137 साल पुरानी न्यू इजर्टन वूलन मिल धारीवाल किसी भी समय हो सकती है स्थायी तौर पर बंद
punjabkesari.in Thursday, Nov 30, 2017 - 01:24 PM (IST)

गुरदासपुर(विनोद): देश की प्रसिद्ध न्यू इजर्टन वूलन मिल धारीवाल, जिसके पास लगभग 100 करोड़़ रुपए की आधुनिक मशीनरी वर्ष 2012 से पूर्णतया नई पड़ी है, जिसकी अभी पैकिंग तक खोली नहीं गई, उस पूरे देश में मशहूर रह चुकी वूलन मिल को केन्द्र सरकार के नीति आयोग ने स्थायी तौर पर बंद करने की मोहर लगा दी है। इस मिल को बंद करने की सिफारिश वाली फाइल इस समय केन्द्रीय कपड़ा मंत्री स्मृति ईरानी की टेबल पर पड़ी है।
क्या इतिहास है इस न्यू इजर्टन वूलन मिल धारीवाल का
जिला गुरदासपुर पहले तो केवल इस वूलन मिल के कारण ही पूरे देश मेंं जाना जाता था। भारतीय सेना के लिए कम्बल, गर्म वर्दी सहित काशगिरी लोई, ट्वीड कपड़ा, एम्बैसेडर कम्बल, माई फेयर लेडी नाम से ऊन आदि इस वूलन मिल की विशेषताएं रहीं तथा पूरे देश मेंं ये ब्रांड बहुत ही प्रसिद्ध थे।
अंग्रेजों के शासनकाल में वर्ष 1880 में अस्तित्व मेंं आई यह मिल कभी पूरे विश्व में प्रसिद्ध थी जबकि देश की आजादी के बाद यह मिल देश में सेना के लिए सामान बनाने के लिए प्रसिद्ध रही,परंतु सरकार की गलत नीतियों के चलते इस लगभग 137 वर्ष पुरानी मिल का भोग डाला जाना अब निश्चित लगता है। इस मिल की सुंदर इमारत अब किसी भी समय वूलन मिल का नाम खो बैठेगी।
क्या स्थिति है इस मिल की
वर्ष 2012 में मिले फंड से इस मिल में पुरानी मशीनरी की जगह नई आधुनिक मशीनरी लगाने के लिए लगभग 100 करोड़ रुपए की नई आधुनिक तकनीक की मशीनरी खरीदी गई ताकि मिल मेंं आधुनिक तकनीक से गर्म कपड़ा तैयार हो सके। उस समय की खरीद की गई मशीनरी आज भी मिल में बंद बक्सों में पड़ी है तथा उस मशीनरी को चालू तक नहीं किया गया। इस मिल को बचाने के लिए केन्द्र सरकार की मंजूरी से मिल की बड़ी जायदाद भी बेची गई ताकि मिल का घाटा पूरा कर पुन: मिल चालू की जा सके।
कई बार कोशिश हुई इस मिल को पुनर्जीवित करने की
धारीवाल की वूलन मिल को देखा जाए तो गत लगभग 20 वर्ष से ही वह बीमार चल रही है जो कई बार बंद हुई तथा कई बार चालू हुई। कभी समय था कि धारीवाल शहर का सारा कारोबार इसी मिल पर ही निर्भर करता था क्योंकि 3 शिफ्टों में लगभग 10,000 कर्मचारी इस मिल में काम करते थे। इस मिल के कर्मचारी हर माह वेतन मिलने पर दिल खोल कर बाजार से खरीदारी करते थे, परंतु समय के साथ-साथ इस मिल को कच्चा माल मिलना बंद हो गया।
कच्चा माल इस मिल के मुख्यालय कानपुर से आता था, जो गत 20 साल से कभी भी पूरी मिल क्षमता से नहीं मिला, जिस कारण कच्चे माल की कमी के चलते खर्च अधिक तथा उत्पादन कम होता गया। पूर्व भाजपा सांसद विनोद खन्ना ने एक बार तो वर्ष 2012 में 50 करोड़़ रुपए का फंड इस मिल को दिलाया था। उसके बाद राज्यसभा मैंबर प्रताप बाजवा ने इस मिल को पुन: शुरू करवाने में काफी जोर लगाया परंतु कुछ लाभ नहीं हुआ।इस मिल में काम कर रहे मजदूरों, कारीगरों तथा अन्य कर्मचारियों को अपने भविष्य की चिन्ता हो रही है। मिल में काम करने वाले कारीगरों व मजदूरों ने अपनी कई-कई पीढिय़ां इस मिल में खपा दीं जो मिल के सहारे अपने परिवार पालते रहे, उन्हें अब इस बात की ङ्क्षचता सता रही है कि उनका क्या होगा।