देश की जेलों में बंद हैं 13464 बलात्कारी, अदालतों में भी विचाराधीन हैं ऐसे 34368 कैदी

punjabkesari.in Thursday, Sep 10, 2020 - 12:06 PM (IST)

जालंधर (सूरज ठाकुर): देश में महिलाओं के प्रति अत्याचारों का ग्राफ घटने के बजाए बढ़ता जा रहा है। नैशनल क्राइम रिकार्ड ब्यूरो (एन.सी.आर.बी.) की रिपोर्ट के मुताबिक रेप, डॉरी और मर्डर के अभियुक्तों की संख्या में जेलों बढ़ती जा रही है। वहीं इन्हीं मामलों में संलिप्त अदालतों में विचाराधीन कैदियों की संख्या में भी इजाफा हुआ है। एन.सी.आर.बी. की रिपोर्ट के मुताबिक देश की जेलों में 21,020 कैदी महिलाओं पर अत्याचार करने के जुर्म में बंद हैं। इनमें से 64.5 फीसदी यानि 13464 मामले अकेले रेप के ही हैं। यह आंकड़े 31 दिसंबर 2019 तक के हैं। बीते दो साल में सजायाफ्ता रेप के कैदियों की संख्या में 19 फीसदी बढ़ोतरी हुई है। 2017 में जेलों बंद रेप के अभियुक्त कैदियों की संख्या 10,892 थी।

34368 रेप के आरोपी अंडरट्रायल
आंकड़े बताते हैं कि महिलाओं के प्रति अत्याचार करने वाले जेलों में बंद 57444 आरोपियों के मामले देश की विभिन्न अदालतों में अंडरट्रायल हैं। इनमें 34368 आरोपी रेप के आरोपी हैं। इसके अलावा दहेज के लालच में महिला की मौत के 25.58 फीसदी यानि  5,377 दोषी भी जेल में ही जीवन व्यतीत कर रहे हैं। डॉरी डैथ के 13287 अंडरट्रायल कैदी भी जेलों में ही बंद हैं। महिलाओं का अपमान करने के आरोप में 5176 कैदी भी जेलों में जिन्हें अदालतों में पेशी भुगताने के लिए ले जाया जाता है। पति के रिश्तेदारों और माता-पिता द्वारा महिला के उत्पीड़न के 4613 कैदियों के मामले भी अदालतों में विचाराधीन हैं।

महिलाओं पर जुर्म में यू.पी. अव्वल...
रिकॉर्ड के मुताबिक महिलाओं पर अत्याचार ढाने के मामले में उत्तर प्रदेश पहले नंबर पर है। देश में महिलाओं पर अत्याचार के 21,020 दोषियों में से 4957 यू.पी. के ही निवासी है। दूसरे नंबर पर मध्य प्रदेश है यहां के 3446 व्यक्ति महिलाओं पर अत्याचार के मामले में सजा पा चुके हैं और जेलों में बंद हैं। उत्तर प्रदेश के 19,022 आरोपी भी जेलों में बंद हैं, इनके मामलों की अदालतों में सुनवाई चल रही है। जबकि मध्य प्रदेश से संबंध रखने वाले ऐसे कैदियों की संख्या 4,927 है।  

पहले नहीं होता था अपराधों का रिकार्ड
1971 में महिलाओं के प्रति अपराध के मामलों का रिकॉर्ड रखा जाने लगा। इससे पहले महिलाओं के साथ रेप के आंकड़े एन.सी.आर.बी. की रिपोर्ट में शामिल नहीं किए जाते थे। इससे अनुमान लगाया जा सकता है कि देश में आजादी के बाद से ही महिलाओं से कैसा बर्ताव किया जाता रहा होगा। 1953 से 1971 में जिन आपराधिक मामलों का रिकार्ड रखा जाता था उनमें मर्डर, अपहरण, डकैती, घरों के ताले तोड़कर चोरी करना, सांप्रदायिकता फैलाना, ठगी और मारपीट आदि शामिल था।

क्या कहती हैं एडवोकेट
हिमाचल हाईकोर्ट की एडवोकेट मोनिका सिंह की माने तो लड़कियों और लड़कों में भेदभाव उनके बचपन से ही शुरू हो जाता है। माता-पिता लड़कियों को लड़कों के मुकाबले कम तव्वजो देते हैं। यहीं से लड़कियों का तिरस्कार शरू हो जाता है और वे कमजोर होती चली जाती हैं। जब उन्हें घर में इज्जत नहीं मिलती है तो उनका समाज में रह रहे बुरी मानसिकता वाले लोग फायदा उठाकर उत्पीड़न शुरू कर देते हैं। महिलाओं को दोयम दर्ज का माना जाना उनके प्रति अपराधों को बढ़ावा देता है। आज घर में ही लड़की और लड़कों को एक समान दर्जा दिए जाने की आवश्यकता है। जब यह एक घर में यह भेदभाव मिटेगा तभी सशक्त रूप में उभर पाएगी।

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