धराशायी होता AAP का जनाधार, वोटों में भारी गिरावट, जानिए कैसे हुआ पंजाब में पतन

punjabkesari.in Friday, May 24, 2019 - 06:07 PM (IST)

जालंधर। (सूरज ठाकुर) पंजाब में आम आदमी पार्टी का जनाधार धराशायी होता नजर आ रहा है। दरअसल 2014 के चुनाव के मुकाबले इस लोकसभा चुनाव में आप के वोट बैंक में करीब 17 फीसदी गिरावट दर्ज की गई है।  2014 में आप को चार सीटों पर जीत दर्ज कर 24.5 फीसदी वोट मिले थे, जबकि इस बार आप को एक सीट के साथ 7.8 फीसदी ही वोट मिले हैं। अगर विधानसभा चुनाव 2017 की बात की जाए तो 20 सीटें हासिल करते हुए पार्टी को 23.72% वोट मिले थे। साफ जाहिर है कि विधानसभा क्षेत्रों में भी आप का जनाधार खिसक गया है। आपको बताने जा रहे हैं कि आप का पतन सूबे में 2016 में ही शुरू हो गया था, जब आप से अलग होकर तत्कालीन कन्वीनर सुच्चा सिंह छोटेपुर ने नई पार्टी का गठन कर लिया था। 

देश में आप के इकलौते सांसद
सूबे की 13 लोकसभा सीटों में पार्टी के प्रधान भगवंत मान ही अपनी सीट निकाल पाए हैं। यह माना जा रहा है कि यह सीट आप नहीं भगवंत मान अपनी फेस वैल्यू के कारण जीते हैं। अब वह आम आदमी पार्टी का इकलौता सांसद होने के नाते पंजाब का ही नहीं पूरे देश का संसद में प्रतिनिधित्व करेंगे। भगवंत मान को संगरूर लोकसभा क्षेत्र से 1105888 वोटों में से 413561वोट मिले हैं जो कुल मतों का 37.4 फीसदी हैं।

दिशा निर्देश विहीन हो गई थी पंजाब में आप
सूबे में चुनाव के दौरान आप की स्थिति भ्रामक रही। पार्टी नेतृत्व सूबे के आप सुप्रीमो को सही दिशा निर्देश व चुनावी एजेंडा ही नहीं दे पाया। नतीजन आप किसी भी राजनीतिक दल से गठबंधन नहीं कर पाई। यहां तक कि बहुजन समाज पार्टी से भी आप का गठबंधन होते-होते रह गया और पार्टी का दलित वोट बैंक छिटकने के साथ पार्टी दिशाहीन होती चली गई। चुनाव प्रचार के आखिरी दिनों में अरविंद केजरीवाल ने पंजाब में डेरा तो डाला लेकिन उसका कोई फायदा नहीं हुआ। अंतत संगरूर में अपने ही दम पर भगवंत मान को अपनी सीट बचानी पड़ी।

2014 के बाद जब तानाशाह हुआ केंद्रीय नेतृत्व
आम आदमी पार्टी का केंद्रीय नेतृत्व 2014 लोकसभा चुनाव जीतने के बाद पंजाब में तानाशाह रवैया अपनाने लगा था। लोकसभा चुनाव जीतने के बाद पंजाब में आप की गहरी पैठ बन गई थी। 2017 में विधानसभा चुनाव में यह लहर चल पड़ी थी कि आम आदमी पार्टी पंजाब में सरकार बनाने वाली है। शायद यही वजह रही कि 2016 में आप आलाकमान ने पार्टी के तत्कालीन कन्वीनर सुच्चा सिंह छोटेपुर पर कथित तौर पर रिश्वत का आरोप लगने पर उन्हें भी पार्टी के बाहर का रास्ता दिखा दिया था। यह घटनाक्रम ठीक उस वक्त हुआ जब पंजाब में विधानसभा चुनाव नजदीक थे। इस दौरान सुच्चा सिंह छोटेपुर ने भी आप के केंद्रीय नेतृत्व पर टिकट आवंटन में भ्रष्टाचार के आरोप लगाए थे। आप से किनारा करते हुए उन्होंने अपना पंजाब पार्टी का गठन कर लिया था। यूं भी कह सकते हैं सूबे में आप के पतन की कहानी यहीं से शुरू हो गई थी। चूंकि छोटेपुर 2014 से 16 के बीच में कद्दावर नेता भी माने जाने लगे थे।

2018 में बुरी तरह बिखरी आप
2017 के विधानसभा चुनाव में 20 सीटें जीत कर राज्य में अपना दबदबा कायम करने वाली आप का भविष्य 2019 के लोकसभा चुनाव के आते-आते धूमिल हो चुका था। 2018 में पंजाब में ऐसा बिखराव शुरू हुआ कि यह बिखरती ही चली गई। पार्टी के प्रवक्ता सुखपाल खैहरा को उस समय पार्टी से अलग कर दिया गया, जब आम चुनाव नजदीक है। पार्टी में संकट तब खड़ा हुआ जब सुखपाल खैहरा को विधायक दल के नेता के पद से हटा दिया गया। इस प्रकरण के बाद सुखपाल खैहरा ने पार्टी के खिलाफ मोर्चा खोल दिया। नवंबर 2018 में खैहरा के साथ अन्य विधायक कंवर संधू को पार्टी विरोधी गतिविधियों के लिए निलंबित कर दिया गया। खैहरा ने आम आदमी पार्टी को अलविदा कह कर पंजाबी एकता पार्टी का गठन कर लिया था। इससे पहले आप विधायक एचएस फूलका ने अपने पद से इस्तीफा दे दिया था। पार्टी से किनारा करते हुए उन्होंने एक नया संगठन खड़ा कर लिया है, इस संगठन का नाम सिख सेवक संगठन है। 

एनआरआई हुए आप के लिए निष्क्रिय
इस बार लोकसभा चुनाव में विदेशों में रह रहे लाखों पंजाबियों ने भी चुनाव में आम आदमी पार्टी का सहयोग नहीं दिया। जिसकी वजह पार्टी में बिखराव ही था। 2017 के विधानसभा चुनाव में पार्टी को 500 से ज्यादा एनआरआई ने करोड़ों रुपए का चंदा ऑनलाइन या चैक के जरिए दिया था। इसके अलावा करीब साढ़े पांच हजार एनआरआई चुनाव प्रचार करने पंजाब पहुंचे थे। इस बार यह एनआरआई निष्क्रिय रहे और पार्टी को वित्तीय सहायता के अलावा प्रचार में भी कोई सहयोग नहीं मिला। नतीजन पार्टी अब बिलकुल हाशिए पर नजर आ रही है, लोकसभा चुनाव के नतीजे अब पंजाब में टू पार्टी सिस्टम के संकेत दे रहे हैं।  
 
 

Suraj Thakur