गंदे पानी के लिए 20 फीसदी इंडस्ट्री जिम्मेदार, लेकिन कार्रवाई का हिसाब नहीं: चीफ  इंजीनियर

punjabkesari.in Friday, Jul 19, 2019 - 08:19 AM (IST)

लुधियाना(धीमान): पंजाब में प्रदूषण की समस्या खत्म होने की बजाय बढ़ती ही जा रही है। संबंधित विभाग जिसमें पंजाब प्रदूषण कंट्रोल बोर्ड (पी.पी.सी.बी.) और लुधियाना नगर निगम (एम.सी.एल.) एक-दूसरे को दोषी ठहराने में जुटे हुए हैं। पी.पी.सी.बी. ने बुड्ढा नाला को प्रदूषित करने के मामले में 50 लाख रुपए की बैंक गारंटी नगर निगम से मांगी है। निगम ने भी पी.पी.सी.बी. के सिर दोष मढ़ते हुए कहा है कि इंडस्ट्रीयल एफुलैंट की वजह से उनके सीवरेज ट्रीटमैंट प्लांट (एस.टी.पी.) खराब हुए हैं। दोनों में बढ़ती आपसी तकरार का मुख्य कारण नैशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एन.जी.टी.) का डंडा है।
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सवाल है कि पिछले डेढ़ दशक से बुड्ढा नाला की हालत नाजुक स्थिति में पहुंची है तो क्यों इतने वर्षों तक पी.पी.सी.बी. और नगर निगम को दिखाई नहीं दिया कि बुड्ढा नाला का प्रदूषण की वजह से दम घुटने लगा है और यह प्रदूषण लोगों की जान को भी नुक्सान पहुंचाने लगा है।  खैर देर से ही सही लेकिन दोनों विभाग नींद से जागे परंतु पुख्ता योजना अभी भी किसी के पास नहीं है जिससे पता चल सके कि प्रदूषण खत्म कैसे होगा। प्रस्तुत हैं पी.पी.सी.बी. लुधियाना के चीफ इंजीनियर गुलशन राय से पंजाब केसरी  ने जब पूछा कि आपके मुताबिक सिर्फ  20 प्रतिशत इंडस्ट्री के कारण बुड्ढा नाला प्रदूषित है। यह कौन सी इंडस्ट्री है। इन पर ताले क्यों नहीं लगा दिए जाते। क्यों इन 20 फीसदी के कारण 80 प्रतिशत इंडस्ट्री नुक्सान उठाए?  इसके जवाब में उन्होंने कहा कि डाइंग के कुछ यूनिट हमने ढूंढे हैं जो बिना ट्रीट किए पानी बुड्ढे नाले में डाल रहे हैं। इन पर जुर्माना भी किया गया है और इनमें से कुछ को क्लोजर नोटिस भी दिए गए हैं। इसके बाद चीफ इंजीनियर चुप हो जाते हैं और कोई जवाब नहीं देते। पेश हैं पंजाब केसरी की ओर से पूछे गए दो-टूक सवाल-जवाब के कुछ अंश: 

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सवाल : एन.जी.टी. ने पंजाब सरकार पर 50 करोड़ का जुर्माना किस कारण लगाया और यह किस विभाग की वजह से लगा?
जवाब : जहां तक लुधियाना की बात करें तो बुड्ढा नाला में रोजाना करीब 650 एम.एल.डी. पानी डिस्चार्ज होता है। इसमें से इंडस्ट्रीयल एफुलेंट मात्र 15 प्रतिशत है और बाकी घरेलू एफुलेंट आता है। निगम का कोई भी एस.टी.पी. नहीं चलता जिस कारण पानी ओवरफ्लो होकर बिना ट्रीट हुए सतलुज में जा रहा है। निगम के एस.टी.पी. सही तरीके से चलते तो शायद लुधियाना में प्रदूषण की समस्या न होती।

सवाल : तो क्या आपका कहना है कि प्रदूषण सिर्फ  घरेलू है, इंडस्ट्रीयल नहीं?
जवाब : ऐसा नहीं, कुछ इंडस्ट्री भी है जो सैंट्रल प्रदूषण कंट्रोल बोर्ड के नियमों से बाहर जाकर प्रदूषण फैलाती है। इनकी संख्या 20 फीसदी के आसपास है। इन पर बोर्ड समय-समय पर कार्रवाई करता है और जुर्माने लगाता है, लेकिन अधिकतर प्रदूषण निगम के कारण फैला है जिसमें डेयरियों का पानी ही पिछले &0 साल से बुड्ढे नाले में बिना ट्रीट किए जा रहा है। आज तक डेयरी वालों ने सी.ई.टी.पी. नहीं लगाया। 

सवाल : पिछले 30 सालों से लोगों को स्लो प्वाइजन दिया जा रहा है इसका जिम्मेदार कौन है पी.पी.सी.बी. या नगर-निगम? 
जवाब :डेयरियों का सारा मामला लोकल बाडी ने देखना होता है। पी.पी.सी.बी. तो सिर्फ  रैगुलेटरी अथारिटी है, लोकल बाडी की वजह से डेयरियों में सी.ई.टी.पी. नहीं लगा।

सवाल : पी.पी.सी.बी. के पास डेयरियों को बंद करने या सील करने के अधिकार हैं तो उसका आज तक आपने क्यों नही इस्तेमाल किया?
जवाब : कुछ देर खामोश रहने के बाद, पी.पी.सी.बी. अपनी ओर से चीफ  सैक्रेटरी को समय-समय पर डेयरियों संबंधी रिपोर्ट भेजता रहता है।

सवाल: 10 साल से ’यादा समय हो गया और डाइंग इंडस्ट्री के सी.ई.टी.पी. नहीं लगे। क्या कारण है और इनका पानी कहां जा रहा है?
जवाब : डाइंग इंडस्ट्री ने अपने निजी एफुलैंट ट्रीटमैंट प्लांट लगाए हैं। वह पानी ट्रीट करके सीवरेज के जरिए सतलुज में छोड़ते हैं। सी.ई.टी.पी. लगने में देरी के लिए भी इंडस्ट्री जिम्मेदार है।

सवाल :यदि पी.पी.सी.बी. डाइंगों के पानी ट्रीट करने के नियमों से संतुष्ट है तो सी.ई.टी.पी. पर क्यों करोड़ों रुपए लगाए जा रहे हैं?
जवाब : पी.पी.सी.बी. ने कभी नहीं कहा कि सी.ई.टी.पी. लगाए जाएं। यह प्रस्ताव डाइंग इंडस्ट्री ने खुद दिया था, जिसे अमल में लाने के लिए पी.पी.सी.बी. उनकी मदद कर रहा है।

सवाल : क्या पी.पी.सी.बी. की ओर आपने कभी एन.जी.टी. को डेयरियों के प्रदूषण और सी.ई.टी.पी. में हो रही देरी का कारण विस्तार से बताने के लिए कोई पत्र लिखा?
जवाब : खामोश हो गए। कुछ देर बाद बोले ‘जवाब देते ही नहीं।’

सवाल : ग्राऊंड वाटर को बचाने के लिए पी.पी.सी.बी. क्या कदम उठा रहा है?
जवाब : इलैक्ट्रोप्लेटिंग इंडस्ट्री के लिए सी.ई.टी.पी. में जीरो लिक्युड डिस्चार्ज वाला सिस्टम लगा दिया गया है। इससे पानी को दोबारा इस्तेमाल में लाया जा सकता है।

सवाल : डाइंगों के सी.ई.टी.पी. क्यों बिना जीरो लिक्युड डिस्चार्ज (जैड.एल.डी.) की तकनीक के साथ लगाए जा रहे हैं जबकि डाइंगों में पानी का सबसे ज्यादा इस्तेमाल होता है?
जवाब : जरूरत पड़ेगी तो इसमें भी जैड.एल.डी. तकनीक लगा दी जाएगी।

सवाल : तो आपके हिसाब से डाइंगों में अभी जैड.एल.डी. की जरूरत नहीं है?
जवाब : खामोश हो जाते हैं, फिर कुछ सोचकर बोलते हैंकि सरकार कहेगी तो डाइंगों के सी.ई.टी.पी. को जैड.एल.डी. कर दिया जाएगा।


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