फेफड़ों ही नहीं बल्कि शरीर के किसी भी हिस्से में हो सकती है टी.बी.

punjabkesari.in Sunday, Mar 24, 2019 - 08:10 AM (IST)

जालंधर (रत्ता): टी.बी. ट्यूबरक्यूलोसिस नामक माइक्रोबैक्टीरिया से होने वाली एक ऐसी घातक बीमारी है, जोकि फेफड़ों ही नहीं बल्कि शरीर के किसी भी हिस्से में हो सकती है। इस बीमारी की चपेट में आने वाले लोग आमतौर पर वे होते हैं, जिनका खाना-पीना, रहना-सहना ठीक नहीं होता, जिनकी इम्युनिटी (रोग प्रतिरोधक क्षमता) कमजोर होती है। उनका शरीर बैक्टीरिया का वार झेल नहीं पाता और वे इसकी गिरफ्त में आ जाते हैं। आंकड़ों के मुताबिक भारत में हर अढ़ाई मिनट में 1 रोगी की मौत टी.बी. के कारण होती है।

इस बीमारी को फैलाने वाले बैक्टीरिया की खोज 24 मार्च 1882 को सर राबर्ट कॉक ने की थी और इसलिए हर वर्ष 24 मार्च को ही विश्व टी.बी. दिवस मनाया जाता है ताकि लोगों को इस बीमारी के प्रति जागरुक किया जा सके। विशेषज्ञों के अनुसार कुछ विकासशील देशों में टी.बी. पर तभी काबू पा लिया गया था जब इस बीमारी की कोई दवाई भी नहीं आई थी। भारत सरकार ने 2025 तक इस बीमारी पर काबू पाने का लक्ष्य निर्धारित किया है। 

टी.बी. रोग के लक्षण 
-तीन सप्ताह से अधिक खांसी
-सुबह-शाम बुखार हो जाना
-भूख कम या न लगना
-लगातार वजन कम होना
-खांसी के साथ बलगम आना

रोगी कैसे करे बचाव
-खांसी करते या छींकते समय मुंह पर रूमाल रखे 
-खुले में न थूके
-पौष्टिक आहार खाए
-बीड़ी /सिगरेट का सेवन न करें
-दवाई समय पर व पूरी खाए
-आसपास साफ-सफाई रखे

इलाज के साथ-साथ स्वच्छता एवं जागरूकता से पाया जा सकता है काबू
आमतौर पर लोग टी.बी. को लाइलाज एवं पीढ़ी-दर-पीढ़ी चलने वाली बीमारी समझते हैं जबकि यह बिल्कुल गलत है। टी.बी. का बैक्टीरिया हवा के जरिए फैलता है, इसलिए रोगी अगर कुछ बातों का ध्यान एवं साफ-सफाई रखे और पूरी दवाई खाए तो वह जहां पूरी तरह ठीक हो सकता है वहीं बीमारी पर भी काबू पाया जा सकता है। 
-डा. विनीत महाजन टी.बी. एंड चैस्ट स्पैशलिस्ट, एन.एच.एस. अस्पताल

सरकार देती है रोगी को खुराक के लिए पैसे 

सरकार ने टी.बी. पर काबू पाने के लिए 1962 में नैशनल टी.बी. कंट्रोल प्रोग्राम और 2006 में रिवाइज्ड नैशनल टी.बी. कंट्रोल प्रोग्राम शुरू किया था। इस प्रोग्राम के चलते मृत्यु दर में चाहे कमी आई है लेकिन सरकार का उद्देश्य टी.बी. के नए रोगियों की संख्या कम करना है। सरकार द्वारा टी.बी. रोगियों की जहां जांच व पूरा इलाज मुफ्त किया जाता है वहीं उन्हें खुराक के लिए हर महीने 500 रुपए दिए जाते हैं। 
-डा. राजीव शर्मा जिला टी.बी. अधिकारी। 

Bhupinder Ratta