की पूर्ति के लिए नई प्लांटेशन को कर रहे बर्बाद!

punjabkesari.in Friday, Feb 07, 2020 - 10:05 AM (IST)

पठानकोट(कंवल): समस्त दुनिया पर्यावरण में हो रहे जलवायु परिवर्तन के साथ त्रस्त है और दुनिया भर के विशेषज्ञ इससे उभरने के लिए प्रयास कर रहे हैं, लेकिन मौजूदा समय में इस समस्या का मात्र एक ही हल ज्यादा से ज्यादा पौधे लगाए जाना है, लेकिन अगर बात जिला पठानकोट की करें तो वन विभाग लोगों को तो ज्यादा से ज्यादा पेड़ लगाने की अपील करता है, लेकिन अगर बात करे खुद वन विभाग के जंगलों की तो उनके प्रति वन विभाग कुछ अधिक गंभीर दिखाई देता नजर नहीं आता। 

हर साल विभाग द्वारा लाखों रुपए खर्च कर इन जंगलों में पौधे लगाए जाते हैं, मगर इसके बावजूद जंगल पेड़ों से आबाद होने की बजाय लगातार बर्बादी की तरफ अग्रसर हो रहे हैं। जिसका कारण शायद विभाग की ही नाकामियां हैं या फिर चन्द छोटे कर्मचारियों व अधिकारियों की मिलीभगत कहें, जिसके चलते लगातार क्षेत्र में वनो मेंं भीतरी पेड़ों की संख्या का ग्राफ नीचे गिरता जा रहा है। इसकी एक वजह विभागीय अधिकारों द्वारा हिमाचल के चम्बा, डल्हौजी आदि क्षेत्रों से अपने भेड़ बकरियों समेत आए चरवाहों को शरण देना भी माना जा रहा है। कुछ अधिकारी अपने निजी फायदे के लिए हिमाचल से अपनी बकरियों को चराने के लिए आए चरवाहों को रिजर्व जंगल में पनाह दे देते हैं जिस वजह से सरकार पौधे लगाने पर खर्च किए लाखों रुपए जाया चले जाते हैं। 

 इस संबंधी स्थानीय लोगों गुरदीप सिंह, रेशम कुमार, जसवंत सिंह, राजू कुमार, निर्मल सिंह, करतार चन्द आदि ने कहा कि भीमपुर-सरना मार्ग पर वन विभाग का सैंकड़ों एकड़ का जंगल है जो जमालपुर, कोठी पंडितां, एमां गुजरां, डेयरीवाल, मुकीमपुर, जमालपुर, गुलपुर आदि गांवों से जुड़ता है। इस रिजर्व जंगल में से स्थानीय लोगों तक के गुजरने की इजाजत नहीं है, मगर प्रवासियों को शायद अपने पशुओं से उजाड़ा कराने की खुली छूट दे रखी है। उन्होंने कहा कि हर वर्ष सरकार द्वारा लाखों रुपए खर्च कर पौधे लगाए जाते हैं, लेकिन विभागी अधिकारियों की मिलीभगत की वजह से ये पैसे जाया ही चले जाते हैं। क्योंकि विभाग के अधिकारी हिमाचल से अपनी भेड़, बकरियां लेकर पंजाब आए चरवाहों को जंगल में शरण दे देते हैं।

इसके बाद यह चरवाहे जंगलों में इस कदर तबाही मचाते हैं कि छोटी-छोटी हरी भरी झाडिय़ां से लेकर पेड़ों की अच्छी खासी टहनियां काटकर उनके पत्ते अपनी भेड़ बकरियों को खिला देते हैं और बाकी बचीं लकडिय़ों को कुछ खुद जला लेते हैं तो कुछ आसपास के लोग चूल्हा जलाने के लिए ले जाते हैं। इससे तो नुक्सान वनों का ही होता है। उन्होंने बताया कि चरवाहों द्वारा वनों में भेड़-बकरियां ले जाने की वजह से जंगल में लाखों रुपए खर्च कर की गई नई प्लांटेशन को भेड़- बकरियां खा जातीं हैं। जिस वजह से सरकार का लाखों रुपया खराब चला जाता है। 

जंगलात का नुक्सान हुआ तो लिया जाएगा हर्जाना : संजीव तिवाड़ी
दूसरी तरफ जब इस संबंधी जिला वन अधिकारी संजीव तिवाड़ी से मीडिया द्वारा बात की गई तो उन्होंने बताया कि इस संबंधी चरवाहों को वहां से हटा दिया गया है। फिर भी वह तुरन्त कर्रवाई करेंगे तथा इसकी जांच की जाएगी और यदि कोई भी चरवाहे जंगलों में अपनी भेड़-बकरियों को लेकर बैठे हैं तो उनको वहां से हटा दिया जाएगा और जो लोग रिजर्व जंगल के पास पंचायती जमीन पर बैठे हैं उनको भी कह दिया गया है कि अगर जंगलात का नुक्सान होता है तो उनसे हर्जाना लिया जाएगा। 

सुरक्षा के लिए भी हो सकता है खतरा
ब्लॉक समिति सदस्य डेरीवाल अजय महाजन ने कहा कि चरवाहों का यहां आकर डेरे लगा कर बैठना किसी खतरे का संकेत भी हो सकता है क्योंकि इन प्रवासियों के कोई शिनाख्ती कार्ड तक कि जांच प्रशासन द्वारा नहीं कि जाती। इनमें कोई संदिग्ध भी शरण ले सकता है जो सुरक्षा के लिए भारी खतरा पैदा कर सकता है। यहां यह बात भी उल्लेखनीय है कि पठानकोट जिला सुरक्षा के नाम पर वैसे ही बेहद संवेदनशील माना जाता है। एअरबेस पर आतंकियों के हमले के समय एस.पी. सलविंदर सिंह को भी अगवा करके आतंकियों ने इसी जंगल में छोड़ा था। जिसके बाद भी इस एअरबेस के साथ लगते क्षेत्र के इस जंगल की सुरक्षा पर कोई ध्यान न देना कभी भी सुरक्षा के लिए घातक साबित हो सकता है। सैंकड़ों एकड़ में फैले इस रिजर्व जंगल में जिस प्रकार यह प्रवासी चरवाहे अपनी भेड़-बकरियों को ले घुसते हैं इसी प्रकार गैर सामाजिक तत्व कभी भी यहां शरण ले सकते हैं। विभाग की यह अनदेखी क्षेत्र की सुरक्षा के लिए बड़ा खतरा बन सकती है। 


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swetha

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