यूरोप में प्रतिबंधित खतरनाक कीटनाशकों को भारतीय किसानों को बेच रही हैं कंपनियां

punjabkesari.in Friday, Feb 21, 2020 - 02:12 PM (IST)

-पेस्टिसाइड मैनेजमेंट बिल में खतरनाक कीटनाशक कंपनियों पर प्रतिबंध का जिक्र नहीं

जालंधर। दुनिया की पांच सबसे बड़ी कीटनाशक बनाने वाली कंपनियां भारत जैसे कई विकासशील देशों के सिर पर अपनी आमदनी का करीब एक तिहाई हिस्सा ऐसे खतरनाक कीटनाशकों (एचएचपी) को बेच कर कमा रही हैं, जिन में से कुछ पर यूरोपीय बाजारों में प्रतिबंध भी है। गैर लाभकारी संस्था अनअर्थड एंड पब्लिक आई के शोध के मुताबिक भारत में इन कंपनियों ने 2018 में खतरनाक कीटनाशकों एचपएचपी का 59 फीसदी हिस्सा भारत में बेचा है जबकि ब्रिटेन में बेचे गए इस तरह के कीटनाशक की मात्र केवल 11 फीसदी ही थी। हाल ही में केंद्रीय मंत्रिमंडल ने कीटनाशक प्रबंधन विधेयक, 2020 (पेस्टिसाइड मैनेजमेंट बिल 2020) को मंजूरी दे दी है। इस विधेयक में नकली कीटनाशकों से किसानों को होने वाले नुकसान की भरपाई का जिक्र तो किया गया है, लेकिन इसमें ऐसा कोई भी प्रावधान नहीं किया गया है कि जहरीले कीटनाशकों पर प्रतिबंध लगाया जाए या उनकी प्रोडक्शन देश में बंद कर दी जाए।

 

लचर कानून के चलते बिक रहे हैं घातक कीटनाशक
अध्ययन के अनुसार इनके द्वारा बेचे जाने वाले कुछ कीटनाशक यूरोपीय बाजारों में प्रतिबंधित हैं। भारत जैसे विकासशील देशों में लचर कानून व्यवस्था के चलते ये कंपनियां आराम से अपने उत्पाद बेच देती हैं। इन कंपनियों द्वारा विकासशील देशों में करीब 45 फीसदी अत्यधिक हानिकारक कीटनाशकों की बिक्री की थी। जबकि विकसित देशों में करीब 27 फीसदी एचएचपी की बिक्री की थी। अनुमान है कि भारत में इनके द्वारा बेचे जाने वाले कुल कीटनाशकों में 59 फीसदी कीट्नाशक अत्याधिक हानिकारक की श्रेणी में आते हैं जबकि ब्राजील में 49 फीसदी, चीन में 31 फीसदी, थाइलैंड में 49, अर्जेंटीना में 47 और वियतनाम में 44 फीसदी अत्यधिक हानिकारक श्रेणी के कीटनाशक बेचे जाते हैं।

किसानों को होने वाले कैंसर का भी खर्चा उठाएगी सरकार?
अब यहां जिक्र करते हैं कि कीटनाशक विधेयक 2020 की जिसमें संशोधन करने के बाद यह कहा गया है कि यह कीटनाशकों की ताकत और कमजोरी, जोखिम और विकल्पों के बारे में सभी प्रकार की जानकारी प्रदान करके किसानों को सशक्त करेगा। यह विधेयक नकली कीटनाशकों के प्रयोग से होने वाले नुकसान के संदर्भ में क्षतिपूर्ति का प्रावधान करता है। इस प्रावधान को विधेयक का सबसे महत्त्वपूर्ण बिंदु माना जा रहा है। साथ ही इसमें यह भी वर्णित है कि यदि आवश्यक हुआ तो क्षतिपूर्ति के लिये एक केंद्रीय कोष भी बनाया जाएगा। यह विधेयक जैविक कीटनाशकों के निर्माण एवं उपयोग को भी बढ़ावा देता है। ये फसल, मिट्टी की उर्वरता और पर्यावरण को नुकसान पहुंचाते हैं। इनकी बिक्री से न केवल कृषकों को बल्कि कीटनाशक के वास्तविक निर्माताओं एवं सरकार को नुकसान होता है। अगर कीटनाशक विधेयक 2020 के मुख्य बिंदुओं पर गौर किया जाए तो यह साफ तौर पर कीटनाशक बनाने वाली कंपनियों और किसानों की फसल से संबिधित परेशानियों को लेकर संशोधित किया गया है। इसमें किसानों को खतरनाक कीटनाशकों के प्रति जागरुकता की बात की गई है। किसानों को कीटनाशकों से होने वाले कैंसर जैसे रोगों का खर्चा कौन उठाएगा यह सपष्ट नहीं किय गया है।

31,600 करोड़ का होगा कीटनाशक बाजार
डाउन टू अर्थ पत्रिका में प्रकाशित शोध 2018 के टॉप-सेलिंग क्रॉप प्रोटेक्शन प्रोडक्ट्स के डेटाबेस पर आधारित है। शोध में 43 प्रमुख देशों को बेचे जाने वाले कीटनाशकों का विस्तृत विश्लेशन किया गया है। शोध में पाया गया है कि इन एग्रोकेमिकल कंपनियों ने लोगों की जान को जोखिम में डाल कर स्वास्थ्य के लिए हानिकारक 36 फीसदी कीटनाशकों की बिक्री की है। इन कंपनियों ने वर्ष 2018 में करीब 34,000 करोड़ रुपये के हानिकारक कीटनाशकों की बिक्री की है। हानिकारक कीटनाशक जहां इंसानों के लिए तो नुक्सानदेह हैं वहीं यह जानवरों और इकोसिस्टम पर भी बुरा असर डालते हैं। केमिकल इंसानों में कैंसर और उनकी प्रजनन क्षमता को नुकसान पहुंचा सकते हैं। 2018 में भारत का कीटनाशक बाजार 19,700 करोड़ रुपये आंका गया था। जिसके 2024 तक बढ़कर 31,600 करोड़ रुपये का हो जाने का अनुमान लगाया जा रहा है।
 

Suraj Thakur