Bubonic Plague की दस्तक: चीन से ही शुरू हई थी यह बीमारी, 2.5 करोड़ लोगों की हुई थी मौत

punjabkesari.in Wednesday, Jul 15, 2020 - 11:38 AM (IST)

हैल्थ डैस्क। (सूरज ठाकुर) पूरे विश्व में कोरोना महामारी की दस्तक के बाद अब सदियों बाद "बुबोनिक प्लेग" का खतरा भी लोगों पर मंडराने लगा है। मंगोलिया में इस भयानक बीमारी के कारण मंगोलिया में एक 15 साल के लड़के की मौत हुई है। बताया जा रहा है कि लड़के ने एक संक्रमित चूहे को खाया था जिसके चलते उसे अपनी जान से हाथ धोना पड़ा। उधर  अमरीका के कोलोराडो के मॉरिसन शहर में एक गिलहरी में बुबोनिक प्लेग पाया गया है। यहां भी स्थानीय प्रशासन ने लोगों को अलर्ट किया है कि यदि पालतू जानवरों को लेकर सही ढंग से प्रबंधन न किया गया तो कोरोना के अलावा लोगों को इस बीमारी का भी दंश झेलना पड़ सकता है।  कोलोराडो जेफरसन काउंटी पब्लिक हेल्थ (JCPH) विभाग की एक खबर के अनुसार, इस साल काउंटी में मॉरिसन शहर में 11 जुलाई को गिलहरी ने सकारात्मक परीक्षण किया था। जेसीपीएच ने चेतावनी देते हुए कहा है कि उचित सावधानी न बरती जाए तो यह इंसानों और जानवरों दोनों को संक्रमित कर सकता है। रोग पिस्सू के काटने और संक्रमित जानवरों से हो सकता है। लोगों को इस बारे में भी जागरुक किया जा रहा है कि इस रोग से एंटिबॉयोटिक के माध्यम से तो रोका जा सकता है लेकिन समय पर इलाज न होने से इंसान की 24 घंटे के अंदर ही मृत्यु हो जाती है। विश्व स्वास्थ्य संगठन WHO ने कहा है कि अगर समय पर बुबोनिक प्लेग का उपचार नहीं किया गया तो यह बीमारी 24 घंटे में इंसान की जान ले सकती है। चीन के स्वायत्त क्षेत्र इनर मंगोलिया में भी मार्मग प्लेग के मामले सामने आए हैं। बुबोनिक प्लेग का मामला सामने आने के बाद रूस ने सतर्कता दिखाते हुए चूहों के शिकार पर प्रतिबंध लगा दिया है।

चीन से ही हुई थी प्लेग की शुरूआत....
डब्ल्यूएचओ के मुताबिक प्लेग का इतिहास हजार साल से भी ज्यादा पुराना है। यह विश्व की पहली महामारी थी जिसे  542 इस्वी में जस्टिनियन प्लेग के रूप में जाना गया। इसका वर्णन बाइबल में भी किया गया है। दूसरी बार इसी महामारी ने "ब्लैक डैथ" के रूप में 1347-1350 तक पूरे यूरोप में कहर ढाया और करोड़ों लोगों को मौत के मुंह में धकेल दिया था। इतिहास की बात करें तो 1347 में यह महामारी भी चीन से पहली बार इटली पहुंची थी। सिसली की बंदरगाह पर इटली के नागरिक चीन से आने वाले जहाजों का इंतजार कर रहे थे। एक के बाद एक आधा दर्जन जहाज जमा हो गए थे, जब जहाजों से कोई नहीं उतरा तो लोगों ने जहाजों पर देखा की यह उनके अपनों की लाशों से अटे पड़े थे। जहाज पर कुछ जिंदा लोग अब भी आखिरी सांसे गिन रहे थे कुछ लोगों के शरीर धीरे-धीरे काले पड़ रहे थे।

तीन साल में यूरोप की 40 फीसदी आबादी हुई थी खत्म...
तेज रफ्तार के साथ यह प्लेग 8 महीनों के भीतर ही प्लेग ने अफ्रीका, इटली, स्पेन, इंग्लैंड, फ्रांस, आस्ट्रिया, हंगरी, स्विट्‌जरलैंड, जर्मनी, स्कैन्डिनेविया और बॉल्टिक श्रेत्र को अपनी चपेट में ले लिया था। एक अनुमान के मुताबिक 1350 तक प्लेग के कहर से यूरोप की 40 फीसदी आबादी मौत के मुंह में समा चुकी थी। एशिया और अफ्रीका में भी मौत का आंकड़ा 2.5 करोड़ के पार पहुंच गया। 

ये थे बीमारी के लक्ष्ण....
यूरोप में दो किस्म का प्लेग फैला था। पहला था न्यूमौनिक था, जिसमें तेज बुखार और खून की उलटी के साथ तीन दिन में मरीज की मौत हो जाती थी। दूसरा ब्यूबौनिक प्लेग था जिसमें मरीज की जांघों के जोड़ और बगल में गिल्टी निकल आती, पस भर जाने से और पांच दिन में मौत हो जाती थी। बेहतर भोजन न मिलनें के कारण यूरोप की जनता की रोग प्रतिरोधक क्षमता कमजोर थी। इसलिए बड़ी यह आबादी को काल बनकर निगल गया।  

लोगों का उठ गया था भगवान से विश्वास...
फिलिप जिग्लर ने अपनी किताब, "द ब्लैक डेथ" लिखा है कि महामारी से बचने के लिए जब चर्च में प्रार्थना से कोई लाभ नहीं हुआ, तो लोगों का ईश्वर पर से भरोसा उठने लगा। यह वजह थी कि इस दौरान अलग ही पंथ का निर्माण हुआ, जिसे कोड़े मारने वाला पंथ कहा गया। इसमें 800,000 सदस्य थे और  पंथ के लोगों को औरतों से बातें करने, नहाने और कपड़े बदलने की मनाही थी और साथ ही दिन में दो बार उन्हें सरेआम  अपने आपको कोड़े लगाने होते थे। मिडिवल हियरसी किताब कहती है कि “प्लेग के भयभीत लोग बचना चाहते थे भले ही इसके लिए अपने आपको कोड़े लगाने पड़ें।”सन्‌ 1349 में पोप ने इस पंथ का विरोध किया। मगर अंत में जब प्लेग ही खत्म हो गया तो यह पंथ भी अपने आप खत्म हो गया।

जब भारत आया प्लेग की चपेट में...  
डब्ल्यूएचओ के मुताबिक यूरोप में फैले प्लेग का तीसरा चक्र 1894 में हांगकांग से शुरू हुआ और पूरी दुनिया में तेजी से फैल गया। व्यापारियों के जहाजों सवार चूहों के द्वारा यह प्लेग फैला।10 साल यानि 1903 तक प्लेग ने पांच महाद्वीपों की 77 बंदरगाहों में प्रवेश किया। भारत में 1898 से 1908 तक 6 लाख से अधिक मौतें हुईं थी। सन्‌ 1894 में फ्रांसीसी जीवाणु-विज्ञानी आलेक्सान्द्रे यरसन ने उस बैक्टीरिया का पता लगाया जिसकी वजह से यह प्लेग फैल रहा था। भारत सरकार (ब्रिटिश) के जीवाणु विज्ञानी हाफकिन को 1892-1915 के बीच एंटीप्लेग और एंटीकॉलरा वैक्सीन तैयार करने और महामारी पर काबू पाने का विश्व में गौरव प्राप्त हुआ था। उनके नाम से आज भी मुंबई के परेल में स्थित देश पहला जीव विज्ञान इंस्टीट्यूट है।

Suraj Thakur