छोटी-सी गलती बना सकती है हमें आनलाइन ठगी का शिकार

punjabkesari.in Monday, Feb 10, 2020 - 10:16 AM (IST)

कपूरथला(महाजन): नोटबंदी के बाद ई-वालेट व डिजीटल पेमैंट का प्रचलन बढ़ने के कारण जहां लोगों को अपनी जेब में भारी-भरकम रकम रखने से भी निजात मिली है। वहीं मौजूदा समय में ऐसे कई एप्प हैं, जिनको मोबाइल फोन में डाउनलोड करके उसमें अपना नंबर व बैंक खाता रजिस्टर करके किसी को भी मोबाइल के द्वारा डिजीटल व आनलाइन पेमैंट कर सकते हैं, लेकिन जैसे-जैसे डिजीटल पेमैंट का प्रचलन बढ़ने लगा है, वैसे-वैसे ही इंटरनैट फ्राड के मामले भी बढ़ते जा रहे हैं। ऐसे में ग्राहकों को ऑनलाइन ट्रांजैक्शन में काफी सावधानी बरतने की जरूरत है।

 कई मामलों में संभावना इस बात की है कि आपकी तमाम जानकारी धोखेबाजों के पास पहले से मौजूद हो। ऐसे में हमारे द्वारा की गई एक छोटी-सी गलती (ओ.टी.पी. बता देना) भी आपकी जेब साफ करवा सकती है। आनलाइन फ्राड से जुड़े मामलों की यदि कपूरथला जिले में बात की जाए, तो जिला कपूरथला के संबंधित क्षेत्रों में भी सैंकड़ों लोग इस फ्राड का शिकार बन चुके हैं, जिनकी शिकायत संबंधित थाना क्षेत्रों में किए जाने के बावजूद भी अभी तक पुलिस कई मामले को सुलझा नहीं पाई।

उधर, सुरक्षा एजैंसियों के आंकड़ों के मुताबिक देश भर में हर महीने सिर्फ ई-वॉलेट प्लेटफॉर्म से ही 8 से 9 हजार से अधिक फ्राड ट्रांजैक्शन की शिकायत मिल रही है, जबकि नोटबंदी से पहले इनकी संख्या केवल 4000 तक थी। इंडियन कम्प्यूटर एमरजैंसी रिस्पॉन्स टीम (सी.ई.आर.टी.) के मुताबिक पिछले कुछ वर्षों से साइबर अटैक की 1,44,500 घटनाएं सामने आई हैं।

वैबसाइट का एड्रैस चैक करें
ऑनलाइन ट्रांजैक्शन करते समय साइट के सुरक्षित होने का संकेत भी देख लें, जैसे- ब्राऊजर स्टेटस बार पर लॉक आइकॉन या एच.टी.टी.पी., यू.आर.एल आता दिखाई दे, तभी उस साइट से अपनी पेमैंट करें क्योंकि एच.टी.टी.पी. उस साइट के सुरक्षित होने की पहचान है। 

कैसे हैकर्स लोगों को फंसाते हैं अपने जाल में 
ठगी करने वाले लोग किसी भी वैबसाइट के नाम से मिलती-जुलती एक दूसरी साइट बना देते हैं, जो कि कई बार फेसबुक या अन्य सोशल मीडिया पर डिस्प्ले होती रहती है। यह दिखने में तो असली साइट जैसी प्रतीत होती है, लेकिन इसका असली साइट से कोई लेना-देना नहीं होता। हैकर्स द्वारा ऐसी नकली साइट्स बनाने के बाद गूगल एडवर्ड्स पर डाल कर इन्हें ट्रेंस करा दिया जाता है। ऐसा करने पर ये साइट्स सर्च इंजन में भी ऊपर दिखाई देती हैं। इन साइट्स पर काफी कम कीमत में सामान दिखाया जाता है जिससे ग्राहक प्रभावित होते हैं और सस्ते के चक्कर में ऑनलाइन पेमैंट कर देते हैं। ग्राहकों से पेमैंट लेने के बाद ये ङ्क्षलक डिएक्टिवेट हो जाते हैं और लोग ठगी का शिकार बन जाते हैं। ऐसे में ग्राहक को चाहिए कि जब भी किसी भी साइट से शॉपिंग करते हैं, तो पहले उस साइट का प्रॉपर यू.आर.एल. ब्राऊजर के एड्रैस बार में टाइप करके ही साइट पर जाएं और खरीदारी करें।

बैंक फोन करके सी.वी.वी. या ओ.टी.पी. नहीं मांगता 
विजया बैंक (अब बैंक आफ बड़ौदा) के चीफ मैनेजर अश्विनी अरोड़ा का कहना है कि बैंक के पास आपकी सभी जानकारी मौजूद होती है और वह कभी ई-मेल से या फोन से आपसे सी.वी.वी. या ओ.टी.पी. नहीं मांगता। इस तरह की जानकारी अगर कोई मांग रहा है, तो वह खतरे का संकेत है। किसी से भी इस तरह की गोपनीय जानकारी सांझा न करें। पैसों के लेन-देन के लिए कठिन पासवर्ड रखना जरूरी है। जन्मदिन, कार/बाइक के रजिस्ट्रेशन नंबर, मकान नंबर, मोबाइल नंबर आदि पासवर्ड न बनाएं। यदि संभव हो, तो हर महीने पासवर्ड जरूर बदल दें। 

फेक और प्रमोशनल कॉल्स कर लोगों को बनाया जाता हैं ठगी का शिकार
आजकल यह तरीका काफी चलन में है। ठग लोगों को फोन करते हैं और उन्हें बताते हैं कि उनको कंपनी की तरफ से लक्की कस्टमर चुना गया है। वे उन्हें यह भी बताते हैं कि लक्की कस्टमर होने के कारण आपको कंपनी द्वारा कार दी जा रही है या फिर लाखों रुपए देने का लालच दिया जाता है।  ऐसा लालच देने के बाद वे अपने शिकार को किसी अकाऊंट में कुछ पैसे जमा कराने के लिए कहते हैं। आई.एम.पी.एस. जैसी तकनीक आ जाने से किसी को पेमैंट करते वक्त सामने वाले खाताधारक के नाम की खास जरूरत नहीं होती है। मतलब अगर खाता धारक का नाम गलत है तो भी पैसे उसके अकाऊंट में चले जाएंगे। ऐसे में ठग कंपनी का फर्जी नाम बताकर पेमैंट ले लेते हैं और फिर गायब हो जाते हैं। इसके अलावा कई ठग खुद को बैंक का कर्मचारी बता कर ग्राहक से उसका बैंक अकाऊंट नंबर व ए.टी.एम. कार्ड का नंबर हासिल कर लेते हैं, जिसके बाद ठग उस अकाऊंट में पड़े सभी पैसे को उड़ा लेता है। 

क्या कहते हैं डी.एस.पी. क्राइम संदीप सिंह मंड
आनलाइन फ्राड संबंधी जब डी.एस.पी. क्राइम संदीप सिंह मंड से बात की गई, तो उन्होंने बताया कि मौजूदा समय में यह गंभीर ङ्क्षचता का विषय है। उन्होंने कहा कि इंटरनैट फ्राड से जुड़े हर महीने करीब 10 मामले उनके पास आते हैं। जिन्हें पुलिस द्वारा कड़े प्रयास करके सुलझाने की कोशिश की जाती है। डी.एस.पी. मंड ने लोगों को भी इस प्रति जागरूक रहने के लिए कहा। उन्होंने कहा कि लोगों को इंटरनैट बैंकिंग करते या आनलाइन पेमैंट करते समय सावधान रहना चाहिए। यदि वह खुद सतर्क रहेंगे, तो ही बच पाएंगे। यदि कोई फेक कॉल आती है या बिना किसी कारण बैंक खाते से बड़ी रकम निकलती है, तो इस संबंधी नजदीकी पुलिस स्टेशन में शिकायत देने के बाद संबंधित बैंक अधिकारी से संपर्क करें।


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