वर्षा जल का संचयन करने पर सक्रियता से करना पड़ेगा विचार

punjabkesari.in Monday, Sep 09, 2019 - 11:25 AM (IST)

होशियारपुर(राकेश): जल के बिना जीवन की कल्पना नहीं की जा सकती। सृष्टि में जितने जीव-जन्तु व वनस्पति दृष्टिगोचर हैं, जल पर ही निर्भर हैं। यही कारण है कि इस संसार में तीन हिस्सा जल और एक हिस्सा स्थल है।हम सभी यह जानते ही हैं कि सृष्टि के पांच तत्वों में जल महत्वपूर्ण है। जब प्रकृति का संतुलन बिगड़ता है, प्राकृतिक प्रकोप होता है, वर्षा कम होती है, सूखा पड़ता है, अकाल आता है, बीमारी बढ़ती है और प्राणी मृत्यु को प्राप्त होते हैं। वर्षा का पानी नदी, नालों से बह कर समुद्र में जाता है, हम उसकी चिंता नहीं करते। 

जब आबादी कम थी, वर्षा जल की हम चिंता नहीं करते थे लेकिन पिछले 100 वर्ष में आबादी चार गुणा बढ़ी है और जल का उपयोग 6 गुणा बढ़ा है। भू-जल जिस गति से ऊपर लाया गया, उसी गति से नीचे भी जाने लगा। धीरे-धीरे वर्षा की मात्रा कम होने लगी तो जलाभाव की स्थिति उत्पन्न हुई। अब हमें वर्षा जल के संचयन करने पर सक्रियता से विचार करना पड़ेगा।हमारे पूर्वजों ने इसकी चिंता की। उन्होंने तालाब बनाए। तालाब में वर्षा का जल एकत्रित होता था और उससे पशुओं, मनुष्यों के पीने तथा सिंचाई के लिए भी जल का उपयोग होता था लेकिन बढ़ती आबादी से तालाबों पर अतिक्रमण हुए।

अब जरूरत है हम ताल, तलैया के महत्व को समझें और पानी को बचाएं क्योंकि पानी को नहीं बचाएंगे तो हम नहीं बचने वाले। यह चिन्ता केवल सरकार की नहीं, हम सबकी है। संयुक्त राष्ट्र संघ के सर्वेक्षण से पता चलता है कि आज भी विश्व में 2 मिलियन लोगों को शुद्ध पानी नसीब नहीं है। पैसे वाले लोग बोतल का पानी पीते हैं परंतु उसकी शुद्धता पर भी सवाल खड़े किए गए हैं और संसद में हंगामा हो चुका है इससे हम आप सब परिचित हैं। प्रत्येक वर्ष 200 बिलियन लोग गंदे पानी के प्रभाव में आते हैं।

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Sunita sarangal