भारत-पाक सीमा पर स्थित गांव सिंबल-स्कोल बना टापू

punjabkesari.in Sunday, Jul 15, 2018 - 11:36 AM (IST)

पठानकोट/भोआ (शारदा, अरुण): एक तरफ भारत के साइंटिस्ट मंगल ग्रह पर घर बसाने की योजना बना रहे हैं, वहीं दूसरी तरफ भारत के एक कोने में बच्चे अपना भविष्य संवारने के लिए स्कूल जाने के लिए कड़ी जद्दोजहद करने को मजबूर हैं क्योंकि इन बच्चों के गांव में भारत को आजाद होने के 7 दशक बीत जाने के बाद भी अभी तक विकास की लौ नहीं जग सकी है। 

पठानकोट जिले के बमियाल सैक्टर में पड़ते भारत-पाकिस्तान सीमा की जीरो लाइन पर स्थित गांव सिंबल-स्कोल एक ऐसा गांव है कि इसके तीन तरफ भारत-पाकिस्तान सीमा तथा एक तरफ गांव से बाहर निकलने के लिए रास्ते में करनाह दरिया पड़ता है, जिस पर पक्का पुल न होने के चलते इन दिनों में यहां के लोग टापू नुमा जिंदगी जीने पर विवश हैं। आज भी बरसात के दिनों में इस गांव के लोगों को अपने गांव से बाहर निकलने के लिए एक नाव पर निर्भर होना पड़ रहा है। 

दरअसल, सीमा से सटे पंजाब के अंतिम गांव सिंबल-स्कोल के रास्ते में बहते तरनाह दरिया से अस्थायी पुल उठा लिए जाने के बाद एक बार फिर यह गांव टापू में तबदील हो गया है। यहां के लोगों को अब फिर नाव के सहारे अपने गांव आना-जाना पड़ रहा है। गांव से बाहर पढऩे वाले स्कूली बच्चों को भी एक बार फिर से जान हथेली पर रखकर नाव के सहारे स्कूलों में आना-जाना पड़ रहा है। हर बरसात के मौसम में यह गांव पूरे पंजाब से कट जाता है और एक टापू में तबदील हो जाता है। आजादी के बाद से इस गांव के लोग उक्त समस्या का दंश झेलते और यहां पर पक्के पुल की मांग करते आ रहे हैं। 

जल्द डाला जाएगा बैली ब्रिज: विधायक
इस विषय पर हलका विधायक जोगिंद्र पाल का कहना है कि वह हलके की जनता से किया हुआ वायदा निभाएंगे। इस गांव के लोगों की सुविधा के लिए जहां पर वैली ब्रिज का सामान पहुंचाना शुरू हो चुका है, जल्द ही वहां पर बैली ब्रिज डालकर लोगों को इस नरक से निकाला जाएगा। 

जान हथेली पर रखकर दरिया पार करते हैं बच्चे, बीमार लोग इलाज के अभाव में गंवा चुके हैं जान  
गांव वासी सुरेंद्र कुमार, मंजीत सिंह, रूप लाल, मंजू बाला, बिट्टू कुमार ने बताया कि हर बरसात के मौसम में दरिया से पुल हटा लिए जाने के बाद ग्रामीणों को भारी दिक्कत का सामना करना पड़ता है। ग्रामीणों को कई प्रकार का घरेलू सामान और पशु चारा जमा करके रखना पड़ता है। ग्रामीणों को अपने दोपहिया वाहन दरियाके उस पार ही खड़े करने पड़ते हैं। 

दरिया में अधिक पानी होने की सूरत में ग्रामीणों की दिक्कत और बढ़ जाती है क्योंकि दरिया में अधिक पानी होने पर मलाह की ओर से दरिया में नाव नहीं चलाई जाती है। ऐसे में लोग अपने गांव में कैद होकर रह जाते हैं। इसके चलते बीमार होने पर कई लोग इलाज के अभाव से जान भी गंवा चुके हैं। ध्यान रहे कि बच्चों को स्कूल जाने हेतु इसी नाव से पार होकर जाना पड़ता है, जोकि बहुत रिस्की है। हर रोज बच्चे अपनी जान पर खेल कर दरिया पार करते हैं।

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