पहले मुंबई अब दिल्ली बनी पनाहगाह, जानें क्यों गैंगस्टरों की पहली पसंद बनी ''राजधानी''

punjabkesari.in Tuesday, Jun 07, 2022 - 01:31 PM (IST)

चंडीगढ़ : 90 के दशक तक मुंबई में अंडरवर्ल्ड की दुनिया थी और यहां के माफिया बॉलीवुड समेत किडनैपिंग, कॉन्ट्रैक्ट किलिंग, जबरन वसूली, सट्टा, ड्रग्स, जमीन कब्जाने सहित तस्करी जैसे अपराध को अंजाम देते थे। हालांकि मुंबई बलास्ट के बाद बनी ए.टी.एस. के चक्रव्यूह और ऑपरेशन के बाद मुंबई से तो गैंगस्टर और गिरोहों का सफाया हो गया, लेकिन राजधानी दिल्ली धीरे-धीरे गैंगस्टरों की शरणस्थली बनती गई। 

दिल्ली पुलिस के रिटायर्ड अधिकारी अशोक चांद ने बताया कि राजधानी में गैंगस्टर की नींव 1992 में उस समय पड़ी, जब नजफगढ़ में एक छोटे से जमीन के टुकड़े पर कब्जे और इलाके में दबदबे को लेकर खूनी वार शुरू हुआ। ये वार बलराज अनूप और कृष्ण पहलवान के बीच हुई थी जिसमें 50 से ज्यादा लोगों की जानें चली गईं। बलराज का 1998 में मर्डर हुआ तो अनूप पहलवान रोहतक कोर्ट में 2003 में पुलिस कस्टडी में मारा गया। यहीं ये गैंगवॉर खत्म हो गई। लेकिन इन्हीं हत्याओं ने बाहरी दिल्ली के कई युवाओं को गैंगस्टर बनने का सपना दिखा दिया, जिसके बाद राजधानी में गिरोह बनते चले गए। 

क्यों बनी दिल्ली गैंगस्टरों की पसंद
मुंबई को आर्थिक राजधानी कहा जाता है, लेकिन जिस तेजी से दिल्ली का विकास हुआ, दिल्ली अपने सिमटे दायरे से बाहर निकलने लगी और विकास के काल में गैंगस्टरों का भी जन्म हुआ। वरिष्ठ अधिकारियों के मुताबिक मुम्बई में ए.टी.एस. के लगातार ऑपरेशन के बाद ड्रग्स और तस्करी के धंधों को दिल्ली शिफ्ट किया गया। जैसे दिल्ली ने विस्तार किया तो यहां की जमीनों की कीमतें भी आसमान छूने लगी। गुरुग्राम, नोएडा समेत एन.सी.आर. में कई विदेशी कंपनियों ने कदम रखे।

बाहरी कपंनियों ने पैर रखने शुरु किए, जिसके बाद से गैंगस्टरों ने अपनी रणनीति को बदलते हुए आपसी गैंगवार को खत्म करके धंधे से जुड़े लोगों से वसूली शुरू कर दी। दिल्ली राजधानी की सीमाएं कई मायनों से गैंगस्टरों के लिए सुरक्षित मानी जाती हैं। यहां से अपराध करने के बाद वे चंद मिनटों में दूसरे राज्यों में जा सकते हैं।

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News Editor

Kalash

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