पंजाब प्रदूषण कंट्रोल बोर्ड डाइंग व इलैक्ट्रोप्लेटिंग का जहरीला पानी रोकने में फेल

punjabkesari.in Monday, Jul 30, 2018 - 11:05 AM (IST)

लुधियाना(नितिन धीमान) : पंजाब प्रदूषण कंट्रोल बोर्ड (पी.पी.सी.बी.) डाइंग व इलैक्ट्रोप्लेटिंग का जहरीला पानी रोकने में पूरी तरह फेल हो गया है। डाइंग इंडस्ट्री ने अंडरग्राऊंड पाइप डालकर कैमीकल युक्त जहरीला पानी बुड्ढे नाले में फैंकना जारी रखा हुआ है। इलैक्ट्रोप्लेटिंग इंडस्ट्री भी हैवी मैटल्स से भरे पानी को सीवरेज के जरिए बुड्ढे नाले में फैंक रही है। यह प्रदूषण इतने खतरनाक स्तर तक बढ़ चुका है कि पी.पी.सी.बी. के अफसरों को खुद समझ नहीं आ रहा कि इसे कैसे खत्म किया जाए। 

पी.पी.सी.बी. के अफसरों की नालायकी के कारण पिछले 10 सालों से डाइंग इंडस्ट्री के कॉमन एफुलैंट ट्रीटमैंट प्लांट (सी.ई.टी.पी.) नहीं लग सके। वजह, उन्हें आज तक समझ में नहीं आया कि सी.ई.टी.पी. लगाने के लिए सही योजना क्या होनी चाहिए। यानी मिस मैनेजमैंट के चलते डाइंग इंडस्ट्री के 40 करोड़ रुपए से ज्यादा अफसरों ने खराब करवा दिए।  पी.पी.सी.बी. के अफसर अपनी मर्जी से ही डाइंग इंडस्ट्री से केंद्र की गलत स्कीमों में सी.ई.टी.पी. की सबसिडी लेने के लिए अप्लाई करवाते गए और केंद्र से आवेदन रद्द होते गए। 

पी.पी.सी.बी. के अफसर भी हर बार नए सिरे से डाइंग इंडस्ट्री को आवेदन करने के लिए दबाव बनाते रहे। बिना ग्राऊंड रिएलिटी जाने पी.पी.सी.बी. ने सन् 2009 में पंजाब डायर्स एसोसिएशन का गठन करवा दिया। एसोसिएशन ने बहादुरके रोड, ताजपुर रोड, राहों रोड और फोकल प्वाइंट की करीब 280 डाइंगों के लिए 117 एम.एल.डी. (मिलियन लीटर डेली) का प्लांट लगभग 575 करोड़ रुपए में बनाने के लिए डिटेल प्रोजैक्ट रिपोर्ट आई.एल.एफ.एस. कंपनी से तैयार करवा दी। 

केंद्र ने इस रिपोर्ट को यह कह कर रिजैक्ट कर दिया कि कभी भी सी.ई.टी.पी. इतनी बड़ी संख्या में नहीं लगाए जाते इसलिए इन्हें छोटे-छोटे हिस्सों में लगाया जाए। बस, यहां से हिस्सों का खेल शुरू हुआ और आज तक सी.ई.टी.पी. हिस्सों में ही है। योजनाएं बनती जा रही हैं और रद्द होती जा रही हैं। बोर्ड के अधिकारी काम करने के झूठे एफीडेविट देकर अदालत को भी करते हैं गुमराह जब अदालत का दबाव आता है तो पी.पी.सी.बी. के अफसर  काम करने के झूठे एफीडेविट देकर अदालत को भी गुमराह करते हैं। ग्राऊंड पर इंडस्ट्रीयल प्रदूषण का स्तर खतरनाक स्थिति पर पहुंच गया है। 

पी.पी.सी.बी. ने अदालत में कहा था कि डाइंग व इलैक्ट्रोप्लेटिंग इंडस्ट्री के लिए कॉमन एफुलैंट ट्रीटमैंट प्लांट (सी.ई.टी.पी.) लगाए जा रहे हैं। जबकि सिर्फ  इलैक्ट्रोप्लेटिंग इंडस्ट्री का प्लांट ही लगाया गया वह भी इंडस्ट्री ने प्राइवेट कांट्रैक्टर के साथ मिलकर फोकल प्वाइंट में लगाया।  शहर में बहुत-सी ऐसी इलैक्ट्रोप्लेटिंग और डाइंग इंडस्ट्री हैं जो अंडरग्राऊंड पाइप डालकर सीवरेज के जरिए बुड्ढे नाले में पानी फैंक रही हैं। दिखावे के लिए कांट्रैक्टर कंपनी जे.बी.आर. को नाममात्र ही पानी उठवाती है। 

बोर्ड के अधिकारी काम करने के झूठे एफीडेविट देकर अदालत को भी करते हैं गुमराह

जब अदालत का दबाव आता है तो पी.पी.सी.बी. के अफसर  काम करने के झूठे एफीडेविट देकर अदालत को भी गुमराह करते हैं। ग्राऊंड पर इंडस्ट्रीयल प्रदूषण का स्तर खतरनाक स्थिति पर पहुंच गया है। पी.पी.सी.बी. ने अदालत में कहा था कि डाइंग व इलैक्ट्रोप्लेटिंग इंडस्ट्री के लिए कॉमन एफुलैंट ट्रीटमैंट प्लांट (सी.ई.टी.पी.) लगाए जा रहे हैं। जबकि सिर्फ  इलैक्ट्रोप्लेटिंग इंडस्ट्री का प्लांट ही लगाया गया वह भी इंडस्ट्री ने प्राइवेट कांट्रैक्टर के साथ मिलकर फोकल प्वाइंट में लगाया।

शहर में बहुत-सी ऐसी इलैक्ट्रोप्लेटिंग और डाइंग इंडस्ट्री हैं जो अंडरग्राऊंड पाइप डालकर सीवरेज के जरिए बुड्ढे नाले में पानी फैंक रही हैं। दिखावे के लिए कांट्रैक्टर कंपनी जे.बी.आर. को नाममात्र ही पानी उठवाती है। ताजपुर रोड की कई डाइंग इंडस्ट्रीज तो सरेआम अंडरग्राऊंड पाइप डालकर बिना ट्रीट किए पानी को सीधे बुड्ढे नाले में छोड़ रही हैं। पंजाब केसरी की टीम को तो ऐसे लगभग 27 प्वाइंट नजर आ गए लेकिन पी.पी.सी.बी. के अफसरों को पिछले कई सालों से एक भी प्वाइंट नजर नहीं आ रहा।

ये है डाइंग इंडस्ट्री के लिए लगाए जा रहे सी.ई.टी.पी. की मौजूदा स्थिति

1.ताजपुर रोडःएन.जी.टी. के आर्डर मनवाने के लिए खटखटाया जा रहा है कोर्ट का दरवाजा
पंजाब डायर्स एसोसिएशन पार्ट-1 के जनरल सैक्रेटरी बॉबी जिंदल के मुताबिक पी.पी.सी.बी. ने सन् 2009 में उनकी एसोसिएशन का गठन करवाया। उन्होंने बताया कि ताजपुर रोड पर लगने वाले सी.ई.टी.पी. का प्रोजैक्ट 117 एम.एल.डी. का था, जो 570 करोड़ रुपए में बनना था। पंजाब सरकार ने 32 एकड़ जगह लीज पर दी। 2 साल तक इसकी लीज 1.44 करोड़ रुपए प्रति वर्ष भरी गई।  इसी बीच पी.पी.सी.बी. ने मिनिस्ट्री ऑफ  टैक्सटाइल के पास सबसिडी के लिए आवेदन करवा दिया।

मिनिस्ट्री ने यह कह कर रद्द कर दिया कि चलते प्रोजैक्ट पर सबसिडी नहीं मिलती और दूसरा प्रोजैक्ट छोटे-छोटे हिस्सों में लगाया जाए। फिर सी.ई.टी.पी. के लिए मिनिस्ट्री ऑफ  एन्वायरनमैंट के पास आवेदन लगाया गया, वहां से भी बड़ा प्रोजैक्ट होने से रिजैक्ट हो गया। फिर प्रोजैक्ट को पी.पी.सी.बी. ने हिस्सों में तैयार करवाया। इसमें 25 एम.एल.डी. का प्लांट जो जीरो लिक्वड डिस्चार्ज आधारित होना था, के लिए आवेदन दिया गया। यह 130 करोड़ रुपए का प्रोजैक्ट था और 65 करोड़ सबसिडी मिलनी थी। इंडस्ट्री ने अपनी जेब से 20 करोड़ रुपए डालने थे। 14.5 करोड़ इंडस्ट्री ने इकट्ठे कर लिए। 5 करोड़ पी.पी.सी.बी. ने लोन देने के लिए कहा। पी.पी.सी.बी. ने फैक्टरियां भी गारंटी के तौर पर गिरवी रखवा लीं।

 बाद में यह कह कर 5 करोड़ देने से मना कर दिया कि जीरो लिक्वड डिस्चार्ज वाला प्लांट लगाने की जरूरत नहीं। सिम्पल पानी साफ  करने वाला प्लांट लगाया जाए। फिर सिम्पल सी.ई.टी.पी. के लिए प्रोपोजल बना और मिनिस्ट्री ऑफ  एन्वायरनमैंट को सौंपा गया। मिनिस्ट्री ने इसे यह कह कर रद्द कर दिया कि जिस स्कीम के तहत आवेदन किया था वह बंद हो गई है। नैशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल में केस हुआ और जीत गए। लेकिन ट्रिब्यूनल के आर्डर को आज तक न तो केंद्र ने और न ही पंजाब सरकार ने कोई तरजीह दी। मौजूदा समय में यह आर्डर मनवाने के लिए फिर कोर्ट का दरवाजा खटखटाया गया है। ऐसे में कब सी.ई.टी.पी. बनेगा कुछ नहीं पता।

2. बहादुरके रोडःशुरू हो चुका है सिविल वर्क, कब खत्म होगा कुछ पता नहीं

बहादुरके रोड डाइंग एसोसिएशन के प्रधान तरुण जैन बावा ने बताया कि उन्होंने 2012 में प्रोजैक्ट शुरू किया। प्रोजैक्ट की कॉस्ट 148 करोड़ थी। प्रोजैक्ट कुल 15 एम.एल.डी. जीरो लिक्वड डिस्चार्ज व पावर प्लांट के साथ बनना था। बैंकों ने फाइनांस नहीं किया। इसमें 3 बैंकों ने मिलकर 108 करोड़ का लोन देना था। बैंकों ने 2 साल मामला लटका दिया। पी.पी.सी.बी. केंद्र से एन्वायरनमैंट क्लीयरैंस भी 2 साल तक नहीं दिलवा पाया। 2016 में दोबारा प्रोजैक्ट बनाया वह भी बिना जीरो लिक्वड डिस्चार्ज और पावर प्लांट के। इसकी कुल कीमत 34 करोड़ है। सिविल वर्क शुरू हो गया है, कब खत्म होगा कुछ नहीं पता।

3.फोकल प्वाइंटःपैसा न होने के कारण रुका पड़ा है प्रोजैक्ट
फोकल प्वाइंट की डाइंग के लिए बनी पंजाब डायर्स एसोसिएशन पार्ट-2 के सी.ई.ओ. सुरिंदर गोयल ने बताया कि वह ताजपुर रोड से अलग होकर 2015 में प्रोजैक्ट बनाने लगे। इस प्रोजैक्ट की कॉस्ट 80 करोड़ रुपए थी। यह प्लांट 40 एम.एल.डी. का बनना है। एल. एंड टी. कंपनी को इंडस्ट्री ने अपनी ओर से 11 करोड़ रुपए भी दे दिए। सरकार से सबसिडी 4.32 करोड़ आ चुकी है जो पी.पी.सी.बी. के अकाऊंट में है। रुकी इसलिए है कि इंडस्ट्री अपनी जेब से 60 करोड़ रुपए डाले। इंडस्ट्री के पास अभी 22 करोड़ इकट्ठे हुए हैं। बाकी का पैसा न होने के कारण प्रोजैक्ट रुक गया है। पी.पी.सी.बी. ने हाथ खड़े कर दिए हैं कि वह इसमें कोई मदद नहीं कर सकता।

कैसे काम करता है सी.ई.टी.पी.

सी.ई.टी.पी. का मतलब कॉमन एफुलैंट ट्रीटमैंट प्लांट है। यह प्लांट इंडस्ट्री से निकलने वाले पानी को एक जगह एकत्रित कर उसे ट्रीट करता है, यानी उसे साफ  करता है जिससे यह पानी पीने लायक या खेतीबाड़ी में इस्तेमाल करने के काम आ सकता है। लुधियाना में डाइंग इंडस्ट्री के लिए 3 सी.ई.टी.पी. लग रहे हैं। डाइंग इंडस्ट्री से निकलने वाला कैमिकल युक्त पानी निजी सीवरेज के जरिए सी.ई.टी.पी. तक पहुंचाया जाएगा। इसके बाद इसे ट्रीट कर  सरकारी सीवरेज के जरिए बुड्ढे नाले में डाल दिया जाएगा।

  

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