शिक्षा के लिए रोज मौत के मुंह में जाते हैं ये बच्चे

punjabkesari.in Tuesday, May 08, 2018 - 10:38 AM (IST)

लुधियाना(विक्की): देश की आजादी के 70 साल बीत जाने और देश में शिक्षा के अधिकार को मौलिक अधिकारों में शामिल किए जाने के बावजूद पंजाब का एक ऐसा गांव भी है जहां के बच्चे 5वीं कक्षा के बाद शिक्षा को तिलांजलि देने पर मजबूर हैं। केंद्र की यू.पी.ए. सरकार द्वारा पास किए गए राइट टू एजुकेशन एक्ट के मुताबिक 6 से 14  साल के हर बच्चे को शिक्षा का मौलिक अधिकार है लेकिन मत्तेवाड़़ा के जंगलों के पास स्थित गढ़ी फाजल के बच्चे 5वीं कक्षा के बाद स्कूल नहीं जा पाते। इसका कारण गांव के स्कूल का प्राइमरी कक्षा तक होना है और गांव के बगल में स्थित साढ़े 3 कि.मी. का जंगल बच्चों की पढ़ाई के सपने के रास्ते में ‘डर’ बना हुआ है। इसका नतीजा यह है कि गांव की 50 फीसदी लड़कियां 5वीं तक ही पढ़ पाई हैं, क्योंकि बच्चों को छठी कक्षा की पढ़ाई करने के लिए साढ़े तीन कि.मी. का जंगल पार करना पड़ता है लिहाजा बच्चियों को सुरक्षा का हवाला देकर घर पर ही बिठा दिया जाता है।

खतरों से खेलकर स्कूल जाते हैं बच्चे
गांव में करीब 110 घर हैं और आबादी 1000 के करीब है। गांव के करीब 100 विद्यार्थी ऐसे हैं जिन्हें सरकारी हाई स्कूल तक जाने के लिए जंगल का रास्ता चुनना पड़ता है जो एकदम सुनसान है। कई दफा बंदर, नील गाय, सूअर आदि बच्चों के रास्ते में आ जाते हैं। पैदल जाने वाले बच्चों की सुरक्षा के मद्देनजर इनकी शिक्षा अधूरी रह रही है। लड़कियों की शिक्षा अधूरी न रह जाए इसलिए गांव के हीग्रैजुएशन पास युवा प्रदीप ने होप एन.जी.ओ. के सहयोग से यहां अलग से कक्षाएं भी शुरू करवाईं थीं। प्रदीप सिंह खालसा ने बताया कि अध्यापकों को भी गांव तक रोजाना आने-जाने में दिक्कत आने के कारण प्रयास अधूरा रह गया। 

टिफिन-लिफाफा हाथ में देख बच्चों पर टूट पड़ते हैं बंदर
बच्चों के हाथ में लिफाफा या कोई टिफिन देखकर बंदर उसे छीनने के लिए बच्चों की ओर टूट पड़ते हैं। गांव वासियों की मानें तो जंगल के इस सुनसान रास्ते में नशेड़ी लोग भी घूमते हैं। स्कूल को जाने के लिए एक रास्ता गांव के बाहर से गुजरती सड़क से भी है लेकिन इस रास्ते पर भी कोई यातायात सुविधा नहीं है। बच्चे अगर स्कूल इस रास्ते से जाते हैं तो थोड़ी दूरी पर ही बंदरों की टोलियां मिल जाती हैं। बच्चों के मुताबिक उनके हाथ में लिफाफा देखकर बंदर उसे छीनने के लिए उनकी ओर टूट पड़ते हैं। 

सड़क पर अचानक आ जाते हैं बंदर
सड़के के रास्ते से खतरा इसलिए भी अधिक है, क्योंकि वहां जाते समय अचानक बंदरों की टोली आ जाती है जिससे कई बार दुर्घटना का खतरा भी बना रहता है। इसलिए जो विद्यार्थी निजी व सरकारी स्कूल में जाने के लिए अपने वाहन का प्रयोग करते हैं, उन्हें भी इस रास्ते से ध्यानपूर्वक निकलना पड़ता है। 

रोज पेरैंट्स जाते हैं बच्चों को स्कूल तक छोडऩे
जो लड़कियां 6वीं से पढऩे के लिए स्कूल जाती हैं, उनके अभिभावक उन्हें स्कूल छोडऩे व छुट्टी के समय लेकर आते हैं। वहीं कई लड़कियां साइकिल पर इकट्ठी स्कूल आती जाती हैं। उनके साथ गांव का कोई न कोई व्यक्ति जरूर होता है। 

कालेज की नहीं देखी शक्ल लेकिन छात्राएं कर रही ग्रैजुएशन
गांववासियों की मानें तो मौजूदा समय में गांव में एक भी ऐसी छात्रा नहीं है जो कालेज जाती हो, क्योंकि शहर में बने कालेज तक जाने के लिए गांव से कोई ट्रांसपोर्ट की सुविधा नहीं है। अगर किसी लड़की ने ग्रैजुएशन पूरी की है तो अपने घर में बैठकर प्राइवेट पढ़ाई करके। सरकार की नजर से दूर इस गांव के आस-पास कोई भी कालेज नहीं है। 

10वीं हो भी जाए तो 11वीं में छोड़ देती हैं पढ़ाई 
बात अगर 10वीं के बाद की करें तो 11वीं कक्षा में पढऩे के लिए स्टूडैंट्स को करीब 7-8 कि.मी. दूरी पर बने कंडियाणा के सरकारी सैकेंडरी स्कूल में जाना पड़ता है। यातायात की उचित व्यवस्था न होने के कारण कई छात्राएं 10वीं के बाद स्कूल नहीं जातीं, क्योंकि पेरैंट्स अपनी बेटियों की सुरक्षा को लेकर चिंतित रहते हैं। हालांकि गांव के कुछ बच्चे ऐसे हैं जो निजी स्कूलों में पढ़ते हैं और बाकायदा उन्हें लेने स्कूल बस गांव में आती है। लेकिन जिनके पेरैंट्स बस व प्राइवेट स्कूलों की मोटी फीस नहीं अदा कर सकते उनकी लड़कियों के लिए हाई व सैकेंडरी एजुकेशन प्राप्त करना एक चुनौती है। 

देश में शिक्षा के अधिकार का कानून, जिम्मेदारी से भागती सरकार
बच्चों को शिक्षा का अधिकार दिलाने के लिए यू.पी.ए. की सरकार ने 2009 में संविधान में संशोधन करके धारा 21 ए जोड़ी है। इसके अनुसार 6 से 14 साल के बच्चों को मुफ्त व लाजमी शिक्षा मुहैया करवाने का प्रावधान है। यह कानून देश में 1 अप्रैल 2010 से लागू हुआ है। कानून के तहत इस आयु वर्ग के बच्चों के दाखिले से लेकर उन्हें शिक्षा की हर सुविधा मुहैया करवाना सरकार की जिम्मेदारी है। लेकिन गढ़ी फाजल के बच्चे देश में यह कानून लागू होने के बावजूद पढ़ाई बीच में छोडऩे को मजबूर हैं और कोई भी सरकार न इन बच्चों को जिम्मेदारी ले रही है और न ही वे सहूलियतें दी जा रही हैं जिससे ये अपने सपने पूरे कर सकें। 

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