पंजाब-हरियाणा में खतरनाक स्तर तक गिरा भूजल

punjabkesari.in Wednesday, Jul 07, 2021 - 11:42 AM (IST)

नई दिल्ली: उत्तर पश्चिम भारत विशेषकर पंजाब और हरियाणा में भूजल चिंताजनक स्तर तक गिर गया है। एक नए अध्ययन में यह बात कही गई है। आई.आई.टी. कानपुर द्वारा प्रकाशित शोध पत्र में उत्तर पश्चिम भारत के 4,000 से अधिक भूजल वाले कुओं के आंकड़ों का उपयोग किया गया है ताकि यह प्रदर्शित किया जा सके कि पंजाब और हरियाणा राज्यों में भूजल स्तर पिछले 4-5 दशकों में खतरनाक स्तर तक गिर गया है। भारत सिंचाई, घरेलू और औद्योगिक जरूरतों के लिए दुनियाभर में भूजल का सबसे बड़ा उपयोगकर्ता है। भारत में कुल वार्षिक भूजल अपव्यय में से लगभग 90 प्रतिशत की खपत सिंचाई में होती है। 

अध्ययन में कहा गया है कि गंगा के मैदानी इलाकों के कई हिस्से फिलहाल भूजल के इसी तरह के अत्यधिक दोहन से पीड़ित हैं और यदि भूजल प्रबंधन के लिए उचित रणनीति तैयार की जाए तो स्थिति को नियंत्रित किया जा सकता है। आई.आई.टी. कानपुर के प्रोफैसर राजीव सिन्हा और उनके पी.एच.डी. के छात्र सुनील कुमार जोशी के नेतृत्व में यह अध्ययन किया गया। 

अध्ययनकर्ताओं के अनुसार भारत के प्रमुख कृषि क्षेत्र पंजाब और हरियाणा राज्यों में भूजल की खपत की दर 20वीं शताब्दी के मध्य में कृषि उत्पादकता में भारी वृद्धि के कारण बढ़ी, जिसे ‘हरित क्रांति’ कहा जाता है, जिसका उद्देश्य खाद्य उत्पादन में आत्मनिर्भरता प्राप्त करना था। 

चावल की खेती से भूजल का इस्तेमाल बढ़ा
अध्ययन से पता चलता है कि हरियाणा में चावल की खेती का क्षेत्र 1966-67 के 1,92,000 हैक्टेयर से बढ़कर 2017-18 में 14,22,000 हैक्टेयर हो गया जबकि पंजाब में यह 1960-61 के 2,27,000 के मुकाबले 2017-18 में बढ़कर 30,64,000 हेक्टेयर तक पहुंच गया। नतीजतन, मांग को पूरा करने के लिए भूजल अवशोषण बढ़ गया।

भूजल का गिरता स्तर
1974 में 2 मीटर नीचे जमीन स्तर से 2010 में 30 मीटर नीचे तक चला गया।

Content Writer

Sunita sarangal