देर रात लगा बोर्ड इस जमीन की मालिक केंद्र सरकार है

punjabkesari.in Saturday, Dec 14, 2019 - 10:15 PM (IST)

मोगा(संजीव गुप्ता): डिप्टी कमिश्नर के आदेशों के साढ़े तीन महीने बाद आखिरकार 10 करोड़ से ज्यादा कीमत की केंद्र सरकार की जमीन पर एसडीएम की ओर से बोर्ड लगवा दिया। सूत्रों का कहना है केंद्र सरकार की मालिकी वाली इस जमीन की रजिस्ट्री सत्ताधारी पार्टी के एक प्रभावशाली नेता के करीबी के नाम हो चुकी है। रजिस्ट्री के नाम पर कब्जा लेने की तैयारी हो चुकी थी। मामला चंडीगढ़ तक पहुंचने के बाद आखिरकार रेवेन्यू विभाग को हरकत में आना पड़ा और शुक्रवार देर रात को लुधियाना रोड हाइवे बिग बैन के सामने बोर्ड लगा दिया गया। जिस पर लिखा गया है इस जमीन की मालिक केंद्र सरकार है।

ये चौंकाने वाले तथ्य
हैरानी की बात है कि साल 2017 में इस जमीन की रजिस्ट्री संख्या-3848 और 3849 दो बार हुई है। रजिस्ट्री में जमीन लाल लकीर के बाहर बाहर बताई गई है इसके बावजूद रजिस्ट्री में खसरा संख्या अंकित नहीं किया गया है। इतनी बड़ी हेराफेरी के बावजूद तहसील में जमीन की रजिस्ट्री कर दी। इस पूरे मामले की विजिलेंस इंक्वायरी कराई जाए तो न सिर्फ रेवेन्यू विभाग के अधिकारियों और बड़ी राजनीतिक हस्तियों के गठजोड़ से केन्द्र सरकार की जमीनों पर कब्जे के मामले सामने आ सकते हंैं,बल्कि कई बड़े चेहरे भी बेनकाब हो सकते हैं।

गौरतलब है कि शहर में हाईवे पर बस्ती गोबिदगढ़ में 28 जुलाई को केंद्र सरकार की लगभग 10 करोड़ रुपए की दो कनाल तीन मरले जमीन पर कुछ लोगों ने रातों-रात कब्जे की कोशिश की। जमीन की दीवार व केंद्र सरकार की ओर से लगाया गया सूचनात्मक बोर्ड ध्वस्त कर खाली जमीन पर मिट्टी डलवा दी थी। साथ ही पिछले कुछ दिनों में दो कमरे भी बनवा दिए थे। डिप्टी कमिश्नर संदीप हंस ने इस मामले में तत्कालीन एसडीएम सिटी को जांच सौंपते हुए भरोसा दिया है कि सरकार की जमीन पर किसी को कब्जा नहीं करना दिया जाएगा। साथ ही वहां बोर्ड लगवाने के आदेश जारी किए थे, लेकिन इन आदेशों पर अमल साढ़े तीन महीने बाद हुआ है।

जमीन बस्ती गोविदगढ़ में एमडीएएस स्कूल की प्राइमरी ब्रांच से सटी हुई है। ये जमीन डीसी निवास के ठीक सामने सड़क के दूसरी ओर स्थित है। पहले यहां पावरकॉम का बिजली दफ्तर चलता था, लेकिन बिल्डिग कंडम होने के कारण पावरकॉम का दफ्तर यहां से शिफ्ट हो गया। पिछले लगभग 15 सालों से जगह खाली पड़ी हुई है। सूत्रों का कहना है कि तहसील के रिकॉर्ड में फर्जी डॉक्यूमेंट का सहारा लेकर जमीन सरकार की ओर से एक व्यक्ति को आवंटित दिखाई गई है। ये मामला बंटबारे के समय का है। रेवेन्यू विभाग के अधिकारियों के अनुसार उस समय नियमानुसार जमीन पाकिस्तान से आए व्यक्ति को ही आवंटित की जा सकती थी, लेकिन जिस व्यक्ति के नाम जमीन का आवंटन रिकार्ड में दिखाया गया है, असल में वह पाकिस्तान से नहीं आया था, यहीं का रहने वाला है, उसका पूरा रिकार्ड रेबेन्यू विभाग ने हासिल कर लिया है। नियमानुसार उसे जमीन आवंटित नहीं की जा सकती थी। हालांकि जमीन के आवंटन का भी कोई रिकार्ड रेबेन्यू रिकार्ड में दर्ज नहीं है।

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