सूरत जैसा हादसा जालंधर में हुआ तो जान बचनी मुश्किल

punjabkesari.in Sunday, May 26, 2019 - 09:08 AM (IST)

जालंधर(स.ह.): जालंधर शहर में यदि सूरत की तरह अग्रिकांड जैसा हादसा हो गया तो ऐसे हादसे में फंसे लोगों की जान भगवान के भरोसे ही होगी। इसका कारण यह है कि शहर का फायर ब्रिगेड सिस्टम इस तरह के हादसे से निपटने के लिए तैयार नहीं है। फायर ब्रिगेड के पास महज 60 कर्मचारी हैं जिनमें से 15 पक्के कर्मचारी हैं जबकि करीब 45 अन्य ठेके पर रखे गए लोग हैं। विभाग के पास आग बुझाने के लिए जो संयंत्र हैं वे महज 35 फुट की ऊंचाई तक जा सकते हैं। यदि आग 35 फुट की ऊंचाई से ऊपर लगती है तो विभाग के लिए आग पर काबू पाना आसान नहीं होगा। 
यदि आग के अलावा भूचाल जैसा कोई कुदरती हादसा होता है या किसी इमारत के गिरने के कारण कोई हादसा होता है तो विभाग उससे निपटने के लिए भी तैयार नहीं है। ऐसी स्थिति में नैशनल डिजास्टर रिस्पांस फोर्स का ही सहारा लेना पड़ेगा। 

50,000 की आबादी के पीछे महज एक फायर ब्रिगेड कर्मी
2011 की जनगणना के मुताबिक जालंधर की आबादी 21.94 लाख थी, जो अब बढ़कर करीब 25 लाख से पार पहुंच चुकी है। ऐसी स्थिति में 25 लाख की आबादी के लिए फायर ब्रिगेड के पास 60 लोगों का स्टाफ है, इनमें ड्राइवर भी शामिल हैं। इनमें से भी सारे कर्मचारी एक साथ ड्यूटी पर नहीं रहते और औसतन 50,000 की आबादी के पीछे एक फायर ब्रिगेड कर्मी ही है। हालांकि पिछले 2 साल के अंदर विभाग ने कुछ नई गाडिय़ां खरीदी हैं लेकिन विभाग के पास मौजूद बाकी गाडिय़ां वर्षों पुरानी हैं और कुछ गाडिय़ां तो चलने लायक भी नहीं हैं। विभाग के पास ऊंची इमारतों तक पहुंचने के लिए सिर्फ 35 फुट तक सीढ़ी है। उसके बाद विभाग को पानी की धार की गति पर ही निर्भर रहना पड़ता है या एक सीढ़ी के ऊपर दूसरी सीढ़ी जुगाड़ लगा कर जोडऩी पड़ेगी। ऐसा करने पर भी फायर ब्रिगेड कर्मी की जान का जोखिम बना रहेगा। मौजूदा समय में भी यदि किसी जगह पर आग लगने की बड़ी घटना होती है तो फायर ब्रिगेड को बाहर के अन्य स्टेशनों से गाडिय़ां मंगवानी पड़ती हैं जिनके पहुंचने में 10-10 घंटे का समय लग जाता है। 

50,000 की आबादी के पीछे महज एक फायर ब्रिगेड कर्मी
इंडो-अमेरिकन फ्रैंड्स ग्रुप के चेयरमैन रमन दत्त ने कहा कि विभाग में पिछले लंबे समय से कर्मचारी रिटायर्ड हो रहे हैं लेकिन उनके स्थान पर नई भर्ती नहीं हो रही जिस कारण शहरवासी खतरे के बीच रह रहे हैं। जालंधर भूकम्प की दृष्टि से संवेदनशील समझे जाते शहरों में से है और सिसमिक जोन 4 में आता है।  यदि उत्तर भारत में भूकम्प की कोई बड़ी घटना हुई और जालंधर उसकी चपेट में आया तो फायर ब्रिगेड कर्मचारी शहर के लोगों की मदद नहीं कर पाएंगे क्योंकि वे इस काम के लिए ट्रेंड नहीं हैं। जालंधर ही नहीं बल्कि उसके आसपास के शहरों नकोदर, आदमपुर, करतारपुर, नवांशहर, फगवाड़ा, कपूरथला में भी फायर ब्रिगेड की कार्यप्रणाली कमोबेश एक जैसी है और यह विभाग नाममात्र के लिए काम कर रहा है। केंद्र सरकार के स्मार्ट सिटी प्रोजैक्ट में फायर ब्रिगेड की सुविधा के लिए खास ध्यान होना चाहिए क्योंकि जिन लोगों के पास पैसा है वे ऐसे अपार्टमैंट्स में अपना घर ले रहे हैं जहां निजी फायर ब्रिगेड की सुविधा है लेकिन जो गरीब लोग हैं, उनकी जान भी एक जैसी है। लिहाजा उनके लिए भी आग से बचने के लिए वैसे ही प्रबंध होने चाहिं जैसे अमीरों के फ्लैटों में हैं। 

जालंधर में कई शिक्षा संस्थान
सूरत में हुआ हादसा कोचिंग सैंटर में स्टूडैंट्स के साथ हुआ है और जालंधर में भी कई शिक्षण संस्थान हैं जहां पंजाब के अलावा अन्य राज्यों के विद्यार्थी भी पढ़ने आते हैं। शहर में 3 बड़े निजी शिक्षण संस्थानों के अलावा सरकारी शिक्षा संस्थानों की भी भरमार है और यदि इन संस्थानों में सूरत जैसा कोई हादसा हो जाता है तो फायर ब्रिगेड ऐसे हादसे से निपटने के लिए पूरी तरह सक्षम नहीं है।

क्या कहना है फायर ब्रिगेड अधिकारी का
हम आग लगने की किसी भी सूचना पर अपने मौजूदा स्टाफ और संयंत्रों के साथ आग बुझाने की पूरी कोशिश करते हैं लेकिन हमारी क्षमता सीमित है और अपनी क्षमता के बाहर आग लगने पर हमारे स्टाफ को अपनी जान का जोखिम लेना पड़ता है क्योंकि ऊंची जगह पर आग लगने पर हमारे पास हाइड्रॉलिक सीढ़ी अथवा ऐसा कोई साधन नहीं, जिससे हम 35 फुट से ऊपर जा सकें। हम उम्मीद कर रहे हैं कि स्मार्ट सिटी प्रोजैक्ट में हमें सारी आधुनिक सुविधाएं मुहैया करवाई जाएंगी। -राजिन्द्र शर्मा, फायर अफसर जालंधर फायर ब्रिगेड

swetha