गधा और कुत्ता नहीं, हिमाचल चुनाव में बंदर बना हॉट मुद्दा
punjabkesari.in Wednesday, Nov 01, 2017 - 12:29 PM (IST)

जालंधर (रविंदर शर्मा): किसी भी प्रदेश में चुनाव आते ही जुमलों में पशु गूंजने लगते हैं। कभी गधा, कभी कुत्ता तो अब बंदर। सबसे पहले इस साल के शुरू में उत्तर प्रदेश चुनाव में तत्कालीन मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने अपने बयान के जरिए गधे को चुनावी मैदान में उतारा था। इसके बाद गुजरात चुनाव में कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी के ट्वीट की वजह से उनका कुत्ता पीडी सोशल मीडिया पर छाया हुआ है। अब हिमाचल प्रदेश चुनाव में कुत्ता और गधा नहीं, बल्कि बंदर हॉट मुद्दा बन गया है।
हिमाचल प्रदेश में 9 नवम्बर को मतदान होना है। हिमाचल में बंदर को मुद्दा किसी नेता ने नहीं बनाया है, बल्कि राज्य के लोग बंदरों के आतंक से इस कदर परेशान हैं कि वे चुनाव में खड़े उम्मीदवारों से बंदरों से निजात दिलाने का वायदा सबसे पहले ले रहे हैं यानी हिमाचल में महंगाई, भ्रष्टाचार, बेरोजगारी जैसा ही अहम बन गया है बंदरों का मुद्दा। बागवान-किसान तो इसलिए परेशान हैं कि बंदर उनकी फसलों-बगीचों को नष्ट कर जाते हैं। राज्यभर में बंदरों की संख्या 4 लाख को पार कर गई है। यह न केवल फसलों को नुक्सान पहुंचा रहे हंै, बल्कि पर्यटन के लिए भी खतरा बन रहे हैं। हिमाचल के लोगों पर तो हमला कर ही रहे हैं, साथ ही सैलानियों को भी अपना शिकार बना रहे हैं। पलक झपकते ही बंदर खाने का सामान झटक कर ले जाते हैं। विरोध किए जाने पर वे हमला करने से भी नहीं चूकते।
पांच साल से हिमाचल में कांग्रेस की सरकार है। इससे पहले पांच साल बी.जे.पी. का राज्य में राज था। मगर बंदरों की समस्या से न तो बी.जे.पी. और न ही कांग्रेस निजात दिला पाई। केंद्र सरकार विधानसभा में प्रस्ताव पास होने के बाद बंदर को हानिकारक हिंसक पशु की श्रेणी में रख चुकी है। इसके बाद 6 महीने तक राज्य में बंदरों को मारने की अनुमति भी दे दी गई है। मगर हैरानी यह है कि हिमाचल की वीरभद्र सरकार ने बंदरों को मारने की तरफ कोई ध्यान नहीं दिया। बंदरों का आतंक बढ़ता जा रहा है और वीरभद्र सरकार चुपचाप देखती रही। हालांकि बीच-बीच में सरकार ने बंदरों को लोगों से दूर रखने के लिए पारम्परिक टोटकों के साथ आधुनिक तकनीक को भी आजमाया, लेकिन बंदरों के आगे एक न चली। बीते साल अप्रैल में शिमला में बंदरों के आतंक से लोगों को मुक्ति दिलाने के लिए हिमाचल प्रदेश वन्य प्राणी विभाग ने आधुनिक जुगाड़ ढूंढा था। इसके लिए शिमला में बी.एस.एन.एल. बिल्डिंग पर पायलट प्रोजैक्ट के तहत अल्ट्रासोनिक मौंकी रेपेलैंट साऊंड डिवाइस को लगाया गया था।
सोचा तो यही गया था कि इस डिवाइस से बंदर वहां से कई किलोमीटर दूर भाग जाएंगे। मगर बंदरों के आगे यह डिवाइस कुछ खास असर नहीं दिखा पाई। मुख्य संरक्षक वन (वन्य जीव) पी.एल. चौहान भी बंदरों की समस्या को जटिल मानते हैं, वहीं भाजपा नेता और हमीरपुर से सांसद अनुराग ठाकुर भी हिमाचल चुनाव के तीन मुख्य मुद्दों में एक मुद्दा बंदरों के आतंक को भी मानते हैं। ठाकुर हिमाचल चुनाव में कांग्रेस सरकार पर निशाना साधते हुए तीन बड़े मुद्दों में भ्रष्टाचार, विकास के बदले विनाश और बंदरों का आतंक गिनाते हैं। शिमला जैसे शहरों में बंदरों के आतंक की वजह से बच्चों ने खुले में खेलना बंदकर दिया है।
बंदरों की बढ़ती संख्या से एड्स का खतरा बढ़ा
जालंधर। बंदरों के जरिए ही एड्स की बीमारी भारत में आई थी। अब हिमाचल प्रदेश में लगातार बढ़ती बंदरों की संख्या न केवल जानमाल को नुक्सान पहुंचा रही है, बल्कि एड्स जैसी गंभीर बीमारी के बढऩे के संकेत भी दे रही है। इसे लेकर केंद्र सरकार व अन्य सामाजिक संस्थाएं भी चिंतित हैं।