ऐसे ही नहीं डैंटल डाक्टर बन जाएंगे एम.बी.बी.एस., देना होगा ‘नीट’

punjabkesari.in Wednesday, Jun 12, 2019 - 10:53 AM (IST)

जालंधर(सोमनाथ): ब्रिज कोर्स के माध्यम से एम.बी.बी.एस. डाक्टर बनने का सपना पाले डैंटल डाक्टरों और नर्सों के लिए इस पाठ्यक्रम में दाखिला इतना आसान नहीं होगा जैसा वे आस लगाए बैठे हैं। राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2019 के प्रारूप अनुसार मैडीकल एजुकेशन में काफी बदलाव लाए जाने की सिफारिशें की गई हैं। इनमें से एक सिफारिश डैंटल डाक्टर्स और नर्सों के लिए एम.बी.बी.एस. में लेटरल एंट्री की है। प्रारूप अनुसार सभी मैडीकल साइंस ग्रैजुएट के लिए 1 या 2 साल की पढ़ाई एक जैसी रखने की सिफारिश की गई है। उसके बाद ये स्टूडैंट्स एस.बी.बी.एस., बी.डी.एस., नर्सिंग और अन्य विषय विशेषज्ञ की पढ़ाई कर सकेंगे।   

लेटरल एंट्री का अर्थ यह नहीं कि एम.बी.बी.एस. में सीधे दाखिला

नारायण हैल्थ के चेयरमैन डा. देवी शैट्टी, जिन्होंने मैडीकल एजुकेशन का प्रारूप तैयार करने में खासी भूमिका निभाई है, ने स्पष्ट किया कि लेटरल एंट्री का मतलब प्रवेश परीक्षा से छूट नहीं है। उन्होंने कहा किएम.बी.बी.एस. कोर्स में लेटरल एंट्री लेने के इच्छुक डैंटिस्ट और नर्सों को ‘नीट’ पास करना होगा उसके बाद ही एम.बी.बी.एस. कोर्स की 3 साल की बाकी की पढ़ाई कर सकेंगे। उल्लेखनीय है कि डैंटल काऊंसिल ऑफ इंडिया ने मैडीकल काऊंसिल ऑफ इंडिया को बी.डी.एस. पास करने वाले डाक्टरों के लिए एम.बी.बी.एस. का 3 साल का ब्रिज कोर्स करवाने का प्रस्ताव भेजा है। मैडीकल काऊंसिल ऑफ इंडिया ने इस प्रस्ताव पर गंभीरता से विचार के बाद इस प्रस्ताव को नीति आयोग के पास भेज दिया है। यह प्रस्ताव देशभर में डाक्टरों की कमी को दूर करने के उद्देश्य से तैयार किया गया है। बता दें कि डाक्टरों की कमी को देखते हुए केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने प्रस्तावित नैशनल मैडीकल कमीशन (एन.एम.सी.) विधेयक में भी आयुष के डाक्टरों के लिए एक ब्रिज कोर्स का प्रस्ताव रखा था। 

देश जूझ रहा डाक्टरों की कमी से

इंडियन मैडीकल एसोसिएशन के आंकड़ों पर गौर करें तो देश में 1.3 अरब लोगों की आबादी का इलाज करने के लिए महज 10 लाख एलोपैथिक डाक्टर हैं। इनमें से भी सिर्फ 1.1 लाख डाक्टर ही हैं जो सार्वजनिक स्वास्थ्य क्षेत्र में काम करते हैं। इस हिसाब से ग्रामीण क्षेत्रों में करीब 90 करोड़ आबादी स्वास्थ्य देखभाल के लिए इन थोड़े से डाक्टरों पर ही निर्भर है। देश में न तो पर्याप्त अस्पताल हैं और न ही डाक्टर। स्वास्थ्य देखभाल की क्वालिटी और उपलब्धता में बड़ा अंतर है। यह अंतर केवल राज्यों के बीच नहीं है, बल्कि शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों में भी है। डाक्टरों की अनुपस्थिति में लोगों के पास इलाज के लिए फर्जी डाक्टरों के पास जाने के अलावा दूसरा कोई विकल्प नहीं है। 

1217 लोगों पर मात्र एक डाक्टर

भारत सरकार के मुताबिक देश में 4 लाख डाक्टरों की और जरूरत है ताकि दूर-दराज के गांवों के लोग बुनियादी चिकित्सा सुविधा से महरूम न रह जाएं। फिलहाल सबसे ज्यादा डाक्टरों की संख्या महाराष्ट्र और तमिलनाडु में है। कहने को तो 9 लाख से ज्यादा डाक्टर पंजीकृत हैं लेकिन देश में काम करने वाले डाक्टरों की संख्या 6 से साढ़े 6 लाख ही है। रिपोर्ट के मुताबिक भारत में औसतन 1217 लोगों पर मात्र एक डाक्टर है।

विदेश चले जाते हैं डाक्टर

सैंट्रल ब्यूरो ऑफ हैल्थ इंटैलीजैंस की निदेशक डा. मधु रायकवार का कहना है कि सरकार ने डाक्टरों की कमी की बात को गंभीरता से लिया है और इसी वजह से देश में करीब 50 नए मैडीकल कालेजों की स्थापना की जा रही है। इस बीच सरकार यह भी पता कर रही है कि आखिर वे कौन से कारण हैं जो पढ़ाई पूरी करने के बाद डाक्टरों को विदेश खींच ले जाते हैं। रिपोर्ट के ताजा आंकड़े बताते हैं कि आने वाले 6 सालों में कैंसर के मरीजों में 21 प्रतिशत की वृद्धि होगी और इनमें ज्यादातर महिलाएं होंगी। प्रोस्टेट, लिवर और फेफड़ों के कैंसर के रोगियों की संख्या में खास तौर पर वृद्धि होने के संकेत रिपोर्ट में दिए गए हैं जबकि मुंह के कैंसर के मामलों में 51 प्रतिशत की वृद्धि की बात भी कही गई है। 

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