ब्रह्म महिन्द्रा समक्ष हैं कई चुनौतियां:फंड की कमी, भ्रष्टाचार से जूझ रहा है लोकल बॉडीज विभाग

punjabkesari.in Saturday, Jun 08, 2019 - 11:35 AM (IST)

जालंधर(अश्विनी खुराना): लोकसभा चुनावों दौरान मुख्यमंत्री कैप्टन अमरेन्द्र सिंह तथा क्रिकेटर से राजनेता बने नवजोत सिंह सिद्धू के बीच टकराव का जो दौर शुरू हुआ है, वह उनका विभाग बदले जाने के बाद थमता नजर आ रहा है।विभागों के इस तबादले के दौरान लोकल बॉडीज विभाग के नए मंत्री बने ब्रह्म महिन्द्रा समक्ष चुनौतियों का अंबार भी साफ दिख रहा है। चाहे ब्रह्म महिन्द्रा को एक सक्षम राजनेता और अच्छे प्रशासकों में से गिना जाता है परंतु फिर भी उनके समक्ष यह बड़ी चुनौती होगी कि आने वाले विधानसभा चुनावों तक लोकल बॉडीज विभाग की लगातार गिर रही साख को कैसे संभालना और कैसे ऊपर उठाना है। पेश हैं नए मंत्री ब्रह्म महिन्द्रा समक्ष नई चुनौतियों की सूची :

स्टाफ की कमी को दूर करना ही होगा
एक ओर जहां लोगों में निगमों की कार्यप्रणाली प्रति रोष है, वहीं उसमें कार्यरत सरकारी अधिकारी व कर्मचारी भी ज्यादा खुश नहीं हैं। तकरीबन हर शहर में यूनियनों की लम्बी डिमांडें हैं।  स्टाफ की कमी से हर निगम जूझ रहा है, जिस कारण बाकी कर्मचारियों को काम न करने का बहाना मिल जाता है। नए लोकल बॉडीज मंत्री को स्टाफ की नई भर्ती के नए तरीके खोजने होंगे और आर्थिक तंगी की हालत में स्टाफ में बढ़ौतरी करना उनके लिए और भी मुश्किल कार्य होगा। कुल मिलाकर नए लोकल बॉडीज मंत्री ब्रह्म महिन्द्रा समक्ष और भी दर्जनों चुनौतियां होंगी जिन्हें पार करने में उन्हें अपने राजनीतिक कौशल व अनुभव को दिखाना होगा।

निगमों की कमाई वेतन तक सिमटी
इस समय पंजाब सरकार के साथ-साथ राज्य के तमाम नगर निगम फंड की कमी से जूझ रहे हैं। जालंधर, लुधियाना, अमृतसर जैसे बड़े नगर निगमों की बात करें तो इनकी कमाई केवल स्टाफ के वेतन तक सिमटी हुई है। कुछ महीने पहले तक तो यह हालात बने थे कि ये निगम अपने स्टाफ को समय पर वेतन तक नहीं दे पाए थे, जिस कारण हड़तालों तक की नौबत आ गई थी। राज्य के करीब सभी नगर निगमों को विकास कार्यों के लिए सरकार का मुंह देखना पड़ रहा है। सरकार के पास भी पैसों की नितांत तंगी है। प्रदेश में आम चर्चा है कि अकाली-भाजपा सरकार ने चाहे जिस मर्जी तरीके से शासन किया परंतु शहरों को ग्रांटों की कमी नहीं आने दी। 

वहीं दूसरी ओर मनप्रीत सिंह बादल की बतौर वित्त मंत्री छवि ज्यादा अच्छी नहीं बन पाई। कांग्रेसी नेता यह स्वीकारते हैं कि ग्रांट जारी करने में मनप्रीत ज्यादा कंजूसी दिखाते हैं। नए मंत्री ब्रह्म महिन्द्रा समक्ष पहली चुनौती ही नगर निगमों को आर्थिक तंगी से उभारना होगा ताकि विकास कार्य पटरी पर आ सकें। पंजाब सरकार की आर्थिक हालत भी उनसे छिपी हुई नहीं इसलिए उनका सबसे पहला कार्य नगर निगमों को आत्मनिर्भर बनाना होना चाहिए। सभी निगमों में व्याप्त भारी भ्रष्टाचार को कैसे खत्म करना है, यह भी उनके समक्ष एक चैलेंज होगा। 

\मूलभूत सुविधाओं की हालत अत्यंत खराब
किसी भी नागरिक को सरकार से सड़क, सीवर, पानी व स्ट्रीट लाइट जैसी मूलभूत सुविधाओं की अपेक्षा होती है और जो सरकार इन अपेक्षाओं पर खरी उतरती है उसे तख्त से उतारना काफी मुश्किल होता है। पंजाब की बात करें तो लगभग सभी नगर निगमों में मूलभूत सुविधाओं की हालत काफी खराब कही जा सकती है। लाखों-करोड़ों लोग तो ऐसे ही होंगे जो इन मूलभूत सुविधाओं के बगैर गुजारा कर रहे होंगे। किसी भी शहर में 100 प्रतिशत सीवर तथा पानी का प्रोजैक्ट शायद ही अपने लक्ष्य के निकट पहुंचा हो। गंदे पानी की सप्लाई की शिकायतों तक को सरकारी अधिकारी प्राथमिकता नहीं देते। शहरों में हर साल सड़कों को नए सिरे से बनाने की जरूरत पड़ती है। बरसाती पानी से निपटने हेतु स्टार्म वाटर सीवर की नितांत कमी है। दूसरी सीवर लाइनें भी शहरों की बढ़ती आबादी का बोझ सह पाने में विफल साबित होती दिख रही हैं। ऐसे में नए लोकल बॉडीज मंत्री को इन मूलभूत सुविधाएं उपलब्ध करवाने की ओर पूरा ध्यान देना होगा वरना नाराज लोग किसी भी हद तक जा सकते हैं।

कूड़े की समस्या से जूझ रहे सभी शहर
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धानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने अपने पहले कार्यकाल दौरान स्वच्छ भारत अभियान का नारा देकर करोड़ों देशवासियों का ध्यान सफाई व्यवस्था की ओर खींचा था परंतु पंजाब की बात करें तो इस राज्य के शहरों में स्वच्छ भारत अभियान मात्र खानापूर्ति साबित हुआ। स्वच्छ भारत मिशन के तहत केन्द्र सरकार से मिली करोड़ों रुपए की ग्रांटों को पंजाब के शहर इस्तेमाल ही नहीं कर पाए। हर शहर कूड़े की समस्या से बुरी तरह जूझ रहा है। जालंधर जैसे शहर में 10 लाख टन से ज्यादा कूड़े का पहाड़ बना हुआ है। पूरे पंजाब में कूड़े को मैनेज करने के एक-दो प्लांट ही सही ढंग से चल पा रहे हैं। शहरों का दायरा लगातार बढ़ता जा रहा है परंतु उस मुकाबले में सफाई कर्मचारियों की भर्ती नहीं की जा रही जिस कारण निगम यूनियनों का टकराव भी चरम सीमा तक पहुंचा हुआ है। नए लोकल बॉडीज मंत्री ब्रह्म महिन्द्रा समक्ष यह भी बड़ी चुनौती होगी कि देश के दक्षिणी राज्यों की तरह प्रदेश के शहरों को कैसे कूड़ा मुक्त करना है ताकि बढ़ते प्रदूषण से बचा जा सके। इसी के साथ-साथ उन्हें वायु प्रदूषण व जल प्रदूषण जैसी समस्याओं की ओर भी ध्यान देना होगा।

फ्लॉप पॉलिसियों का नहीं हुआ लाभ
अकाली-भाजपा के 10 सालों के कार्यकाल से तंग आ चुके शहरियों ने कांग्रेस को इसलिए वोट दिए थे ताकि उनके हित में पॉलिसियां आ सकें। अमरेन्द्र सरकार ने कालोनियों व प्लाटों की एन.ओ.सी. पॉलिसी, अवैध बिल्डिंगों की वन टाइम सैटेलमैंट पॉलिसी, नई विज्ञापन पॉलिसी, पार्कों संबंधी नई पॉलिसी इत्यादि कई राहतें शहरियों को प्रदान अवश्य कीं परंतु जमीनी स्तर पर ये सभी पॉलिसियां फ्लॉप साबित हुईं। एन.ओ.सी. पॉलिसी की बात करें तो आज सिर्फ वही शख्स अपने प्लाट की एन.ओ.सी. अप्लाई कर रहा है जिसे रजिस्ट्री करवानी है, वन टाइम सैटेलमैंट पॉलिसी के तहत पूरे पंजाब में सिर्फ 500 के करीब आवेदन आने की सूचना है परंतु उनमें से भी ज्यादातर आवेदन मात्र खानापूर्ति दिख रहे हैं। किसी बड़ी अवैध बिल्डिंग के मालिक ने इस पॉलिसी का लाभ नहीं उठाया। पॉलिसी के रेटों के कारण पहले ही अंदेशा था कि यह पॉलिसी कामयाब नहीं होगी परंतु फिर भी महीनों खराब कर दिए गए और पॉलिसी बुरी तरह फेल हुई। नई विज्ञापन पॉलिसी भी कामयाब होती नहीं दिखी। अकेले जालंधर में ही इसके 6 बार टैंडर लगे परंतु किसी ठेकेदार ने दिलचस्पी नहीं दिखाई, जिस पॉलिसी से निगमों को करोड़ों-अरबों रुपए की आय होने की उम्मीद थी, वह पॉलिसी उम्मीदों के मुताबिक कहीं नहीं ठहरी। पार्कों संबंधी आई नई पॉलिसी को लेकर भी ज्यादा दिलचस्पी नहीं दिखाई जा रही और यह पॉलिसी भी अपने उद्देश्य में सफल होती नहीं दिख रही।

राजनीतिक दबाव से निपटना ही होगा
पंजाब के सभी निगम इस समय जबरदस्त राजनीतिक दबाव से जूझ रहे हैं जिस कारण सरकारी अधिकारियों को कामकाज में जहां मुश्किलें पेश आती हैं वहीं उन्हें काम न करने का बहाना तक भी मिल जाता है। वसूली जैसी प्रक्रियाओं में भी राजनीतिक दखलअंदाजी ङ्क्षचता का विषय बनी हुई है। वोट बैंक को सामने रख कर लिए जा रहे फैसलों से निगम की साख पर असर पड़ रहा है। नए लोकल बॉडीज मंत्री को इस स्थिति की ओर भी ध्यान देना होगा ताकि राजनीतिक हस्तक्षेप के चलते निगमों का काम प्रभावित न हो।

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