वायु प्रदूषण: हर 3 मिनट में हो रही 1 बच्चे की मौत

punjabkesari.in Tuesday, Oct 22, 2019 - 10:25 AM (IST)

जालंधर(सूरज ठाकुर): धान की फसल की कटाई शुरू होते ही पराली जलने लगती है और जहरीला धुआं शुद्ध वातावरण में घुलने लगता है। पूरे देश में हर साल करीब 35 मिलियन टन कृषि अवशेष एक समयावधि में जलाए जाते हैं जिससे राजधानी दिल्ली सहित विभिन्न राज्यों में स्थिति भयावह हो जाती है।

अगर कचरे की बात की जाए तो प्रत्येक वर्ष भारत में करीब 6 टन कचरा उत्पन्न होता है जिसमें से 25 फीसदी ही ट्रीट हो पाता है और बाकी खुले में फैंक दिया जाता है या फिर जला दिया जाता है। पंजाब एवं हरियाणा में प्रतिबंध के बावजूद आजकल के मौसम में पराली जलाने का सिलसिला शुरू हो जाता है। किसानों को सरकार जागरूक भी कर रही है लेकिन इस बात को कोई भी गंभीरता से नहीं लेता है कि लोग वायु प्रदूषण के कारण बीमारियों का सामना करते हुए अपनी जान गंवा रहे हैं। पंजाब और हरियाणा के खेतों में कुल 3 करोड़ 50 लाख टन पराली जलाई जाती है। एक टन पराली जलाने से 2 किलो सल्फर डाइऑक्साइड, 3 किलो ठोस कण, 60 किलो कार्बन मोनोऑक्साइड, 1460 किलो कार्बन डाइऑक्साइड और 199 किलो राख पैदा होती है। आपको 7 शोधों के जरिए बताते हैं कि देश में हर 3 मिनट में वायु प्रदूषण से एक बच्चे की मौत हो जाती है और आपके स्वास्थ्य के लिए यह जहर कितना घातक है।

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रिसर्च 1: सिर्फ  9 फीसदी लोग ही पाते हैं शुद्ध हवा
भारत में वायु प्रदूषण की गंभीर समस्या को देखते हुए विश्व स्वास्थ्य संगठन की रिपोर्ट में कहा गया है कि हर भारतीय ऐसी हवा में सांसें ले रहा है जो वायु गुणवत्ता के मानदंडों के मुताबिक असुरक्षित है। विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा जारी रिपोर्ट के अनुसार दुनिया की 91 फीसदी आबादी के लिए हवा की गुणवत्ता स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है। दुनिया की सिर्फ 9 फीसदी जनता ही वायु प्रदूषण की चपेट में नहीं है।

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रिसर्च 2: हार्ट अटैक से होती मौतें और कमजोर याददाश्त
आंकड़ों के अनुसार दुनिया भर में हर वर्ष वायु प्रदूषण से 70 लाख लोगों की मौत हो जाती है। स्ट्रोक से होने वाली 24 फीसदी और हृदय रोग से होने वाली 25 फीसदी मौतों की वजह वायु प्रदूषण है। वार्षिक विश्वविद्यालय द्वारा किए गए नए शोध के मुताबिक वायु में मौजूद नाइट्रोजन डाइऑक्साइड और पी.एम. 10 का बढ़ता स्तर हमारी याददाश्त को नुक्सान पहुंचाता है। इंगलैंड के लोगों पर किए इस शोध के मुताबिक आयु बढऩे के साथ हमारी याददाश्त भी कमजोर होती चली जाती है। शोधकत्र्ताओं के मुताबिक इंगलैंड के सबसे स्व‘छ और सबसे प्रदूषित क्षेत्रों में रहने वाले लोगों की आयु में 10 साल का अंतर है। यानी स्व‘छ क्षेत्र में 70 साल के व्यक्ति की याददाश्त प्रदूषित क्षेत्रों में रहने वाले 60 साल के लोगों से अधिक होगी।

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रिसर्च 3: 2017 में एक 1.85 लाख से अधिक बच्चों की हुई मौत 
वायु प्रदूषण से भारत में हर 3 मिनट में 5 साल तक के एक ब‘चे की मौत हो जाती है। 2017 में भारत में वायु प्रदूषण से 1 लाख 85 हजार से अधिक ब‘चों की मौत हुई। रोजाना लगभग 508 ब‘चों की मौते हुईं। ये आंकड़े ग्लोबल बर्डेन डिजीज, 2017 पब्लिक हैल्थ फाऊंडेशन ऑफ  इंडिया, भारतीय अनुसंधान चिकित्सा परिषद, आई.एच.एम.ई. के संयुक्त अध्ययन में सामने आए हैं। शोधकत्र्ताओं का कहना है कि फसल अवशेषों को जलाने के कारण अन्य गैसीय उत्पादों के साथ सूक्ष्म कणों एवं कार्बन डाइऑक्साइड का उत्सर्जन बड़ी मात्रा में होता है। ऐसे में बचपन में फेफड़े कमजोर होने से ब‘चों के स्वास्थ्य पर दीर्घकालिक प्रभाव पड़ सकते हैं।

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रिसर्च 4: फेफड़ों के कैंसर की संभावनाएं ज्यादा
सर गंगाराम हॉस्पिटल एंड लंग केयर फाऊंडेशन के द सैंटर फॉर चैस्ट सर्जरी के सर्जनों द्वारा किए गए अध्ययन के अनुसार दिल्ली की प्रदूषित हवा से फेफड़ों का कैंसर होने की संभावनाएं बढ़ जाती हैं। अस्पताल में पिछले 30 साल में फेफड़ों के कैंसर की सर्जरी के मामलों का विश्लेषण किया गया तो पाया कि 50 वर्ष से कम आयु के 70 लोग जिनके फेफड़ों की सर्जरी हुई थी वे धूम्रपान नहीं करते थे और प्रदूषण का शिकार थे। सर गंगाराम अस्पताल में सैंटर फॉर चैस्ट सर्जरी एंड इंस्टी‘यूट ऑफ  रोबोटिक सर्जरी के सलाहकार डा. हर्षवर्धन पुरी कहते हैं कि फेफड़ों के कैंसर के रोगियों की संख्या लगातार बढ़ रही है जिसमें अधिकतर युवा धूम्रपान न करने वाले थे, इसी आधार पर यह अध्ययन किया गया है।


रिसर्च 5: आंखों के लिए भी घातक है वायु प्रदूषण
ऑल इंडिया इंस्टीच्यूट ऑफ  मैडीकल साइंसेज (एम्स) के ऑप्थल्मोलॉजी की प्रोफैसर डा. राधिका टंडन का कहना है कि पर्यावरण को प्रदूषित करने वाले लगभग सभी तत्वों से आंखों पर प्रभाव पड़ता है। वह बताती हैं कि ताइवान में अध्ययन से जो परिणाम निकले हैं वैसे ही परिणाम भारत में भी देखने को मिल सकते हैं। भारत में सूखी आंखें, आंख की एलर्जी जैसी बीमारियों में कई गुना वृद्धि हुई है। एम्स में ही औसतन हर सप्ताह 50 से 100 मामले सामने आते हैं।


रिसर्च 6: मधुमेह के रोगियों के लिए घातक वायु प्रदूषण
मानव स्वास्थ्य पर वायु प्रदूषण के दुष्प्रभावों के आंकड़े दर्शाते हैं कि भारत में होने वाली कुल मौतों में से लगभग एक-चौथाई वायु प्रदूषण के कारण होती हैं। प्रदूषित हवा में मौजूद 2.5 माइक्रोन से कम आकार के महीन कण या पी.एम. 2.5 के संपर्क में आने से ये मौतें होती हैं। हाल ही में अमरीका के रोग विशेषज्ञों द्वारा किए गए एक नए अध्ययन में पता चला है कि पी.एम. 2.5 मधुमेह की बीमारी को भी प्रभावित करता है। भारत में वर्ष 2017 में मधुमेह से पीड़ित लोगों की संख्या 7.2 करोड़ आंकी गई थी जो विश्व के कुल मधुमेह रोगियों के लगभग आधे के बराबर है। पंजाब, कर्नाटक और तमिलनाडु जैसे उ‘च प्रति व्यक्ति आय वाले रा’यों में मधुमेह रोगियों की संख्या अधिक है।


रिसर्च 6: पृथ्वी का बढ़ता तापमान
वायु प्रदूषण के कारण पृथ्वी का तापमान बढ़ता है क्योंकि वातावरण में कार्बन डाइऑक्साइड, मीथेन और नाइट्रस ऑक्साइड का प्रभाव सूर्य से आने वाली गर्मी के कारण बढ़ जाता है जिससे स्वास्थ्य को अधिक नुक्सान हो सकता है। तापमान में अचानक वृद्धि के कारण अलग-अलग रोगों जैसे दस्त, पेट में दर्द, उल्टी, सिरदर्द, बुखार और शरीर में दर्द होने लगता है। गर्मी में वृद्धि से त्वचा के रोग और खुजली की समस्याएं भी उत्पन्न हो रही हैं। 
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