Swachh Bharat Abhiyan: जालंधर को इंदौर जैसा शहर बनाने के सपने हवा में...

punjabkesari.in Friday, Dec 25, 2020 - 04:57 PM (IST)

जालंधर(सोमनाथ): शहर में सॉलिड वेस्ट की समस्या खत्म होने की नाम नहीं ले रही है। नगर निगम की तरफ से स्वच्छ सर्वेक्षण-2021 के तहत भले ही समय-समय पर अभियान चलाकर लोगों को जागरूक करने के प्रयास किए जा रहे हैं लेकिन इसके बेहतर परिणाम काफी कम देखने को मिल रहे हैं। जिन जगहों पर कूड़े के डंप मौजूद थे, आज भी उन पर स्थिति पहले जैसी ही है। स्वच्छता संबंधी जागरूकता अभियान उन्हीं जगहों पर चल रहे हैं जो पहले से ही साफ-सुथरी हैं।

नैशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल के निर्देशों और स्वच्छ सर्वेक्षण के चलते लोगों को गीला और सूखा कूड़ा अलग-अलग रखने के लिए प्रेरित किया जा रहा है लेकिन आज भी स्थिति यह है कि 80 प्रतिशत घरों में अभी भी कूड़ा सैग्रीगेट नहीं किया जा रहा है और न ही इन घरों ने गीले और सूखे कूड़े के अलग-अलग कंटेनर ही रखे हैं और नगर निगम की तरफ से शहरवासियों को इंदौर जैसा स्वच्छ जालंधर बनाने के सपने दिखाए जा रहे हैं। दूसरी ओर अगर लोगों ने घरों में गीले और सूखे कूड़े के कंटेनर रखे भी हैं तो नगर निगम की कूड़ा कलैक्ट करने वाली गाडिय़ों और रैग पिकर्स के रेहड़ों में गीला-सूखा कूड़ा सब एक जगह इकट्ठा हो जाता है। हालांकि नगर निगम की तरफ से सख्ती भी की गई है और डंपों पर कूड़ा फैंकने आने वाले लोगों को चालान भी काटे जा रहे हैं मगर यह सख्ती नाकाफी है। हालत ऐसी है कि बल्क वेस्ट जनरेटर तक इस सख्ती को मानने को तैयार नहीं भले ही उनके चालान कट जाएं। ऐसा हुआ भी ैहै। पिछले दिनों नगर निगम की तरफ से 29 के करीब बल्ट वेस्ट जनरेटरों सहित कुल 103 ऐसा चालान काटकर नगर निगम ने मोटा जुर्माना भी वसूला है फिर भी हालत बहुत ज्यादा सुधरे नहीं हैं।
  
सर्वे में 40 प्रतिशत पेपर कूड़े की प्रोसैसिंग और डिस्पोजल का
स्वच्छ सर्वेक्षण-2021 की तहत होने वाले नगर निगम की होने वाली परीक्षा में 40 प्रतिशत पेपर कूड़ें की प्रोसैसिंग और डिस्पोजल को लेकर है। जहां तक कूड़े की प्रोसैसिंग की बात है नगर निगम के पास कूड़े को प्रोसैस करने की मशीनरी ही नहीं है सिवाय कंपोस्ट पिट्स के। 10 लाख के करीब शहरी आबादी के गीले कूड़े के प्रबंधन को लेकर नगर निगम की तरफ से कंपोस्ट पिट्स बनाए जा रहे हैं। निगम की तरफ से अब तक अढ़ाई सौ के करीब कंपोस्ट पिट्स बनाए गए हैं। 15 सितम्बर से लेकर 15 अक्तूबर निगम की तरफ से चलाए गए ‘मेरा कूड़ा-मेरी जिम्मेदारी’ अभियान के दौरान कुछ पिट्स में गीले कूड़े को लाकर प्रोसैसिंग शुरू की गई थी लेकिन अभियान खत्म होने के बाद यह प्रोसैसिंग भी रुक गई है। हालत यह हैं कि कंपोस्ट पिट्स में गीला कूड़ा डाल तो दिया गया लेकिन इस गीले कूड़े को सप्ताह में एक बार पलटने को कोई तैयार नहीं है और न ही इस प्रोसैसिंग को सिरे चढ़ाने के लिए अलग से कोई कर्मचारी रखे गए हैं। नगर निगम रैग पिकर्स के सहारे यह प्रोसैसिंग करना चाहती है। नगर निगम को करीब दो महीनों में और पांच सौ से ज्यादा कंपोस्ट पिट्स बनाने पढ़ेंगे और उन्हें फंक्शनल भी करना होगा। 

कंपोस्ट पिट्स का लोग कर रहे विरोध
दूसरी तरफ लोग अपने क्षेत्र में कंपोस्ट पिट्स बनाए जाने के लेकर तैयार नहीं हो रहे हैं। उनका तर्क है कि यदि आज उन्होंने कंपोस्ट पिट्स के लिए जगह दे दी तो नगर निगम की कारगुजारी ऐेसे ही कि यही कंपोस्ट पिट्स उनके लिए सिरदर्दी का काण बन जाएंगे। इन कंपोस्ट पिट्स पर धीरे-धीरे गीले के साथ सूखा कूड़ा भी आने लगेगा। वरियाणा डंप इसका उदाहरण है। वर्ष 2003 से पहले तक वरियाणा डंप पर केवल गीला कूड़ा जाता था और कंपनी द्वारा प्रोसैस भी किया जा रहा है। 2003 के बाद डंप में गीले कूड़े के साथ प्लास्टिक जाने लगा तो कंपनी ने निगम से प्लास्टिक अलग कर कूड़े भेजने को कहा। ऐसा नहीं होने पर कंपनी ने काम बंद कर दिया। तब से कंपनी के मशीनरी बेकर खड़ी है। अगर इस मशीनरी को दोबारा चलाना हो तो लाखों रुपए पहले इस मशीनरी की रिपेयर पर खर्च करना होगा। फिलहाल नगर निगम इसके लिए तैयार नहीं है।    

बल्क वेस्ट जनरेटरों की बदल चुकी है कैटेगिरी
जिन होटल, ढाबों, रैस्टोरैंट्स और स्कूल/कालेजों में रोजाना 50 किलोग्राम से अधिक कूड़ा निकलता था उनको बल्क वेस्ट जनरेटर कैटेगिरी में रखा गया था लेकिन अब यह कैटेगिरी बदल गई है। अब 100 किलोग्राम तक प्रतिदिन कूड़ा उत्पन्न करने वाले संस्थान ही बल्क वेस्ट जनरेटर की कैटेगिरी में शामिल होंगे। शहर में 180 के करीब बल्क वेस्ट जनरेटरों की पहचान की गई है। शहर में प्रतिदिन सौ किलो से अधिक कूड़ा उत्पन्न करने वाले 180 प्रतिष्ठान प्रतिष्ठानों में कूड़ा निस्तारण संयंत्र स्थापित किए जाने का नियम वर्ष 2016 से प्रभावी है। इनका पालन न करने वालों से भारी जुर्माना वसूलने का प्रावधान है। 

न पास संसाधन न जिम्मेदारी ही तय
नगर निगम की हालत यह है कि निगम के पास गीले और सूखे कूड़े की अलग-अलग कलैक्शन के लिए पूरा इंफ्रास्ट्रक्चर नहीं है और न ही निगम के कुछ अफसरों को छोड़कर किसी की जिम्मेदारी तय है। ‘मेरा कूड़ा-मेरी जिम्मेदारी’ अभियान के दौरान कुछ कौंसलरों ने इस अभियान में अपनी भागीदारी जरूर दिए लेकिन बाकी कौंसलर इस अभियान में आए तक नहीं हैं। इसके साथ ही कौंसलरों द्वारा अपने-अपनी वार्डों में आते मोहल्लों में किसी को जागरूक तक नहीं किया जा रहा है। 

स्कूलों के आगे प्लाट बन रह कूड़े के डंप
नगर निगम की तरफ से शहर की मुख्य सड़कों को डंप मुक्त करने के वायदे और दावे तो बहुत किए जा रहे हैं लेकिन स्कूलों के आगे खाली प्लाट जोकि कूड़े के डंप बन गए हैं उन्हें भी साफ नहीं करवाया जा रहा है। ऐसा ही एक मामला पिछले दिनों मोहल्ला आबादपुरा के लोगों ने मीडिया के समक्ष उठाया था। मोहल्ला आबादपुरा में पड़ते सरकारी प्राइमरी स्कूल के आगे एक प्लाट पर 8 फीट के करीब कूड़े का पहाड़ लग गया है। शिकायतों के बावजूद कोई सुनवाई नहीं हुई।
 

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