भारत के 60 फीसदी लोग आ सकते हैं कोरोना की चपेट में, उड़ानों और संस्थानों पर बैन हल नहीं
punjabkesari.in Tuesday, Mar 17, 2020 - 11:24 AM (IST)
जालंधर। कोरोनावायरस को लेकर केंद्र और राज्य सरकारें स्कूल, कॉलेज, शॉपिंग मॉल, सरकारी और निजी संस्थानों में अवकाश की घोषाओं को तवज्जो दे रही है। यहां तक देश में फलाइट्स में पर एकमुश्त पाबंदी पर भी जोर दिया जा रहा है। ऐसे में सवाल पैदा होता है कि सरकार द्वारा की जा रही कार्रवाई से क्या कोरोनावायरस पर काबू पाया जा सकेगा? इन्हीं कुछ सवालों के जवाब में देश के जाने माने सूक्ष्म जीव विज्ञान और विषाणु विज्ञान विशेषज्ञ टी जैकब जॉन कहते हैं कि विज्ञान सबूत मांगता है और ऐसे कोई सबूत नहीं हैं जो यह बताते हैं कि इंडिया में एकमुश्त उड़ानों पर प्रतिबंध लगाने से कोरोनावायरस को नियंत्रण पाने में मदद मिलेगी। "डाउन टू अर्थ" पत्रिका और न्यूज पोर्टल को दिए एक साक्षात्कार में उन्होंने यह भी कहा है कि एक साल के भीतर यह बीमारी देश की 60 फीसदी आबादी को अपनी चपेट में ले लेगी। डॉ जैकब की माने तो यह मच्छर या जल जनित संक्रमण नहीं है, बल्कि यह सांस से फैलने वाला संक्रमण है। वक्त के साथ, लोगों में इसे लेकर प्रतिरक्षा विकसित (immunity,immunization) हो जाएगी और फिर यह समय-समय पर होने वाली एक आम बीमारी बन जाएगी। फिर यह हर साल, यह एक खास मौसम के साथ आएगी जैसे दूसरे सांस के संक्रमण आते हैं।
सरकार की दहशत भरी प्रतिक्रिया
"डाउन टू अर्थ" को दिए साक्षात्कार में सूक्ष्म जीव विज्ञान और विषाणु विज्ञान में 25 साल से ज्यादा का विस्तृत अनुभव रखने वाले बाल रोग विशेषज्ञ टी जैकब जॉन कहते हैं कि "अगर इस बात के सबूत हैं कि ईरान, इटली, दक्षिण कोरिया, जापान और चीन जैसे देशों के ही नहीं बल्कि दुनिया भर के लोग संक्रमण फैला रहे हैं, तो यह सही है। लेकिन मुझे अफसोस है कि ऐसा कोई सबूत मौजूद नहीं है। मेरे ख्याल में, यह सरकार की एक दहशतभरी प्रतिक्रिया है, भले ही खुद लोगों से दहशत नहीं फैलाने की अपील कर रही है।"
कोरोनावायरस के खतरे का कोई आकलन नहीं
भारत में राज्य स्कूल, पार्क और साथ ही बड़े सामाजिक भीड़ को कम करने के बारे गए प्रश्न के जवाब में उन्होंने कहा कि क्या किसी राज्य सरकार ने आपको बताया कि उनके राज्य में कोरोनावायरस के जोखिम का आकलन क्या है? अगर नहीं, तो वे ऐसा कैसे कर सकते हैं? वह कहते हैं कि "बिहार, मध्य प्रदेश और ओडिशा जैसे कुछ राज्यों में, जहां एक भी पॉजिटिव मरीज नहीं मिला है, उन्होंने भी ऐसा कदम उठाया है; लेकिन किस आधार पर किया, हम नहीं जानते।" अगर कुछ नहीं हुआ, तो भी इससे लोगों में घबराहट फैलेगी और इस तरह के कठोर कदम रोजमर्रा की जिंदगी पर बुरा असर डालेंगे। वायरस का पता लगाने के लिए अब तक किए गए 6,000 से ज्यादा सैंपल की जांच के बारे में जैकब कहते हैं कि अगर आप एकमुश्त यात्रा प्रतिबंध को देखें, तो यह बताता है कि वायरस के जोखिम मूल्यांकन बहुत, बहुत ज्यादा है। अगर ऐसा है, तो 6,000 सैंपल की जांच बहुत कम है। तो, ये दोनों उपाय एक दूसरे से मेल नहीं खाते हैं।
स्वास्थ्य प्रबंधन निचले स्तर पर
डब्ल्यूएचओ का कहना है कि अस्पताल में भर्ती मरीजों में से 30-40 फीसद को आईसीयू में रखने की जरूरत है। इस बारे में टी जैकब जॉन कहते हैं कि हमारी स्वास्थ्य प्रबंधन प्रणाली इस तरह के किसी भी हालात का सामना करने के लिए तैयार नहीं है। हम अपने स्वास्थ्य प्रबंधन में सबसे निचले पायदान पर हैं। हमारे पास पर्याप्त वेंटिलेटर और मेडिकल ऑक्सीजन नहीं है। एच1एन1 महामारी से सबक मिला था कि सभी अस्पतालों को बड़ी संख्या में निमोनिया के मामलों के लिए तैयार रहना होगा। हमने सबक नहीं सीखा। वह कहते हैं कि हमने स्वास्थ्य क्षेत्र व स्वास्थ्य के बुनियादी ढांचे में निवेश और मानव संसाधन तैयार करने का मूल्य नहीं समझा। यह महामारी हमें बहुत कठोर बुनियादी सबक देने वाली है।