बुलंद इरादों के थे प्रख्यात स्वतंत्रता सेनानी श्री महेंद्र पाल स्याल जी

punjabkesari.in Monday, Aug 14, 2023 - 04:35 PM (IST)

लुधियाना (विक्की) : किसी ने सच ही कहा है- जीवन नश्वर है। दुनिया में लोग आते हैं, अपने जीवन के लक्ष्यों को भूल कर अपनी छोटी-मोटी जिम्मेदारियां निभाते हुए हमेशा के लिए दुनिया को अलविदा कह जाते हैं, लेकिन कुछ मनुष्य ऐसे भी होते हैं जो सदियों के लिए लोगों के दिलों में अपनी अमिट छाप छोड़ जाते हैं। जो जानते हैं कि देश के लिए, मातृभूमि के लिए अपना सर्वस्व न्यौछावर कर देना ही पार्थिव से आग्नेय होना है। श्री महेंद्र पाल स्याल जी भी ऐसे - एक महान व्यक्तित्व थे। जिनका जन्म 28 अप्रैल, 1920 को मंडी बहाउद्दीन (पाकिस्तान) में प्रसिद्ध आर्य समाजी एवं स्वतंत्रता सेनानी श्री संत राम के घर में हुआ था। देशभक्ति की भावना उन्हें घर पर ही स्वामी दयानंद जी के महान अनुयायी और अपने पिता जी से मिली थी। कहते हैं, पूत के पांव पालने में ही दिख जाते हैं।  मात्र 10 वर्ष की आयु में उन्होंने 'बाल भारती' नामक एक बाल सेना का गठ किया। 11 वर्ष की उम्र में राष्ट्रीय झंडा लहराने पर पुलिस की पिटाई बड़े गर्व के साथ सही। इनके बुलंद इरादों को देखकर पुलिस ने इन्हें तिरंगा फहराने के आरोप में विभिन्न यातनाएं देकर डराने का प्रयास भी किया लेकिन आजादी के इस परवाने के चेहरे पर एक शिकन भी दिखाई नहीं दी । राष्ट्रपिता महात्मा गांधी, डॉक्टर सैफुद्दीन किचलू तथा लाला लाजपत राय जैसे क्रांतिदूतों के नेतृत्व में न केवल भारत छोड़ो आंदोलन में बढ़ चढ़कर भाग लिया बल्कि अनेक बार जेल यात्रा भी की ।

1930-1931 के आसपास जब शहीदे आजम सरदार भगत सिंह अपने साथियों राजगुरु और सुखदेव के साथ लाहौर की सेंट्रल जेल में बंद थे और फांसी का इंतजार कर रहे थे तो श्री महेंद्र पाल स्याल की ड्यूटी बम के पलीते लाने के लिए लगाई गई। बाद में इन क्रांतिकारियों को अंग्रेज पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया और छोटी उम्र में जेल में बंद कर दिया गया। उन्हें बड़ी यातनाएँ दी गईं, कुएं में उल्टा लटका दिया गया, लेकिन उन्होंने क्रांतिकारियों का कोई भी भेद नहीं खोला। एक साल की कैद के बाद उन्हें रिहा किया गया। श्री महेंद्र पाल स्याल जैसे-जैसे बड़े होते गए, उनकी देशभक्ति तथा क्रांतिकारी सरगर्मियों में और भी तेजी आती गई। 'भारत छोड़ो आंदोलन के कारण जब 8 अगस्त 1942 में विद्रोह की चिंगारी पूरे भारत में भड़क उठी तब मंडी बहावलपुर के एक चौक में जोरदार सत्याग्रह शुरू किया गया, जिसमें श्री स्याल सबसे आगे थे अंग्रेजों ने उन्हें गिरफ्तार कर जेल में बंद कर दिया और वह 1 साल तक जेल में रहे। उनके साथ जयप्रकाश नारायण, महाशय कृष्ण, वरिंदर जी, प्रताप सिंह कैरों, जत्थेदार उधम सिंह नागोके, के. ईश्वर सिंह मझैल (सभी अकाली ) जेल में थे। जिस चौक में यह सत्याग्रह किया गया था, उस चौक का नाम ही सत्याग्रह चौक पड़ गया। भारत की स्वतंत्रता प्राप्ति के समय श्री स्याल लुधियाना आए। 
भारत की स्वतंत्रता की 25वीं वर्षगांठ पर श्री महेंद्र पाल स्याल जी को राष्ट्रपति द्वारा ताम्रपत्र प्रदान किया गया और 40वीं वर्षगांठ पर प्रधानमंत्री द्वारा सम्मानित किया गया। पूर्व राष्ट्रपति ज्ञानी जैल सिंह एक बार उन्हें मिलने के लिए लुधियाना स्थित उनके निवास पर आए और उन्हें स्वतंत्रता सेनानियों वाली पेंशन लगा गए। वह लुधियाना जिला कांग्रेस कमेटी और व्यापार मंडल के अध्यक्ष, फ्रीडम फाइटर्स एसोसिएशन के अध्यक्ष, बी.सी.एम. आर्य मॉडल सी. से. स्कूल शास्त्री नगर और आर. एस. मॉडल स्कूल के प्रधान भी रहे।

यही नहीं उनका पूरा परिवार आज भी देशभक्ति के इसी भाव से ओत-प्रोत होकर समाज सेवा में संलग्न है। निस्संदेह ऐसी आर्य संतानों पर पूरे देश को ही गर्व है। आज आजादी की 76 वीं वर्षगांठ पर हम गर्व के साथ ऐसे जांबाज स्वतंत्रता सेनानियों के समक्ष अपना सिर झुकाते हैं।

महेंद्र पाल स्याल जी जीवनपर्यन्त स्वस्थ एवं सजग रहे। समाज और आर्य समाज दोनों को बड़ी सहजता एवं सजगता से वे मार्गदर्शन देते रहे। श्री स्याल स्वतंत्रता के पश्चात भारत की भ्रष्ट राजनीति से प्राय: बहुत व्यथि रहते थे। उनका कहना था कि उन्होंने जिस आजादी के लिए संघर्ष किया था वह यह आजादी नहीं थी। आजकल के कांग्रेसियों को तो आजादी की लड़ाई का पता भी नहीं। 'नेशनल कैरेक्टर' ही तबाह हो गया है। गांधी जी ने कभी भी ऐसे राज्य की कल्पना नहीं की थी ।

1 दिसंबर 1997 को मात्र 77 साल की आयु में उनके निधन से लुधियाना शहर का एक अनमोल हीरा हमेशा के लिए खो गया ।


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Content Writer

Subhash Kapoor