बिहार में भाजपा के लिए खतरे की घंटी

punjabkesari.in Friday, Mar 23, 2018 - 09:19 AM (IST)

जालंधर(पाहवा): पिछले दिनों लोजपा अध्यक्ष और केंद्रीय मंत्री रामविलास पासवान व केंद्रीय पैट्रोलियम मंत्री धर्मेंद्र प्रधान और भाजपा महासचिव भूपेंद्र यादव के बीच हुई एक मुलाकात को लेकर बिहार की राजनीति में नई प्रकार की चचाएं आरंभ हो गई हैं। चर्चा मुलाकात की टाइमिंग को लेकर भी होने लगी है क्योंकि यह मुलाकात बिहार दौरे में पासवान के उस बयान के बाद हो रही थी, जिसमें पासवान ने दलितों और अल्पसंख्यकों को लेकर भाजपा की सोच में बदलाव करने की नसीहत दी थी। उनके बेटे चिराग पासवान का भी बयान कुछ ऐसा ही था। 

यह बयान बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार से पासवान की मुलाकात के बाद आया था। लिहाजा इस बयान को उप चुनावों में भाजपा की हार के बाद एन.डी.ए. के भीतर भाजपा के सहयोगियों की नाराजगी के तौर पर लिया जा रहा था। राजनीति के खिलाड़ी रामविलास पासवान के बयान का असर ही था जिसके बाद भाजपा के दो वरिष्ठ नेता उनसे मिलने पहुंचे। सवाल उठ रहा है कि क्या पासवान भाजपा से सही मायने में नाराज हैं? क्या एन.डी.ए. के भीतर उनकी सुनी नहीं जा रही है ? कुछ ऐसा ही आरोप लगाकर अभी कुछ ही दिन पहले बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री और अध्यक्ष जीतनराम मांझी ने आर.जे.डी. से हाथ मिला लिया है। लेकिन, यह हाल केवल रामविलास पासवान का ही नहीं, बल्कि, दोबारा भाजपा में आए बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने भी उप चुनावों में हार के बाद बदलते परिवेश में भाजपा को नसीहत दी है।

नीतीश कुमार ने कहा कि न वह भ्रष्टाचार का साथ देंगे और न ही उन लोगों को बर्दाश्त कर सकते हैं जो समाज को बांटने की राजनीति कर रहे हैं। नीतीश कुमार का यह बयान भी उस वक्त में आया है जब भाजपा की उप चुनावों में बुरी हार हुई है। यहां तक कि हार के बाद भाजपा नेताओं के बयानों ने भी कुछ ऐसा बवाल मचा दिया, जिससे नीतीश और पासवान दोनों ही असहज दिखने लगे हैं। केंद्रीय मंत्री गिरिराज सिंह ने अररिया में आर.जे.डी. की जीत के बाद इसे आई.एस.आई. का अड्डा बन जाने की बात कही थी। कुछ इसी तरह का बयान चुनाव प्रचार के दौरान भाजपा के बिहार अध्यक्ष नित्यानंद राय ने भी दिया था। उप चुनाव में हार और बी.जे.पी. नेताओं के इन बयानों के बाद ही नीतीश कुमार और रामविलास पासवान की तरफ से ऐसा बयान आया है। एक बार फिर नीतीश कुमार को लगता है कि इस तरह के बयानों पर लगाम लगाने की जरूरत है। उन्हें लगता है कि अगर वो एकदम चुप हो गए तो फिर उनकी छवि को धक्का पहुंच सकता है। उधर, टी.डी.पी. के केंद्र्र सरकार से बाहर होने और भाजपा की पुरानी सहयोगी शिवसेना के अगले लोकसभा चुनाव अकेले लडऩे के फैसले के बाद भाजपा के दूसरे सहयोगी भी अपने वजूद को लेकर भाजपा को चेतावनी दे रहे हैं।

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