‘जट्टा तेरी जून बुरी’

punjabkesari.in Tuesday, Jan 08, 2019 - 11:52 AM (IST)

मोगा(गोपी राऊके): एक तरफ जहां पंजाब सरकार व कृषि विभाग द्वारा किसानों को गेहूं व धान की फसल से पीछा छुड़वा कर विभिन्नता वाली फसलों की बिजाई करने की ओर उत्साहित किया जा रहा है, वहीं दूसरी तरफ सरकारी सलाह मानकर विभिन्नता वाली फसलों की खेती करने वाले तथा देश का ‘अन्नदाता’ कहलाने वाले किसान अपने आप को ठगा महसूस कर रहे हैं क्योंकि विभिन्नता वाली फसलों का कम से कम समर्थन मूल्य निर्धारित न होने के कारण उनको बड़ा आॢथक चूना लग रहा है। 

एकत्रित की गई जानकारी के अनुसार पंजाब में 89.99 हैक्टेयर के लगभग रकबे में आलुओं की बिजाई की जाती है। मिली जानकारी में यह पता चला है कि इस फसल की बिजाई करने वाले किसान वर्षों से आलुओं की खेती करते आ रहे हैं, लेकिन अब पिछले 3 वर्षों से फसल का भाव इतना मंदा चला आ रहा है कि किसानों के हाथ फसल का लागत खर्च भी नहीं लग रहा जिस कारण किसानों को हर वर्ष बड़ा घाटा झेलना पड़ रहा है। हैरानी की बात तो यह है कि किसानों की फसल के मंदे भाव के कारण हो रही दुर्दशा संबंधी सरकार व कृषि विभाग के अधिकारियों को सब कुछ पता होने के बावजूद उन्होंने इस संबंधी कोई ठोस कदम नहीं उठाए हैं। 

फसल के कम मूल्य ने किसानों की उम्मीदों पर फेरा पानी 
गांव घलकलां के किसान सुरजीत सिंह का कहना है कि इस वर्ष किसानों को उम्मीद थी कि जिस तरह पुराने आलुओं के भाव में कुछ तेजी रही है तो जरूर ही अब नई शुरू हुई फसल का भाव जरूर बढ़ेगा, लेकिन पता नहीं क्यों अब शुरू हुई नई फसल उपरांत व्यापारी वर्ग मंडियों से एकदम गायब हो गया है। उन्होंने बताया कि आलू का भाव थोक में 3 से 4 रुपए किलो है जिससे किसान वर्ग का खर्चा भी नहीं निकलता। उन्होंने कहा कि इस बार फसल को कोई ज्यादा रोग नहीं लगा तथा ठंड भी पडऩे लगी है जिस कारण किसानों को इस बार उम्मीद थी कि फसल का बंपर झाड़ व अच्छा भाव किसानों के ‘वारे-न्यारे’ कर देगा, लेकिन फसल के प्रारंभिक पड़ाव में मिल रहे कम मूल्य ने किसानों की समूची उम्मीदों पर ‘पानी’ फेर दिया है।

नोटबंदी व जी.एस.टी. से आलू व्यापारियों के करोड़ों रुपए डूबे
 8 नवम्बर, 2016 को हुई नोटबंदी के कारण एकदम व्यापारी वर्ग का सर्कल रुक गया जिसके फलस्वरूप व्यापारी वर्ग द्वारा आलुओं पर लगाए गए करोड़ों रुपए भी डूब गए क्योंकि व्यापारियों का आगे अन्य स्थानों पर आलू नहीं बिका। नोटबंदी की मार झेल रहे व्यापारी वर्ग को 1 जुलाई, 2017 में जी.एस.टी. की मार पड़ गई। इस उपरांत आलुओं का कारोबार करते व्यापारियों के करोड़ों रुपए डूब गए। पिछले तीन वर्षों से आलुओं का भाव न बढऩे का मुख्य कारण जी.एस.टी. व नोटबंदी भी माने जा रहे हैं।

इन जिलों में अधिक होती है आलुओं की खेती
दोआबा क्षेत्र के जालंधर, होशियारपुर व कपूरथला जिलों के अलावा मोहाली, लुधियाना व मोगा जिलों में भी आलुओं की खेती होती है। दोआबा क्षेत्र आलुओं खासकर आलुओं के बीज की बढिय़ा क्वालिटी के लिए जाना जाता हैं जबकि इसके बाद लुधियाना जिले के जगराओं क्षेत्र व मोगा जिले के किसान आलुओं की अच्छी क्वालिटी की पैदावार के लिए जाने जाते हैं। चाहे मालवा के अन्य जिलों में भी आलुओं की बिजाई होती है, लेकिन इनमें रकबा कम है।

सरकार विभिन्नता वाली फसलों का पक्का मूल्य करे निर्धारित: सुखवंत
जिला मोगा के गांव खोटे के नौजवान किसान सुखवंत सिंह का कहना है कि सरकार को विभिन्नता वाली फसलों के भाव निर्धारित करने चाहिएं। उन्होंने कहा कि आॢथकता से जूझ रहे किसानों को हर वर्ष कम होते जा रहे आलुओं के भाव के कारण आॢथक स्थिति का सामना करना पड़ रहा है। उन्होंने कहा कि जब तक कच्ची फसलों के पक्के भाव निश्चित नहीं होते, तब तक किसानों का फसली विभिन्नता की ओर आना मजबूरी है। इसलिए सरकार को विभिन्नता वाली फसलों का पक्का मूल्य निर्धारित करना चाहिए।

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