अधिकारियों की लापरवाही : मंडियों में बारिश की भेंट चढ़ा लाखों टन अनाज

punjabkesari.in Monday, May 07, 2018 - 12:06 PM (IST)

लुधियाना(खुराना) : सरकार की लाख कोशिशों के बावजूद शहर की अनाज मंडियों के हालात सुधरते नहीं दिखते। अधिकारियों की लापरवाही के चलते खुले आसमान के नीचे पड़ा लाखों टन अनाज लगातार बारिश की भेंट चढ़ रहा है। इसका खामियाजा सीधे तौर पर सरकार व जनता को भुगतना पड़ेगा, क्योंकि ऐसे ही हालात रहे तो घर-घर में पहुंचने वाली गेहूं फंगसयुक्त होगी। ऐसा अनाज खाने से बीमारियां फैलने का डर होगा। अगर बारिश में भीगी गेहूं की बोरियों को अनाज गोदामों में स्टोर किया जाता है तो उनमें फंगस लगना स्वभाविक ही है। 

मौसम विभाग की चेतावनी अनदेखी  
बताना अनिवार्य होगा कि मौसम विभाग के माहिरों ने किसानों व मंडी बोर्ड के अधिकारियों को रा’य में 6 से 8 मई तक धूल भरी आंधी व तेज बारिश होने की चेतावनी देते हुए मंडियों में फसल की संभाल संबंधी सलाह दी थी। बावजूद इसके मार्कीट कमेटी व मंडी बोर्ड के अधिकारियों ने कोई खास उपाय नहीं किए। हालांकि गिल रोड स्थित व जालंधर बाईपास स्थित अनाज मंडियों के बीचों-बीच मार्कीट कमेटी व मंडी बोर्ड के अधिकारियों के कार्यालय बने हुए हैं।   

बारिश में भीगने पर खराब हो जाता है गेहूं का स्वाद   
माहिरों के मुताबिक जहां सरकारी अनाज गोदामों में बारिश में भीगी गेहूं स्टोर करने पर इसे फंगस लगने की संभावना कुई गुना बढ़ जाती है, वहीं यह बदबू मारने के साथ-साथ बे-स्वाद हो जाती है। बारिश में भीगने से गेहूं के दाने की मिठास कुछ हद तक कम हो जाती है। वहीं इसमें सुसरी व कीड़ा लगने के चलते इसे खाने पर कई भयानक बीमारियां फैलने का अंदेशा बन जाता है, क्योंकि यही फसल पिसाई के बाद आटे की बोरियों के रूप में लोगों के घरों तक पहुंचती है। 

दो नंबर में खरीदी जा रही सरकारी गेहूं, सरकार के राजस्व को चूना 
गिल रोड अनाज मंडी में सरकारी गेहूं की हो रही खरीद व बिक्री को लेकर भी सरकार की किरकिरी के साथ ही राजस्व की चोरी होने संबंधी चर्चा जोर पकडऩे लगी है। मंडी में सक्रिय अनाज माफिया कुछ आढ़तियों के साथ मिलकर किसानों से उनकी फसल खरीदकर सीधे तौर पर प्राइवेट हाथों में बिक्री कर रहा है। इस कारण सरकार के राजस्व को चूना लग रहा है। नियमानुसार किसानों द्वारा मंडी में लाई गई गेहूं की फसल मार्कीट कमेटी के सरकारी रिकार्ड में दर्ज की जाती है और फिर बिक्री के आंकड़े रिकार्ड में दर्ज करने अनिवार्य हैं। इस पर मार्कीट कमेटी से फीस के रूप में सरकार को राजस्व मिलता है। चिंता का विषय है कि अगर मंडियों तक पहुंचने वाली किसानों की फसल सीधे बाहर जाकर बिक जाएगी तो फिर सरकार के पास फसल की कुल पैदावार के सही आंकड़े कैसे पहुंचेंगे।

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