वायु प्रदूषण के चक्कर में छिन सकती है भारत से अंतर्राष्ट्रीय क्रिकेट की मेजबानी

punjabkesari.in Wednesday, Apr 04, 2018 - 08:52 AM (IST)

नई दिल्ली/जालंधर(बुलंद): देश में लगातार पैर पसारता वायु प्रदूषण जहां आम जनजीवन को तबाह कर रहा है वहीं देश में धर्म का रूप ले चुके खेल क्रिकेट के लिए भी यह खतरा बनता दिखाई दे रहा है। दिसम्बर-2017 में दिल्ली के फिरोजशाह कोटला स्टेडियम में हुए टैस्ट मैच के दौरान भारतीय व श्रीलंकाई खिलाडिय़ों द्वारा मुंह पर मास्क पहनकर क्रिकेट खेलने की तस्वीरों ने अंतर्राष्ट्रीय मंच पर भारत की खूब किरकिरी की और यह मामला फिलहाल शांत होता दिखाई नहीं दे रहा। भारत के मुख्य बड़े शहर जैसे मुंबई, कोलकाता, दिल्ली और चेन्नई आदि में मुख्य तौर पर अंतर्राष्ट्रीय क्रिकेट मैचों का आयोजन किया जाता है पर अगर देश में आने वाले दिनों में प्रदूषण कम न हुआ तो इन शहरों को क्रिकेट मैचों की मेजबानी से हाथ धोना पड़ सकता है। क्रिकेट से जुड़े जानकारों की मानें तो आगामी दिनों में कई बड़ी क्रिकेट सीरीज खेली जानी हैं और इसके लिए कई बड़ी प्राइवेट कम्पनियों ने अरबों रुपए खिलाडिय़ों की ब्रांडिंग और अपनी एडवर्टाइजमैंट के लिए निवेश किए हुए हैं। 

चर्चा है कि आई.सी.सी. की आगामी बैठकों में प्रदूषण को लेकर चर्चा होने के आसार हैं, क्योंकि कई देशों की ओर से इस बात पर आई.सी.सी. के ऊपर दबाव बनाया जा रहा है कि जिन देशों में प्रदूषण लगातार बढ़ रहा है वहां उनके खिलाडिय़ों को खेलने के लिए न भेजा जाए क्योंकि इससे खिलाडिय़ों की सेहत पर दुष्प्रभाव पड़ सकता है। क्रिकेट माहिरों की मानें तो क्रिकेट के संविधान में बारिश या रोशनी कम होने के हालात में किन नियमों का पालन करना है, इसका खुलासा तो है पर 15 मार्च 1877 (पहले टैस्ट मैच) से लेकर आज 140 वर्षों तक यह मुद्दा कभी सामने नहीं आया कि प्रदूषण को लेकर भी नियम बनाए जाएं। पर इस बार यह मुद्दा बेहद तीव्र गति से सामने आया है कि क्रिकेट खेलने के लिए प्रदूषण बारे भी नियम क्रिकेट के संविधान में दाखिल किए जाएं।

इतना ही नहीं खुद आई.सी.सी. ने अपने बयान में कहा है कि हमने इस बात पर ध्यान दिया है कि दिसम्बर 2017 में दिल्ली के कोटला स्टेडीयम में हुए टैस्ट मैच किन हालात में खेले गए और यह मुद्दा चिकित्सक कमेटी को रैफर किया गया है ताकि भविष्य में ऐसी स्थिति से निपटने के लिए मानक नियम तय किए जा सकें। 

पंजाब में प्रदूषण की कोई इतनी समस्या नहीं : आर.पी. सिंगला
भारत में क्रिकेट पर मंडराते खतरे को देखते हुए हमने पंजाब क्रिकेट एसोसिएशन के महासचिव आर.पी. सिंगला से बात की तो उन्होंने कहा कि पंजाब में प्रदूषण की कोई इतनी समस्या नहीं है। गत दिसम्बर माह में सर्दियों के दिन थे तथा तब फसलों की बचत को जलाया गया था जिस कारण दिल्ली में स्मॉग पैदा हो गई थी, इसलिए उन दिनों क्रिकेट खेलने आए खिलाडिय़ों को दिक्कत हुई पर आई.सी.सी. को चाहिए कि वह मैचों का आयोजन इस प्रकार से करे कि यहां मौसम ठीक हो और कोई प्रदूषण की समस्या न हो। 

दिल्ली में स्मॉग हर समय नहीं होती : यशपाल शर्मा 
पंजाब रणजी ट्रॉफी सिलैक्शन कमेटी के चेयरमैन यशपाल शर्मा से बात की तो उन्होंने कहा कि दिसम्बर माह में दिल्ली में पैदा हुई प्रदूषण की समस्या अचानक पैदा हुई समस्या थी। दिल्ली में स्मॉग हर समय नहीं होती। आई.सी.सी. को क्रिकेट संविधान में प्रदूषण के नियमों को शामिल करने से पहले भारत की बी.सी.सी.आई. से भी पूरी तरह विचार करना चाहिए। भारत में आयोजित होने वाले क्रिकेट मैचों के लिए बनाए जाने वाले शैड्यूल को राज्यों के मौसम को देख कर ही बनाना चाहिए ताकि मैच के आखिरी मौके पर कोई बदलाव न करना पड़े।

प्रशासन प्रदूषण के लिए पूरी तरह जिम्मेवार: विवेक व्यास
मामले बारे राजस्थान क्रिकेट एसोसिएशन के पूर्व उपाध्यक्ष विवेक व्यास ने कहा कि भारत के लिए यह शर्म की बात है श्रीलंका जैसा छोटा देश भारत में आकर प्रदूषण के मामले पर इतना हल्ला मचाए और टैस्ट मैच रद्द होते-होते बचे। प्रशासन प्रदूषण के लिए पूरी तरह जिम्मेवार है। जिस देश में क्रिकेट को धर्म और क्रिकेटरों को भगवान का दर्जा हासिल हो, वहां प्रदूषण जैसे मामलों पर नियम-कायदे बनाने जरूरी हैं। प्रदूषण के कारण क्रिकेट को बंद नहीं किया जा सकता पर उसे दूसरी जगह स्थानांतरित किया जा सकता है।

...तो प्रदूषित रहने वाले शहरों को क्रिकेट की मेजबानी से बाहर भी किया जा सकता है
जानकार बताते हैं कि अगर आई.सी.सी. प्रदूषण को लेकर कोई मापदंड बनाती है तो इसमें दिल्ली जैसे साल भर प्रदूषित रहने वाले शहरों को क्रिकेट की मेजबानी से बाहर भी किया जा सकता है। यह भी हो सकता है कि नए मापदंड बनने के बाद दिल्ली जैसे अधिक प्रदूषित शहरों में मैच हो ही न लेकिन यह भी हो सकता है कि दिल्ली की जगह ग्रेटर नोएडा में नए स्टेडियम बना लिया जाएं। मामले बारे एक क्रिकेट खिलाड़ी से बात की तो उनका कहना था कि खेल के दौरान थकान काफी होती है, जिस वजह से सांस तेज लेना पड़ता है। ऐसे में प्रदूषित वातावरण खिलाड़ी और उसके प्रदर्शन को प्रभावित कर सकता है।

खेल के दौरान  मैदान में अगर रोशनी कम हो तो उसे जरूरत के अनुसार ठीक किया जा सकता है पर प्रदूषण को कम कर पाना बेहद मुश्किल है लेकिन इसके कारण क्रिकेट बंद नहीं किया जाना चाहिए। प्रदूषण को लेकर राज्य सरकारों व केंद्र सरकार को सख्त रवैया अपनाकर इसके कारणों को तलाशना चाहिए और उनका हल करना चाहिए। उन्होंने कहा कि समय व स्थानों के अनुसार कई जगह प्रदूषण कम या अधिक होता रहता है जैसे अगर मैच दीवाली वाले दिन हो तो प्रदूषण उस स्थान पर भी ज्यादा हो सकता है जहां अक्सर पॉल्यूशन कम हो इसलिए इन परिस्थितियों से निपटने के लिए भी क्रिकेट बोर्ड को गंभीरता से विचार करना पड़ेगा। 

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